Summary of kartavya and satyata 12th hindi
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कर्तव्य और सत्यता पाठ का सारांश
कर्तव्य और सत्यता नामक पाठ हिंदी के प्रसिद्ध लेखक ‘आचार्य श्यामसुंदर दास’ द्वारा रचित किया गया है, यह उनके गृंथ ‘नीति शिक्षा’ से लिया गया है। इस पाठ में उन्होंने कर्तव्य और सत्यता के स्वरूप एवं उसके महत्व पर प्रकाश डाला है।
इस पाठ के माध्यम से लेखक ने हमें अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहने की शिक्षा दी है। लेखक कहता है कि झूठ बोलना छोड़ना, पापाचार करना छोड़ना, राग द्वेष छोड़कर सत्य के मार्ग पर चलना ही श्रेयस्कर है।
कर्तव्य वो कार्य है जिसका पालन करने से हम लोगों की नजरों में श्रेष्ठ बनते हैं और अगर हम अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते हैं तो हम लोगों की नजरों में गिर सकते हैं। इसलिए हमें बचपन से ही कर्तव्य का पालन करने की शिक्षा मिलती रहनी चाहिए। घर में माता-पिता अपनी संतानों को कर्तव्य पालन की शिक्षा देते हैं और विद्यालय में गुरु लोग इसी कार्य की शिक्षा देते हैं।
कर्तव्य का अर्थ है न्याय का साथ देना और बुरे कार्यों को करने से बचना। जहां बुरा कार्य करने से ग्लानि का अनुभव होता है। वहीं कोई अच्छा श्रेष्ठ कार्य करने से मन में सुख और संतोष का अनुभव होता है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी आत्मा की आवाज सुनें और हमारी अंतरात्मा हमसे जो करने के लिए वो करें। जिस कार्य करने के लिए वो हमें मना करे वो न करें।
किसी दूसरे का धन चुराने से, चोरी करने से, गलग आचरण करने से जो धन कमाया जाता है और उस धन से जैसा जीवन व्यतीत किया जाता है वो चंद दिन का सुख देता है, बाद में हमें उसका फल भुगतना ही पड़ता है। हमें वैसा नहीं करना चाहिए और अपनी कर्तव्य पर डटे रहना चाहिए। हमें अपने धर्म के अनुसार कर्तव्य करना चाहिए और कर्तव्य से कभी भी पीछे नही हटना नहीं चाहिए।
कर्तव्य पालन और सत्यता में बहुत बड़ा संबंध है। सत्यता पर चुपचाप रह जाना और जिस पर हमारे बोलने की जरूरत है और हम नहीं बोलते हैं तो असत्यता ही कहलायेगा। इसलिए हमेशा स्पष्ट बोलना चाहिए और झूठ का खुलकर विरोध करना चाहिए। झूठ की हमेशा निंदा करनी चाहिए। अपने वचन का पालन करना चाहिए और उसे पूरा करना चाहिए। कर्तव्य और सत्यता का पालन करने से जो सुख प्राप्त होता है उसकी कल्पना अतुलनीय है।