Hindi, asked by anupamasahu76, 8 hours ago

summary of chapter tangewala in Hindi​ I will give 50 point

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Answered by sakshithakran71
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Answer:

Tangewala By Subhadra Kumari Chauha- गरमी की लम्बी छुट्टियां प्रारंभ हो चुकी थीं। मेरे कुछ मित्रों ने इन गर्मियों की छुट्टियों में कश्मीर जाना तय किया था और इस प्रस्ताव को सबसे अधिक समर्थन मैंने दिया। हम लोग जाने की पूरी तैयारी कर चुके थे कि अचानक यात्रा के दो दिन पहले मेरे एक मित्र रामकृष्ण का एक आवश्यक पत्र आया। इस पत्र के अनुसार मुझे अपनी कश्मीर यात्रा स्थगित करनी पड़ी। मैं अपने मित्र से मिलने उसके गांव की ओर चल पड़ा।

जिस स्टेशन पर उतरना था, गाड़ी वहां दुपहर एक बजे पहुंची । चिलचिलाती धूप, लू की लपट और कच्ची सड़क की धूल ! मेरा गांव तक जाने का साहस न हुआ। मैंने सोचा, शाम को जाना ही ठीक होगा। ताँगेवाले कम थे और उतरनेवाले और भी कम । ताँगेवाले सवारी लेकर चल पड़े। खाली ताँगेवाले भी चलने का उपक्रम कर रहे थे कि एक अच्छा-सा ताँगा-घोड़ा, देखकर उसे मैंने बुलाया। ताँगेवाले ने आकर सलाम किया। मैंने कहा, “देखो, भाई मुझे गांव जाना है, पर मैं अभी इस धूप में न जाऊंगा । शाम को पांच बजे के करीब जाऊंगा । तुम ठहरोगे?”

“हाँ हुज़ूर, ठहरूंगा ।”

“किराया क्या होगा ?”

“हुज़ूर, जो आप खुशी से दे दें।”

“खुशी की बात नहीं रेट क्या है? वह बतलाओ।”

“तेईस मील है न हुज़ूर! आप दूसरों से पूछ लीजिए, पांच रुपए पूरे ताँगे के होते हैं। फिर चाहे एक सवारी हो या तीन ।”

“पर मैं तो इतना न दूंगा।”

“इसीलिए तो मैंने कहा कि आप खुशी से जो दे दीजिए हुज़ूर ।”

मैं उसे कुछ पैसे देकर वेटिंग रूम में चला गया।

शाम के छह बजे हम लोग खा-पीकर और खाने का कुछ सामान साथ रखकर गांव की ओर रवाना हुए । वैसे ताँगेवाला कहता था कि तेईस मील दो घंटे में खुशी से ले जा सकता है, पर स्टेशन से आगे दो मील के बाद ही कच्ची सड़क प्रारंभ हो जाती है, इसलिए देर लगेगी । मोटे साहब से हम चार घंटे बाद गाँव पहुँचेंगे । स्टेशन की सीमा पार करते ही किसानों के साफ-सुथरे लिपे-पुते छोटे-छोटे घर और हरे-भरे खेत बड़े ही सुहावने जान पड़े । सात भी न बज पाए थे कि पू्र्णचन्द्र ने सहस्रों घड़े दूध पृथ्वी पर उँड़ेल दिया । दिन की लू अब ठंडी हवा में परिवर्तित हो चुकी थी ।

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