summary of dharam ki aad??? plzzz i need it fast, my exam tomorrow...
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प्रस्तुत पाठ 'धर्म की आड़' में लेखक 'गणेश शंकर विद्यार्थी जी' ने उन लोगों के इरादों और कुटिल चालों को बेनकाब किया है जो धर्म की आड़ में जनसंख्या सामान्य को आपस में फकर अपना उल्लू करते हैं। उन्होंने बताया कि की कुछ चालाक व्यक्ति आम आदमी को अपने स्वार्थ के लिए धर्म के नाम पर फटते रहते हैं। लेखक का कहना है कि धर्म और विश्वास के नाम पर इसी तरह लोग प्राण तक गँवा देने पर उतारू रहते हैं, जिन्हें धर्म आरै इर्मान के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है।
लेखक ने भारत ही नहीं, विदेशों में भी इस प्रकार की धूर्तता का पर्दाफाश किया है। पाश्चत्य देशों में धन के द्वारा लोगों को वश में किया जाता है, मनमुताबिक काम करवाया जाता है। हमारे देश में बुद्धि पर परदा डालकर कुइल लोग ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए ले लेते हैं और फिर धर्म, विश्वास के नाम पर लोगों को आपस में भिड़ाते रहते हैं और अपना व्यापार चलते रहते हैं। इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए हमें साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग करना चाहिए। यदि किसी धर्म के मनाने वाले जबरदस्ती किसी के धर्म में टाँग अड़ाते हैं तो यह कार्य स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा।
देश की स्वाधीनता आंदोलन में जिस दिन खिलाफत, मुल्ला और धर्माचारों को स्थान दिया गया था वह दिन सबसे बुरा था जिसके पाप का फल हमें आज भी भोगना पड़ रहा है। लेखक के अनुसार शंख बजाना, नाक दबाना और नमाज पढ़ना धर्म नहीं है। शुद्धाचारी और सदाचारी धर्म के प्रतीक हैं। आप ईश्वर को रिश्वत दे देने के बाद दिन भर बेईमानी करने के लिए स्वतंत्र रूप से नहीं हैं। ऐसे धर्म को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता है। येसे अच्छे वे लोग हैं जो नास्तिक हैं।