Hindi, asked by sonamahi, 1 year ago

summary of gaban novel in hindi in 300 words​

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Answered by jarnailsingh81460944
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Answer:

गबन प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। ‘निर्मला’ के बाद ‘गबन’ प्रेमचंद का दूसरा यथार्थवादी उपन्यास है। कहना चाहिए कि यह उसके विकास की अगली कड़ी है। ग़बन का मूल विषय है - 'महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव'।

ग़बन प्रेमचन्द के एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। इन्होंने समझौतापरस्त और महत्वाकांक्षा से पूर्ण मनोवृत्ति तथा पुलिस के चरित्र को बेबाकी से प्रस्तुत करते हुए कहानी को जीवंत बना दिया गया है।

इस उपन्यास में प्रेमचंद ने पहली नारी समस्या को व्यापक भारतीय परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा है और उसे तत्कालीन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से जोड़कर देखा है। सामाजिक जीवन और कथा-साहित्य के लिए यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है। यह उपन्यास जीवन की असलियत की छानबीन अधिक गहराई से करता है, भ्रम को तोड़ता है। नए रास्ते तलाशने के लिए पाठक को नई प्रेरणा देता है।

कथानक संपादित करें

‘ग़बन’ की नायिका, जालपा, एक चन्द्रहार पाने के लिए लालायित है। उसका पति कम वेतन वाला क्लर्क है यद्यपि वह अपनी पत्नी के सामने बहुत अमीर होने का अभिनय करता है। अपनी पत्नी को संतुष्ट करने के लिए वह अपने दफ्तर से ग़बन करता है और भागकर कलकत्ता चला जाता है जहां एक कुंजड़ा और उसकी पत्नी उसे शरण देते हैं। डकैती के एक जाली मामले में पुलिस उसे फंसाकर मुखबिर की भूमिका में प्रस्तुत करती है।

उसकी पत्नी परिताप से भरी कलकत्ता आती है और उसे जेल से निकालने में सहायक होती है। इसी बीच पुलिस की तानाशाही के विरूद्ध एक बड़ी जन-जागृति शुरू होती है। इस उपन्यास में विराट जन-आन्दोलनों के स्पर्श का अनुभव पाठक को होता है। लघु घटनाओं से आरंभ होकर राष्ट्रीय जीवन में बड़े-बड़े तूफान उठ खड़े होते हैं। एक क्षुद्र वृत्ति की लोभी स्त्री से राष्ट्र-नायिका में जालपा की परिणति प्रेमचंद की कलम की कलात्मकता की पराकाष्ठा है।

इसमें दो कथानक हैं - एक प्रयाग से सम्बद्ध और दूसरा कोलकाता से सम्बद्ध। दोनों कथानक जालपाकी मध्यस्थता द्वारा जोड़ दिए गये हैं। कथानक में अनावश्यक घटनाओं और विस्तार का अभाव है। प्रयाग के छोटे से गाँव के जमींदार के मुख़्तार महाशय दीनदयाल और मानकी की इकलौती पुत्री जालपा को बचपन से ही आभूषणों, विशेषत: चन्द्रहार की लालसा लग गयी थी। वह स्वप्न देखती थी कि विवाह के समय उसके लिए चन्द्रहार ज़रूर चढ़ेगा। जब उसका विवाह कचहरी में नौकर मुंशी दयानाथ के बेकार पुत्र रमानाथ से हुआ तो चढ़ावे में और गहने तो थे, चन्द्रहार न था। इससे जालपा को घोर निराशा हुई।

