Hindi, asked by dispr9ane9rjeeb, 1 year ago

Summary of harihar kaka

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Answered by Divyankasc
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Iss kahaani ke mukhyapaatr harihar kaaka hain. vah ek vrddh aur nisantaan vyakti hain. Apana kahane ke naam par unake teen bhaee hain. Unake unake bhaeeyon ka parivaar bhara-poora parivaar hai. Harihar kaaka inheen ke saath rahane mein apana sukh maanate hain. man ko sukh dene ke lie thaakurabaaree (mandir) hai. Harihar kaaka ke jeevan mein in donon ka vishesh mahatv hai. parantu inheen donon ne unhen apane svaarth ke lie chhala hai. Unhen harihar kaaka se koee lagaav aur prem nahin hai. Unka uddeshy hai ki harihar kaaka kee zameen ko kaise hadapa ja sake. vah zameen ko paane ke lie har tarah kee yukti ka prayog karate hain. Phir chaahe vah dhokha dekar ho ya shakti ka prayog karake ho. harihar kaaka inakee svaarthalolupata ke virooddh khade hokar apane astitv ko bachaane ka prayaas karate hain. in sab mein parivaar aur thaakurabaaree (mandir) ke prati unakee aastha samaapt ho jaatee hai. yah kahaanee graameen jeevan ke yarthaath ko samaaj ke samaksh benakaab karatee hai, jinaka mat hai ki gaanvon kee apeksha shaharon ke jeevan mein svaarthalolupata jyaada vidyamaan hai. aapasee rishton mein prem ke sthaan par laalach ka badhana rishton ke khokhalepan ko darshaata hai. samaaj mein prem samaapt ho raha hai. Yah bahut dukh kee baat hai.
Answered by jayathakur3939
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हरिहर काका पाठ का सार

लेखक कहता है कि वह हरिहर काका के साथ बहुत गहरे से जुड़ा था। लेखक का हरिहर काका के प्रति जो प्यार था वह लेखक का उनके व्यावहार के और उनके विचारों के कारण था और उसके दो कारण थे। पहला कारण था कि हरिहर काका लेखक के पड़ोसी थे और दूसरा कारण लेखक को उनकी माँ ने बताया था कि हरिहर काका लेखक को बचपन से ही बहुत ज्यादा प्यार करते थे। जब लेखक व्यस्क हुआ तो उसकी पहली दोस्ती भी हरिहर काका के साथ ही हुई थी।।

लेखक हरिहर काका के बारे में बताता हुआ कहता है कि हरिहर काका और उनके तीन भाई हैं।  हरिहर काका के अतिरिक्त सभी तीन भाइयों के बाल-बच्चे हैं। कुछ समय तक तो  हरिहर काका की सभी चीज़ों का अच्छे से ध्यान रखा गया, परन्तु फिर कुछ दिनों बाद हरिहर काका को कोई पूछने वाला नहीं था। लेखक कहता है कि अगर कभी हरिहर काका के शरीर की स्थिति ठीक नहीं होती तो हरिहर काका पर मुसीबतों का पहाड़ ही गिर जाता।  इतने बड़े परिवार के रहते हुए भी हरिहर काका को कोई पानी भी नहीं पूछता था।

हरिहर काका के गुस्से का महंत जी ने लाभ उठाने की सोची। महंत जी हरिहर काका को अपने साथ देव-स्थान ले आए और हरिहर काका को समझाने लगे की उनके भाई का परिवार केवल उनकी जमीन के कारण उनसे जुड़ा हुआ है, किसी दिन अगर हरिहर काका यह कह दें कि वे अपने खेत किसी और के नाम लिख रहे हैं, तो वे लोग तो उनसे बात करना भी बंद कर देंगें।

सुबह होते ही हरिहर काका के तीनों भाई देव-स्थान पहुँच गए। तीनों हरिहर काका के पाँव में गिर कर रोने लगे और अपनी पत्नियों की गलती की माफ़ी माँगने लगे और कहने लगे की वे अपनी पत्नियों को उनके साथ किए गए इस तरह के व्यवहार की सज़ा देंगे। हरिहर काका के मन में दया का भाव जाग गया और वे फिर से घर वापिस लौट कर आ गए।

गाँव के लोग जब भी कहीं बैठते तो बातों का ऐसा सिलसिला चलता जिसका कोई अंत नहीं था। कुछ लोग कहते कि हरिहर काका को अपनी जमीन भगवान के नाम लिख देनी चाहिए। इससे हरिहर काका को कभी न ख़त्म होने वाली प्रसिद्धि प्राप्त होगी। इसके विपरीत कुछ लोगों की यह मानते थे कि भाई का परिवार भी तो अपना ही परिवार होता है। अपनी जायदाद उन्हें न देना उनके साथ अन्याय करना होगा। इस विषय पर हरिहर काका ने बहुत सोचा और अंत में इस परिणाम पर पहुंचे कि अपने जीते-जी अपनी जायदाद का स्वामी किसी और को बनाना ठीक नहीं होगा।

