summary of Kritika chapter 3
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लेखिका सिक्किम की राजधानी गैंगटाॅक घूमने गई थी। रात में ढलान पर सितारों की जगमगाती झालर ने उसे इतना सम्मोहित किया कि वह उसी दिन सुबह एक नेपाली युवती से सीखी प्रार्थना- ‘मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो’, करने लगी। अगले दिन मौसम साप़्ाफ न होने के कारण लेखिका कंचनजंघा की चोटी तो नहीं देख सकी, परंतु ढेरों खिले पफूल देखकर खुश हो गई। वह उसी दिन गैंगटाॅक से 149 किलोमीटर दूर यूमथांग देखने अपनी सहयात्राी मणि और गाइड जितेन नार्गे के साथ रवाना हुई। वहाँ के लोग बौद्ध धर्म को बहुत मानते थे। रास्ते में उन्होंने बौद्ध अनुयायियों की लगाई सप़्ोफद और रंगीन झंडियाँ देखीं। ‘कवी-लोंग स्टाॅक, नामक स्थान पर हिंदी फिल्म ‘गाइड’ की शूटिंग का स्थान देखा। वहीं लेपचा और भुटिया जातियों का शांति वार्ता स्थान भी देखा। एक कुटिया में पापों को धोने वाला प्रेयर व्हील देखा। उफँचाई पर चढ़ते हुए धीरे-धीरे लेखिका को स्थानीय लोगों का दिखना बंद हो गया। नीचे घर ताश के पत्तों जैसे छोटे-छोटे दिखने लगे। हिमालय की विशालता दिखने लगी। रास्ते सँकरे और घुमावदार होने लगे। गहरी खाइयाँ बादलों से भरी थीं। हरियाली के बीच कहीं-कहीं खिले फूल भी थे। हिमालय की सुंदरता ने यात्रियों को प्रभावित किया और वे प्रार्थना के लोक-गीत गाने लगे। चाँदी की तरह चमकती तिस्ता नदी लगातार सिलीगुड़ी से साथ-साथ चल रही थी। प्रसन्न लेखिका ने भी हिमालय को सलामी देनी चाही थी कि जीप चलती हुई सेवन सिस्टर्स फॅाल के सामने आ खड़ी हुई। झरने की कल-कल और ठंडक ने लेखिका के मन की सारी दुर्भावनाओं को खत्म कर दिया। सत्य और सौंदर्य की अनुभूति से वह भावुक हो उठी। आगे बढ़ने पर बादलों की लुका-छिपी के बीच हिमालय की शोभा हरे, पीले और कहीं पथरीले रूप में फिर दिखाई देने लगी। पल-पल बदलती और सुंदर होती प्रकृति के विराट रूप के आगे लेखिका को अपना अस्तित्व तिनके जैसा लगा। अज्ञान दूर हुआ। आत्मज्ञान होते ही एक बार फिर उसने प्रार्थना ‘मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो’, दोहराई।
लेखिका ने बच्चों को पीठ पर बाँधेए सँकरे रास्तों को फूलदाल से चैड़ा करती पहाड़ी स्त्रिायों को देखा। चाय बागानों में काम करने वाली स्त्रिायों को भी देखा। 7-8 साल के ऐसे बच्चों को देखाए जो तीन साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई पैदल चढ़कर पढ़ने के लिए विद्यालय जाते हैं। जंगल से लकड़ी काटकर लाने, पानी भरने और मवेशियों को चराने के काम में स्त्रिायों के साथ जुड़े बच्चों को देखकर लेखिका को पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों का अहसास हुआ। उसे लगा कि मैदानों की तुलना में पहाड़ों में भूख, मौत, दीनता और जिंदा रहने को लेकर संघर्ष अधिक है। रास्ते में कई जगह सावधानीपूर्वक चलने के निर्देश लिखे थे।
यूमथांग जाते हुए लेखिका को रात लायुंग की शांत बस्ती में बितानी पड़ी। वहाँ उसने यह विचार किया कि मनुष्य ने प्रकृति की लय, ताल और गति को बिगाड़कर बहुत बड़ा अपराध किया है। बर्फ देखने की इच्छा लायुंग में भी पूरी न होने के कारण 500 फीट उँचाई पर ‘कटाओं यानी भारत का स्विट्ज़रलैंड’ जाने का निश्चय किया गया। कटाओ का पूरा रास्ता अधिक खतरनाक और धुंध से भरा था। वहाँ पहुँचने पर ताज़ा बर्फ से पूरे ढके पहाड़ चाँदी से चमक रहे थे। घुटनों तक बर्फ जमीन पर बिछी थी और गिर भी रही थी। यात्राी आनंद उठाने लगे। लेखिका की मित्रा ने कटाओ को स्विट्ज़रलैंड से भी अधिक उँचाई पर बताया। लेखिका ने भी उस सुंदर दृश्य को हृदय में समो लिया। वह आध्यात्मिकता से जुड़ गई। वह विचार करने लगी कि शायद ऐसी ही सुंदरता से प्रेरित होकर ऋषियों ने वेदों की रचना की होगी और जीवन के सत्यों को खोजा होगा। मणि ने हिम शिखरों को एशिया के जल स्तंभ बताया। कड़कड़ाती ठंड में पहरा देते फौजियों की कर्तव्यनिष्ठा ने लेखिका को भावुक बना दिया। कटाओं से यूमथांग की ओर जाते हुए प्रियुता और रूडोडेंड्रो ने फूलों की घाटी को भी देखा। यूमथांग कटाओ जैसा सुंदर नहीं था। वहाँ एक सिक्किमी स्त्राी ने अपना परिचय जब इंडियन कहकर दिया, तो लेखिका खुश हो गई। रास्ते में गाइड नार्गे ने चाँदनी रात में भौंकने वाले वुफत्ते दिखाए। गुरुनानक के पदचिह्नों वाला एक ऐसा पत्थर दिखाया, जहाँ कभी उनकी थाली से चावल छिटककर बाहर गिर गए थे। खेदुम नाम का एक किलोमीटर का ऐसा क्षेत्र भी दिखाया, जहाँ देवी-देवताओं का निवास माना जाता है। नार्गे ने पहाड़ियों के पहाड़ों, नदियों, झरनों और वादियों के प्रति पूज्य भाव की भी जानकारी दी। कप्तान शेखर दत्ता के सुझाव पर गैंगटाॅक के पर्यटक स्थल बनने और नए रास्तों के साथ नए स्थानों को खोजने के प्रयासों की भी जानकारी दी।