SUMMARY of Dhool poem by Sarveshwar Dayal Saxena..!! I've given the full poem below..!!
धूल:-
तुम धूल हो -
पैरों से रौंदी हुई धूल ।
बेचैन हवा के साथ उठो ,
आँधी बन
उनकी आँखों में पड़ो
जिनके पैरों के नीचे हो ।
ऐसी कोई जगह नहीं
जहाँ तुम पहुच न सको
ऐसा कोई नहीं
जो तुम्हे रोक ले ।
तुम धूल हो -
पैरों से रौंदी हुई धूल
धूल से मिल जाओ ।
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-
तुम धूल हो -
पैरों से रौंदी हुई धूल ।
बेचैन हवा के साथ उठो ,
आँधी बन
उनकी आँखों में पड़ो
जिनके पैरों के नीचे हो ।
ऐसी कोई जगह नहीं
जहाँ तुम पहुच न सको
ऐसा कोई नहीं
जो तुम्हे रोक ले ।
तुम धूल हो -
पैरों से रौंदी हुई धूल
धूल से मिल जाओ ।
तुम धूल हो -
पैरों से रौंदी हुई धूल ।
बेचैन हवा के साथ उठो ,
आँधी बन
उनकी आँखों में पड़ो
जिनके पैरों के नीचे हो ।
ऐसी कोई जगह नहीं
जहाँ तुम पहुच न सको
ऐसा कोई नहीं
जो तुम्हे रोक ले ।
तुम धूल हो -
पैरों से रौंदी हुई धूल
धूल से मिल जाओ ।
Cherry152003:
I asked for the SUMMARY OF THE POEM..!! Actually the question is "Sarveshwar dayal saxena ki dhool kavita ko par kr man mai uthe vichar likhiye".
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