Summary of chapter Upbhokta vad ki sanskriti
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लेखक कहते हैं कि उपभोग सुख नहीं है। उनके अनुसार मानसिक, शारीरिक और सूक्ष्म आराम सुख है। लेकिन आजकल केवल उपभोग के साधनों - संसाधनों का अधिक से अधिक भोग ही सुख माना जाता है।
उपभोक्तावाद संस्कृति ने हमारे दैनिक जीवन को पूर्ण रूप से अपने प्रभाव में ले लिया है। सुबह उठने के समय से लेकर सोने के समय तक ऐसा लगता है कि दुनिया में विज्ञापन के अलावा कोई चीज़ देखने या सुनने लायक नहीं है। परिणाम स्वरूप हम वही खाते-पीते और पहनते-ओढ़ते हैं जो विज्ञापन हमें बताते हैं।
इस प्रकार उभोक्तावादी संस्कृति के कारण हम उभोगों के गुलाम बनते जा रहे हैं। हम सिर्फ अपने बारे में सोचने लगे हैं। इससे हमारे सामाजिक संबंध संकुचित हो गए हैं। मर्यादा और नैतिकता समाप्त हो रही है।
गांधीजी ने उपभोक्तावादी संस्कृति के दुष्प्रभाव को पहले ही समझ लिया था। इसलिए उन्होंने भारतीयों को अपनी बुनियाद और अपनी संस्कृति पर दृढ़ रहने के लिए कहा था।
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