लेखक कहता है कि जैसे-जैसे समय बीत रहा था महंत जी की परेशानियाँ बढ़ती जा रही थी। आधी रात के आस-पास देव-स्थान के साधु-संत और उनके कुछ साथी भाला, गंड़ासा और बंदूकों के साथ अचानक ही हरिहर काका के आँगन में आ गए। हरिहर काका को अपनी पीठ पर डाल कर कही गायब हो गए थे।वे हरिहर काका को देव-स्थान ले गए थे। एक ओर तो देव-स्थान के अंदर जबरदस्ती हरिहर काका के अँगूठे का निशान लेने और पकड़कर समझाने का काम चल रहा था, तो वहीं दूसरी ओर हरिहर काका के तीनों भाई सुबह होने से पहले ही पुलिस की जीप को लेकर देव-स्थान पर पहुँच गए थे। महंत और उनके साथियों ने हरिहर काका को कमरे में हाथ और पाँव बाँध कर रखा था और साथ ही साथ उनके मुँह में कपड़ा ठूँसा गया था ताकि वे आवाज़ न कर सकें। परन्तु हरिहर काका दरवाज़े तक लुढ़कते हुए आ गए थे और दरवाज़े पर अपने पैरों से धक्का लगा रहे थे ताकि बाहर खड़े उनके भाई और पुलिस उन्हें बचा सकें।

दरवाज़ा खोल कर हरिहर काका को बंधन से मुक्त किया गया।  हरिहर काका ने पुलिस को बताया कि वे लोग उन्हें उस कमरे में इस तरह बाँध कर कही गुप्त दरवाज़े से भाग गए हैं और उन्होंने कुछ खली और कुछ लिखे हुए कागजों पर हरिहर काका के अँगूठे के निशान जबरदस्ती लिए हैं।  यह सब बीत जाने के बाद हरिहर काका फिर से अपने भाइयों के परिवार के साथ रहने लग गए थे। चौबीसों घंटे पहरे दिए जाने लगे थे।

लेखक कहता है कि हरिहर काका के साथ जो कुछ भी हुआ था उससे हरिहर काका एक सीधे-सादे और भोले किसान की तुलना में चालाक और बुद्धिमान हो गए थे। उन्हें अब सब कुछ समझ में आने लगा था कि उनके भाइयों का अचानक से उनके प्रति जो व्यवहार परिवर्तन हो गया था, उनके लिए जो आदर-सम्मान और सुरक्षा वे प्रदान कर रहे थे, वह उनका कोई सगे भाइयों का प्यार नहीं था बल्कि वे सब कुछ उनकी धन-दौलत के कारण कर रहे हैं, नहीं तो वे हरिहर काका को पूछते तक नहीं।

जब हरिहर काका के भाई हरिहर काका को समझाते-समझाते थक गए, तो उन्होंने हरिहर काका को डाँटना और उन पर दवाब डालना शुरू कर दिया। एक रात हरिहर काका के भाइयों ने उन्हें धमकाते हुए कहा  कि ख़ुशी-ख़ुशी कागज़ पर जहाँ-जहाँ जरुरत है, वहाँ-वहाँ अँगूठे के निशान लगते जाओ, नहीं तो वे उन्हें मार कर वहीँ घर के अंदर ही गाड़ देंगे । हरिहर काका के साथ अब उनके भाइयों की मारपीट शुरू हो गई। जब हरिहर काका नें  ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर अपनी मदद के लिए गाँव वालों को आवाज लगाना शुरू कर दिया।

हरिहर काका के परिवार और रिश्ते-नाते के लोग जब तक गाँव वालों को समझाते की यह सब उनके परिवार का आपसी मामला है, वे सभी इससे दूर रहें, तब तक महंत जी बड़ी ही दक्षता और तेज़ी से वहाँ पुलिस की जीप के साथ आ गए। पुलिस ने घर के अंदर से हरिहर काका को बुरी हालत में हासिल किया ,हरिहर काका ने बताया कि उनके भाइयों ने उनके साथ बहुत ही ज्यादा बुरा व्यवहार किया है, जबरदस्ती बहुत से कागजों पर उनके अँगूठे के निशान ले लिए है, उन्हें बहुत ज्यादा मारा-पीटा है।  

इस घटना के बाद हरिहर काका अपने परिवार से एकदम अलग रहने लगे थे। उन्हें उनकी सुरक्षा के लिए चार राइफलधारी पुलिस के जवान मिले थे।

पुलिस के जवान हरिहर काका के खर्चे पर ही खूब मौज-मस्ती से रह रहे थे। जिसका धन वह रहे उपास, खाने वाले करें विलास अर्थात हरिहर काका के पास धन था लेकिन उनके लिए अब उसका कोई महत्त्व नहीं था और पुलिस वाले बिना किसी कारण से ही हरिहर काका के धन से मौज कर रहे थे। अब तक जो नहीं खाया था, दोनों वक्त उसका भोग लगा रहे थे।

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