summary of do kalakar in Hindi language
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मन्नू भंडारी हिन्दी की सुप्रसिद्ध कहानीकार हैं। मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में जन्मी मन्नू का बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था। लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया। उन्होंने एम० ए० तक शिक्षा पाई और वर्षों तक दिल्ली के मीरांडा हाउस में अध्यापिका रहीं। धर्मयुग में धारावाहिक रूप से प्रकाशित उपन्यास आपका बंटी से लोकप्रियता प्राप्त करने वाली मन्नू भंडारी विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्षा भी रहीं। लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे।
मन्नू भंडारी ने कहानियां और उपन्यास दोनों लिखे हैं। विवाह विच्छेद की त्रासदी में पिस रहे एक बच्चे को केंद्र में रखकर लिखा गया उनका उपन्यास `आपका बंटी’ (१९७१) हिन्दी के सफलतम उपन्यासों में गिना जाता है। मन्नू भंडारी हिन्दी की लोकप्रिय कथाकारों में से हैं। इसी प्रकार ‘यही सच है’ पर आधारित ‘रजनीगंधा’ नामक फिल्म अत्यंत लोकप्रिय हुई थी । इसके अतिरिक्त उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, व्यास सम्मान और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत।
प्रमुख रचनाएँ –
कहानी-संग्रह :-
एक प्लेट सैलाब (१९६२)
मैं हार गई (१९५७)
तीन निगाहों की एक तस्वीर
यही सच है (१९६६)
त्रिशंक
श्रेष्ठ कहानियाँ
आँखों देखा झूठ
नायक खलनायक विदूषक
उपन्यास :-
आपका बंटी,
महाभोज,
स्वामी,
एक इंच मुस्कान,
कलवा,
एक कहानी यह भी
पटकथाएँ :-
रजनी,
निर्मला,
स्वामी,
दर्पण।
नाटक :-
बिना दीवारों का घर।
दूरदर्शन द्वारा ‘दो कलाकार’ कहानी पर बनाई गई संक्षिप्त फ़ीचर फ़िल्म
‘दो कलाकार’ कहानी पर बनाई गई एनिमेशन फ़िल्म
कठिन शब्दार्थ
गलतफ़हमी – गलत समझ लेना
घनचक्कर – भ्रमित करने वाला
प्रतीक – चिह्न, प्रतिरूप
पंडिताइन – विदुषी
इकलौती – एकमात्र
सामर्थ्य – क्षमता
साधन – कार्यपूर्ति का माध्यम
मूसलाधार – तेज़ वर्षा
उल्लास – प्रसन्नता
ईष्या – जलन
ढिंढोरा पीटना – सबसे कहते फिरना
नवाबी चलाना – अधिकार जताना
रोब खाना – दबना
हाड़ तोड़कर परिश्रम करना – कड़ी मेहनत करना
तूली – कूँची ( Brush)
शोहरत – प्रसिद्धि
हुनर – कौशल
तमन्ना – इच्छा
निरक्षर – अनपढ़
लोहा मानना – प्रभुत्व स्वीकार करना
फ़रमाइश – माँग
प्रदर्शनी – नुमाइश
चौरासी लाख योनियाँ — चौरसी लाख जीव-जंतुओं के प्रकार
झंडा लेकर निकल पड़ना – किसी कार्य को बड़े जोर-शोर से करना
शोहरत के ऊँचे कगार पर – प्रसिद्धि की ऊँचाई पर
ज्ञान की छाप लगाई – बुद्धिमानी का परिचय दिया।
चरित्र-चित्रण
अरुणा
अरुणा कहानी की प्रमुख पात्रा है और चित्रा की घनिष्ठ मित्र है। वह होस्टल में रहकर पढ़ाई करती है, किन्तु उसका मन समाज-सेवा में ज्यादा लगता है। वह हर समय समाज-सेवा में व्यस्त रहती है। वह गरीब बच्चों को पढ़ाना अपना कर्त्तव्य समझती है। वह भावुक, संवेदनशील, दयालु, दूसरों के दुख को अपना दुख समझने वाली, दूसरों की समस्या व संकट में स्वयं को भुला देने वाली लड़की है। एक भिखारिन की मृत्यु होने पर उसके अनाथ बच्चों को अपनाकर अरुणा उन्हें अपनी ममता की छाया प्रदान करती है।
चित्रा
चित्रा अरूणा की सखी है, जो उसके साथ हॉस्टल में एक ही कमरे में रहती है। चित्रा धनी पिता की एकमात्र संतान है। समाज के उपेक्षित वर्ग के कष्टों से नितांतअनभिज्ञ उसे कला से अति प्रेम है। वह महत्वाकांक्षी तथा कला जगत् में यश प्राप्त करने की इच्छुक है। उसकी सह्रदयता और संवेदनशीलता मात्र चित्रों तक सीमित है। अपनी भावनाओं को चित्रों के द्वारा प्रस्तुत करने में वह कुशल है। समाज से प्रत्यक्ष रूप में न जुड़ पाने के कारण ही चित्रा का चरित्र अरूणा के सामने बौना लगता है।
शीर्षक की सार्थकता
‘दो कलाकार’ मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कहानी है। प्रस्तुत कहानी में कथानक शुरू से लेकर अंत तक दो कलाकार सहेलियों के आस-पास घूमता रहता है। एक चित्रकार है, तो दूसरी समाज सेविका। एक कला के प्रति समर्पित है और जीवन के रंगों को कैनवास पर उतारना चाहती है, जबकि दूसरी जीवन का सार सेवा-भाव में खोजती है। इसतरह दोनों की रुचियों को, उनके लक्ष्य को कहानी में स्पष्ट किया गया है। कहानी के अंत में दोनों सहेलियों की मुलाकात जब होती है, तब चित्रा एक चित्रकार के रुप में प्रसिद्धि पा चुकी होती है। जिस भिखारिन के बच्चों वाली चित्र ने चित्रा को प्रसिद्धि के उच्च शिखर पर पहुँचा दिया था, उन्हीं बच्चों का पालन-पोषण अरुणा करती है। अतः यह प्रश्न उभरकर सामने आता है कि कौन कलाकार है ? वह जिसने चित्र बनाया है या वह जिसने पालन-पोषण किया है ? अतः दोनों कलाकार मिलकर कहानी के शीर्षक की सार्थता को सिद्ध करते है |
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