Hindi, asked by nirmalkamal03, 1 year ago

summary of meera ke padh

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Answered by Sanjita123457790l
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that answer is very useful for many students. hope you'll like it.... please mark as brainliest :)
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Answered by 9110111968
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हरि आप हरो जन री भीर।

इस पद में मीरा ने भगवान विष्णु की भक्तवात्सल्यता का चित्रण किया है। हरि विष्णु का एक प्रचलित नाम है। मीरा ने कई उदाहरण देकर यह बताया है कि कैसे भगवान विष्णु भक्तों की पीड़ा हरते हैं।

द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।

जब द्रौपदी की लाज संकट में पड़ गई थी तो हरि ने कृष्ण के अवतार में अनंत साड़ी प्रदान करके द्रौपदी की लाज बचाई थी।

भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुञ्जर पीर।

प्रह्लाद भी विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे। जब प्रह्लाद का जीवन संकट में पड़ गया था तब विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की थी। जब ऐरावत को मगरमच्छ ने पकड़ लिया था तो विष्णु ने मगरमच्छ को मारकर ऐरावत की जान बचाई थी।

दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर॥

मीराबाई का कहना है कि जो भी सच्चे मन से हरि की आराधना करेगा हरि हमेशा उसका कष्ट दूर करेंगे। मीरा कहती हैं कि वो भी कृष्ण की दासी हैं। चूँकि कृष्ण हरि के ही रूप हैं इसलिए वो मीरा का भी दुख दूर करेंगे।

स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिंदरावन री कुंज गली में, गोविंद लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।

इन पंक्तियों में मीरा ने भक्ति की चरम सीमा का वर्णन किया है। वह कृष्ण की भक्ति में उनके यहाँ नौकर तक बनने को तैयार हैं। नौकरों की सामाजिक स्थिति से हम सभी पूरी तरह से परिचित हैं। उनकी बड़ी दयनीय दशा होती है। हर कोई उन्हें तिरस्कार से देखता है। फिर भी मीरा भगवान के यहाँ नौकर या दासी बनना चाहती हैं। इसमे मीरा को क्या क्या लाभ होने वाले हैं, इसका मीरा ने बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है। जब मीरा बाग लगाएँगी तो उसी बहाने रोज उन्हें श्याम के दर्शन होंगे। फिर वे भक्ति भाव से अभिभूत होकर वृन्दावन की संकरी गलियों में गोविंद की लीला गाती फिरेंगी। चाकरी से मीरा को तीन मुख्य फायदे होंगे। उन्हें दर्शन और सुमिरन खर्चे के लिए मिलेंगे और भाव और भक्ति की जागीर मिलेगी।

मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजंती माला।
बिंदरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।

कृष्ण के उस रूप का वर्णन मीरा ने किया है जो जग जाहिर है। कृष्ण के पीले वस्त्र, मोर का मुकुट और गले में वैजयंती माला बहुत सुंदर लगती है। कृष्ण जब वृंदावन में इस रूप में गाय चराते हैं तो उनका रूप मोहने वाला होता है। हिंदू संस्कृति में पीला रंग सूर्य के तेज और उत्तम स्वास्थ्य की निशानी मानी जाती है। पीला रंग बसंत के आगमन का भी सूचक है। इसलिए हमारे यहाँ पूजा में गेंदे के फूल का मुख्य स्थान रहता है। कृष्ण का गाय चराना भी हमारी पुरानी अर्थव्यवस्था का प्रतीक है। पुराने जमाने में पशुधन का बहुत महत्व होता था। कृष्ण की गाय चराने की प्रक्रिया उसी पशु धन की रक्षा और उसकी वृद्धि का सूचक है।

ऊँचा, ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साई।
आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रा तीरां।
मीरां रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ।

अगली पंक्तियों में मीरा कहती हैं कि ऊँचे महलों में वो बगीचे बनवाएँगी। उन्हीं बगीचों में वे पूरे साज श्रृंगार करके कृष्ण के दर्शन करेंगी। अब मीरा का हृदय इतना अधीर हो गया है कि वे चाहती हैं कि भगवान उन्हें आधी रात में ही दर्शन दे दें।

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