Summary of hindi air pollution poems
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आज शहर में बढ़ा प्रदूषण
मुश्किल हुआ साँस का लेना,
शुद्ध हवा के बिन जीवन की
संभव नहीं नाव को खेना।
चारों ओर धुआँ है फैला
धुन्ध गगन में लगती छाई,
थोड़ी - सी दूरी की चीजें
पड़ती हैं अब नहीं दिखाई।
धरती पर कुहरा - सा छाया
घुटा घुटा - सा रहता है दम,
दुबके रहते लोग घरों में
निकल रहे हैं बाहर भी कम।
फैलाती हैं रोज प्रदूषण
धुआँ उगलती लाखों गाड़ी,
फिर भी रात दिवस बिन सोचे
पेड़ों पर चलती कुल्हाड़ी।
खेतों में उद्योग लग गए
जंगल में जा पहुँची बस्ती,
खेल रहे हैं हम कुदरत से
हुई जिन्दगी इससे सस्ती।
बिन सोचे हम चढ़े जा रहे
नव - विकास की कैसी सीढ़ी,
शुद्ध हवा के बिना हमारी
तड़प रही है जिससे पीढ़ी।
अगर बचाना है जीवन तो
रखें हवा का शुद्ध आवरण,
हो उत्सर्जित धुआँ न्यूनतम
और अधिकतम वृक्षारोपण।
धरती पर लाने हरियाली
पेड़ों को बच्चों - सा पालें,
छोड़ विषैला धुआँ हवा में
जीवन ना संकट में डालें।
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