Hindi, asked by SnehaKhemani, 1 year ago

Summary of nakhoon kyun bharte hain by hazari prasad dwivedi

Answers

Answered by anuragkumar1067
12
पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने जब यह लिखा कि प्रकृति ने नाखून बढ़ाने का काम इसलिए जारी रखा है कि मनुष्य को याद दिलाती रहे, तुम अब भी नखदंत वाले वही जीव हो जो पशुओं के साथ समान धरातल पर विचरता था तो कवि जानता था कि यह विचार एक दिन उसके अवश्य काम आएगा।

वह अब नाखून कुतरता हुआ कविता से ललित निबंध में उतरना चाहता है। उसने कोलगेट, 2जी, कॉमनवेल्थ गेम्स, क्वात्रोची, गुड़गांव की जमीन, दिल्ली के दंगे-सब पर प्रेम कविताएं लिखीं। नामदार सूट पर मुरकियां और अनाम छुट्टियों पर विरह-हाईकू लिखे। भू-अधिग्रहण पर सक्रोध सोरठे रचे। केजरीवाल पर दोहे, नीतीश कुमार पर चौपाई, लालू पर कुंडलियां और यहां तक कि यूपी के मंत्री राममूर्ति पर सुंदर नवगीत लिख दिया। फिर भी उसे लगता है कि उसकी प्रतिभा व्यर्थ गई। किसी नायक के काम न आई। तभी उसे याद आया, कविता बचाती मनुष्य को है। इसीलिए उसकी कविता के नायक पिट गए, मनुष्य खड़ा रहा। चुनांचे वह ललित मोदी के नाम से प्रेरित होकर विधा बदलना चाहता है।
उसे पता चल गया है कि यह भारतीय राजनीतिक लूट का ललित निबंध युग है। इसकी शुरुआत पूंजी, ग्लैमर और सत्ता की डिक्शनरी से निकले आईपीएल के पब में हुई थी। वह सुंदर शब्द बीन रहा है। फिल्मी, कॉरपोरेट, गरीबपरवर, समाजवादी, वकील, मंत्री, पूर्व मंत्री, चीयर्स, मुनाफा।

'ललित होने के लिए किसी क्षण को क्या चाहिए?' मैंने कवि से पूछा।ललित बस ललित होता है। उसी से लालित्यपूर्ण पूंजी और मोहक नीतिमत्ता की राहें खुलती हैं। तुम देख रहे हो कि मैं कविता लिखूंगा तो मुझे शशि थरूर, राजीव शुक्ला, शरद पवार, चिदंबरम, श्रीनिवासन, सट्टा, दामाद, नाच, नाच के साथी, प्रायोजक आदि में वह लय नहीं मिलेगी, जो अभी सोचे गए ललित निबंध में है।'

'पर यह सब तो बहुत पहले से है। कविता तो आदि सत्य को कहती है। ललित निबंध रम्य रचना हो जाती है। भीतर से बाहर आने में आदमी भटक भी सकता है।'
भटकन सत्य है। लालित्य उसमें है, जिसे अफीम खाकर मारिजुआना पर भाषण देना है, गांव लूटकर सोने की गुणवत्ता का बखान करना है, जाली नोट चलाकर-अपनी इंजीनियरिंग में महारत का पर्चा पढ़ना है। यह सीधा-सादा, कानूनी और नैतिक ललित निबंध है।'

'एक नंबर की ख्याति, दो नंबर की छवि और बिना नंबर के पैसे के कॉमन मूल्य को आप ललित में कैसे बांधेंगे?'
ललित में एक सुविधा है, जो व्याकरण से नहीं, भावना से आती है। सबसे ललित क्रिकेट है। यहां कप्तान उसी सीमेंट कंपनी का डायरेक्टर भी होता है, जिसके मालिक का काम कप्तान चुनना और दामाद के जरिए पैसा लगाना होता है। यहां भारत रत्न बनाने की टाइमिंग भी इतनी कलात्मक होती है कि सत्ता के युवराज की स्टेडियम में एंट्री सध जाए। पूंजी की भाषा का सौंदर्य बोध नदी में संगीत सुनता है। मैं पत्तों में हृदय की खनक सुना सकता हूं। कविता चुगली कर देती थी, ललित निबंध में वही सुविधा है जो किसी चालू शराब के ठेकेदार से विचारों का कुंभ प्रायोजित करने में मिल जाती है।'
आप तो उन वकीलों की तरह बात कर रहे हैं जो पिछले घोटालों में मंत्री थे और अब दूसरे घोटाले वालों के मुकदमे लड़ रहे हैं।'

'आप फिर पूंजी में विलास की सीमा पर अटके हुए हैं। आप ललित पर उतरिए। मदिर-मदिर हवा चल रही है, आइसक्रीम पर चैरी रखी है, जहाज हिलोरें ले रहा है। तर्क कानूनी हैं, शक्ति आर्थिक है, मुद्रा नैतिक है। मौसम नहीं, मन चाहिए। ललित निबंध में सबसे बड़ी खूबी यह होगी कि मैं अपने मन का मौसम उसमें प्रकट कर सकता हूं। चाहे मौसम जो हो, बनेगा वही जो मेरा मन बनाएगा।'

'भ्रष्टाचार में लास्य भाव कहां से आएगा?'

'पारिवारिकता, प्रेम और परंपरा का लास्य अनंत होता है। यह जनपथ पर सालों से बहता था, वह अब भी बहता है।'
कवि नेल पॉलिश निकालकर नाखूनों पर लगा रहा है। कुतरे हुए नाखूनों पर पॉलिश करना एक मुश्किल काम है। पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी का बहाना लेकर ललित निबंध में कूदना भी हिम्मत का काम है। पर कवि भी जानता है, यूपीए से एनडीए तक 'नाखून क्यों बढ़ते हैं।'

anuragkumar1067: i think this is right or......
Similar questions