प्रयाग से सम्बद्ध संपादित करें

दीनदयाल और दयानाथ दोनों ने अपनी- अपनी बिसात से ज़्यादा विवाह में खर्च किया। दयानाथ ने कचहरी में रहते हुए रिश्वत की कमाई से मुँह मोड़ रखा था। पुत्र के विवाह में वे कर्ज़ से लद गये। दयानाथ तो चन्द्रहार भी चढ़ाना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी जागेश्वरी ने उनका प्रस्ताव रद्द कर दिया था। जालपा की एक सखी शहजादी उसे चन्द्रहार प्राप्त करने के लिए और उत्तेजित करती है। जालपा चन्द्रहार की टेक लेकर ही ससुराल गयी। घर की हालत तो खस्ता थी, किंतु रमानाथ ने जालपा के सामने अपने घराने की बड़ी शान मार रखी थी। कर्ज़ उतारने के लिए जब पिता ने जालपा के कुछ गहने चुपके से लाने के लिए कहा तो रमानाथ कुछ मानसिक संघर्ष के बाद आभूषणों का सन्दूक चुपके से उठाकर उन्हें दे आते है और जालपा से चोरी हो जाने का बहाना कर देते हैं किंतु अपने इस कपटपूर्ण व्यवहार से उन्हें आत्मग्लानि होती है, विशेषत: जब कि वे अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते हैं। जालपा का जीवन तो क्षुब्ध हो उठता है। अब रमानाथ को नौकरी की चिंता होती है। वे अपने शतरंज के साथी विधुर और चुंगी में नौकरी करने वाले रमेश बाबू की सहायता से चुंगी में तीस रुपये की मासिक नौकरी पा जाते हैं। जालपा को वे अपना वेतन चालीस रुपये बताते हैं। इसी समय जालपा को अपनी माता का भेजा हुआ चन्द्रहार मिलता है, किंतु दया में दिया हुआ दान समझकर वह उसे स्वीकार नहीं करती। अब रमानाथ में जालपा के लिए गहने बनवाने का हौसला पैदा होता है। इस हौसले को वे सराफों के कर्ज़ से लद जाने पर भी पूरा है। इन्दुभूषण वकील की पत्नी रतन को जालपा के जड़ाऊ कंगन बहुत अच्छे लगते हैं। वैसे ही कंगन लाने के लिए वह रमानाथ को 600 रुपये देती है। सर्राफ इन रुपयों को कर्जखाते में जमाकर रमानाथ को कंगन उधार देने से इंकार कर देता हैं। रतन कंगनों के लिए बराबर तकाज़ा करती रहती है। अंत में वह अपने रुपये ही वापस लाने के लिए कहती है। उसके रुपये वापस करने के ख्याल से रमानाथ चुंगी के रुपये ही घर ले आते हैं। उनकी अनुपस्थिति में जब रतन अपने रुपये माँगने आती हैं तो जालपा उन्हीं रुपयों को उठाकर दे देती हैं। घर आने पर जब रमानाथ को पता लगा तो उन्हें बड़ी चिंता हुई। ग़बन के मामले में उनकी सज़ा हो सकती थी। सारी परिस्थिति का स्पष्टीकरण करते हुए उन्होंने अपनी पत्नी के नाम एक पत्र लिखा। वे उसे अपनी पत्नी को देने या न देने के बारे में सोच ही रहे थे, कि वह पत्र जालपा को मिल जाता हैं। उसे पत्र पढ़ते देखकर उन्हें इतनी आत्म- ग्लानि होती है कि वे घर से भाग जाते हैं जालपा अपने गहने बेचकर चुंगी के रुपये लौटा देती है। इसके पश्चात कथा कलकत्ते की ओर मुड़ती है।

Answered by muho
6

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गबन प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। ‘निर्मला’ के बाद ‘गबन’ प्रेमचंद का दूसरा यथार्थवादी उपन्यास है। कहना चाहिए कि यह उसके विकास की अगली कड़ी है। ग़बन का मूल विषय है - 'महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव'।

ग़बन प्रेमचन्द के एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। इन्होंने समझौतापरस्त और महत्वाकांक्षा से पूर्ण मनोवृत्ति तथा पुलिस के चरित्र को बेबाकी से प्रस्तुत करते हुए कहानी को जीवंत बना दिया गया है।

इस उपन्यास में प्रेमचंद ने पहली नारी समस्या को व्यापक भारतीय परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा है और उसे तत्कालीन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से जोड़कर देखा है। सामाजिक जीवन और कथा-साहित्य के लिए यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है। यह उपन्यास जीवन की असलियत की छानबीन अधिक गहराई से करता है, भ्रम को तोड़ता है। नए रास्ते तलाशने के लिए पाठक को नई प्रेरणा देता है।

कथानक संपादित करें

‘ग़बन’ की नायिका, जालपा, एक चन्द्रहार पाने के लिए लालायित है। उसका पति कम वेतन वाला क्लर्क है यद्यपि वह अपनी पत्नी के सामने बहुत अमीर होने का अभिनय करता है। अपनी पत्नी को संतुष्ट करने के लिए वह अपने दफ्तर से ग़बन करता है और भागकर कलकत्ता चला जाता है जहां एक कुंजड़ा और उसकी पत्नी उसे शरण देते हैं। डकैती के एक जाली मामले में पुलिस उसे फंसाकर मुखबिर की भूमिका में प्रस्तुत करती है।

उसकी पत्नी परिताप से भरी कलकत्ता आती है और उसे जेल से निकालने में सहायक होती है। इसी बीच पुलिस की तानाशाही के विरूद्ध एक बड़ी जन-जागृति शुरू होती है। इस उपन्यास में विराट जन-आन्दोलनों के स्पर्श का अनुभव पाठक को होता है। लघु घटनाओं से आरंभ होकर राष्ट्रीय जीवन में बड़े-बड़े तूफान उठ खड़े होते हैं। एक क्षुद्र वृत्ति की लोभी स्त्री से राष्ट्र-नायिका में जालपा की परिणति प्रेमचंद की कलम की कलात्मकता की पराकाष्ठा है।

इसमें दो कथानक हैं - एक प्रयाग से सम्बद्ध और दूसरा कोलकाता से सम्बद्ध। दोनों कथानक जालपाकी मध्यस्थता द्वारा जोड़ दिए गये हैं। कथानक में अनावश्यक घटनाओं और विस्तार का अभाव है। प्रयाग के छोटे से गाँव के जमींदार के मुख़्तार महाशय दीनदयाल और मानकी की इकलौती पुत्री जालपा को बचपन से ही आभूषणों, विशेषत: चन्द्रहार की लालसा लग गयी थी। वह स्वप्न देखती थी कि विवाह के समय उसके लिए चन्द्रहार ज़रूर चढ़ेगा। जब उसका विवाह कचहरी में नौकर मुंशी दयानाथ के बेकार पुत्र रमानाथ से हुआ तो चढ़ावे में और गहने तो थे, चन्द्रहार न था। इससे जालपा को घोर निराशा हुई।

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