Hindi, asked by funnyrohitd2479, 1 year ago

Summary of netaji ka chashma

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Answered by naitik144529
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Explanation:

नेताजी का चश्मा’ कहानी केप्टन चश्मेवाले के माध्यम से देश के करोड़ों नागरिकों के योगदान को रेखांकित करती है, जो इस देश के निर्माण में अपने-अपने तरीके से योगदान देते हैं। कहानी के अनुसार बड़े ही नहीं, बच्चे भी इसमें शामिल हैं। देश बनता है उसमें रहने वाले सभी नागरिकों, नदियों, पहाड़ों, पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों से और इन सबसे प्रेम करने तथा इनकी सुख-समृद्धि के लिए प्रयास करने की भावना का नाम देशभक्ति है।

पाठ का सार

हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम से एक कस्बे से गुजरना पड़ता था। कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। लेकिन उसमें एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक नगरपालिका भी थी। अब नगरपालिका थी, तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी। इसी नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार मुख्य बाजाार के मुख्य चैराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं ज्यादा हो रही थी। अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के ड्राइंग मास्टर को मूर्ति बनाने का काम सौंपा गया। मूर्ति सुंदर थी। केवल एक चीज की कसर थी। नेताजी की आँख पर चश्मा नहीं था। एक सचमुच के चश्मे का चैड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब ने पहली बार मूर्ति को देखा तो सोचा - वाह भई! यह आइडिया भी ठीक है। मूर्ति पत्थर की, लेकिन चश्मा रियल। दूसरी बार हालदार साहब कस्बे से गुजरे तो मूर्ति पर तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा था। तीसरी बार फिर नया चश्मा था। इस बार वे पानवाले से पूछ ही बैठे कि नेताजी का चश्मा हर बार बदल केसे जाता है। पानवाले ने बताया कि केप्टन चश्मेवाला ऐसा करता है। हालदार साहब समझ गए कि चश्मेवाले को नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के बुरी लगती होगी, इसलिए अपने उपलब्ध फ्रेमों में से एक को वह नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता होगा। जब किसी ग्राहक को वैसा ही फ्रेम चाहिए होता है जैसा कि मूर्ति पर लगा है, तो केप्टन वह फ्रेम मूर्ति से उतारकर ग्राहक को देता है और मूर्ति पर नया फ्रेम लगा देता है। किसी कारणवश मूर्ति के लिए ओरिजनल चश्मा बना ही न था। हालदार साहब ने पानवाले से जानना चाहा कि केप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है या आजााद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही? उसने बताया कि वह लँगड़ा क्या फौज में जाएगा। यह तो उसका पागलपन है। हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का मजााक  उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। केप्टन चश्मेवाले की दुकान नहीं थी, वह  फेरी लगाकर चश्मे  बेचता था। दो साल के भीतर हालदार साहब ने नेताजी की मूर्ति पर कई तरह के चश्मे लगे देखे। एक बार जब हालदार साहब कस्बे से गुजरे, तो मूर्ति पर  कोई चश्मा नहीं था। पूछने पर पता चला कि कैप्टन मर गया। उन्हें बहुत दुख हुआ। पंद्रह दिन बाद कस्बे से गुजरे, तो सोचा कि वहाँ नहीं रुकेंगे, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की ओर देखेंगे भी नहीं। लेकिन आदत से मजबूर चैराहा आते ही आँखें मूर्ति की ओर उठ गईं। वे जीप से उतरे और मूर्ति के सामने जाकर खड़े हो गए। मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। यह देखकर हालदार साहब की आँखें भर आईं।

लेखक परिचय

स्वंय प्रकाश

इनका जन्म सन 1947 में इंदौर (मध्य प्रदेश) में हुआ। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढाई कर एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी करने वाले स्वंय प्रकाश का बचपन और नौकरी का बड़ा हिस्सा राजस्थान में बिता। फिलहाल वे स्वैछिक सेवानिवृत के बाद भोपाल में रहते हैं और वसुधा सम्पादन से जुड़े हैं।

प्रमुख कार्य

कहानी संग्रह - सूरज कब निकलेगा, आएँगे अच्छे दिन भी, आदमी जात का आदमी, संधान।

उपन्यास - बीच में विनय और ईंधन।

कठिन शब्दों के अर्थ

कस्बा - छोटा शहर

लागत - खर्च

उहापोह - क्या करें, क्या ना करें की स्थिति

शासनाविधि - शासन की अविधि

कमसिन - कम उम्र का

सराहनीय - प्रशंसा के योग्य

लक्षित करना - देखना

कौतुक - आश्चर्य

दुर्दमनीय - जिसको दबाना मुश्किल हो

गिराक - ग्राहक

किदर - किधर

उदर - उधर

आहत - घायल

दरकार - आवश्यकता

द्रवित - अभिभूत होना

अवाक् - चुप

प्रफुल्लता - ख़ुशी

हृदयस्थली - विशेष महत्व रखने वाला स्थान

Answered by Anonymous
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