summary of poem atmaparichay
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कविता 'आत्मपरिचय' में कवि अपना परिचय देता है। कविवर बच्चन जी इस कवितांश में अपने और संसार के मध्य के रिश्तों की विवेचना करते हुए कहते हैं कि यह संसार जिसमें मैं आया हुआ हूं, उसका जीवन जीने का और जीवन के साथ व्यवहार करने का अपना एक पारंपरिक ढंग है। कवि अपना आत्मपरिचय देते हुए कहते हैं कि मैं इसी प्राप्त प्रेम की शराब को पिया करता हूं। इसका नशा मुझे अलौकिक आनंद से सराबोर कर देता है। इसमें डूबे रहने के कारण मैं दुनिया के बारे में सोचता तक नहीं। इसी कारण से दुनिया ने मुझे उपेक्षित कर रखा है।
कवि के हृदय में उनके अपने मौलिक विचार हैं। वे उन्हें व्यक्त करने के लिये व्याकुल रहते हैं। उनके पास संसार को देने के लिये अनोखे और अनुपम उपहार हैं, वे उन्हें संसार को भेंट कर देने के लिये उत्साह से भरे हुए हैं। उनके सामने जैसा संसार है, उसमें उन्हें अधूरापन दिखायी देता है। इसी अधूरेपन के कारण यह दुनिया उन्हें अच्छी नहीं लगती। उनके जीवन में अन्य लोगों की तरह ही सुख और दुख दोनों ही हैं, पर कवि सुख में अहंकारी नहीं होते और दुख में विचलित नहीं हो जाते। दोनें में ही एक प्रकार की मस्ती का अनुभव करते हैं।
कवि कहते हैं कि वे अपने अंदर युवावस्था की जो विषेश उमंग होती है, दसे सदैव ही साथ लिये रहते हैं। पर उमंग में भी प्रेम की उदासियां हैं। इसके कारएा वे दुनिया को दिखाने के लिये खुया रहा करते हैं, परंतु अंदर ही अंदर रोया करते हैं। इसका कारण है कि उनके हृदय में किसी प्रियजन की स्मृतियां बसी हुई हैं।
कवि कहते हैं कि मैं अलग किस्म का आदमी हूं जबकि यह दुनिया मुझसे भिन्न प्रकार की है। इसलिये इसके साथ मेरा कोई नाता संभव ही नहीं है। कवि कहते है कि मैं जब रुदन करता हूं, तब उसमें में प्रेम की अविरल धारा रहा करती है। मेरी वाणी भले ही षीतल हो, किंतु वह उन शब्दों का उच्चारण करती है, जिनमें आग होती है। संसार की विसंगतियों को जला डालने की उसमें क्षमता है। यद्यपि मेरा हृदय एक ध्वस्त इमारत की तरह है, फिर भी वह ऐसे प्रेम की इमारत है, जिस पर सम्राटों के आलीशान महल भी लुटाये जा सकें।
बच्चन जी अपनी कविता में कहते हैं कि जब मैंने अपने पीड़ाजनित रुदन को जब अभिव्यक्त किया तो लोगों ने उसे मेरा गीत गाना निरूपित किया। इसी तरह जब आंतरिक पीड़ा से मैं विव्हल हो गया, तो उसे छंद निर्माण माना गया। बच्चन जी आगे कहते हैं कि इस दुनिया में मैं दीवानों का वेश बनाये घूमता हूं। मैं अपनी भावनाओं और विचारों की कभी भी खत्म न होने वाली मादकता लिये हूं। मैं अपनी इसी मस्ती के ऐसे पैगाम लेकर निकला हूं, जिसे सुनकर संसार झूमने लगेगा।
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कविता 'आत्मपरिचय' में कवि अपना परिचय देता है। कविवर बच्चन जी इस कवितांश में अपने और संसार के मध्य के रिश्तों की विवेचना करते हुए कहते हैं कि यह संसार जिसमें मैं आया हुआ हूं, उसका जीवन जीने का और जीवन के साथ व्यवहार करने का अपना एक पारंपरिक ढंग है। कवि अपना आत्मपरिचय देते हुए कहते हैं कि मैं इसी प्राप्त प्रेम की शराब को पिया करता हूं। इसका नशा मुझे अलौकिक आनंद से सराबोर कर देता है। इसमें डूबे रहने के कारण मैं दुनिया के बारे में सोचता तक नहीं। इसी कारण से दुनिया ने मुझे उपेक्षित कर रखा है।
कवि के हृदय में उनके अपने मौलिक विचार हैं। वे उन्हें व्यक्त करने के लिये व्याकुल रहते हैं। उनके पास संसार को देने के लिये अनोखे और अनुपम उपहार हैं, वे उन्हें संसार को भेंट कर देने के लिये उत्साह से भरे हुए हैं। उनके सामने जैसा संसार है, उसमें उन्हें अधूरापन दिखायी देता है। इसी अधूरेपन के कारण यह दुनिया उन्हें अच्छी नहीं लगती। उनके जीवन में अन्य लोगों की तरह ही सुख और दुख दोनों ही हैं, पर कवि सुख में अहंकारी नहीं होते और दुख में विचलित नहीं हो जाते। दोनें में ही एक प्रकार की मस्ती का अनुभव करते हैं।
कवि कहते हैं कि वे अपने अंदर युवावस्था की जो विषेश उमंग होती है, दसे सदैव ही साथ लिये रहते हैं। पर उमंग में भी प्रेम की उदासियां हैं। इसके कारएा वे दुनिया को दिखाने के लिये खुया रहा करते हैं, परंतु अंदर ही अंदर रोया करते हैं। इसका कारण है कि उनके हृदय में किसी प्रियजन की स्मृतियां बसी हुई हैं।
कवि कहते हैं कि मैं अलग किस्म का आदमी हूं जबकि यह दुनिया मुझसे भिन्न प्रकार की है। इसलिये इसके साथ मेरा कोई नाता संभव ही नहीं है। कवि कहते है कि मैं जब रुदन करता हूं, तब उसमें में प्रेम की अविरल धारा रहा करती है। मेरी वाणी भले ही षीतल हो, किंतु वह उन शब्दों का उच्चारण करती है, जिनमें आग होती है। संसार की विसंगतियों को जला डालने की उसमें क्षमता है। यद्यपि मेरा हृदय एक ध्वस्त इमारत की तरह है, फिर भी वह ऐसे प्रेम की इमारत है, जिस पर सम्राटों के आलीशान महल भी लुटाये जा सकें।
बच्चन जी अपनी कविता में कहते हैं कि जब मैंने अपने पीड़ाजनित रुदन को जब अभिव्यक्त किया तो लोगों ने उसे मेरा गीत गाना निरूपित किया। इसी तरह जब आंतरिक पीड़ा से मैं विव्हल हो गया, तो उसे छंद निर्माण माना गया। बच्चन जी आगे कहते हैं कि इस दुनिया में मैं दीवानों का वेश बनाये घूमता हूं। मैं अपनी भावनाओं और विचारों की कभी भी खत्म न होने वाली मादकता लिये हूं। मैं अपनी इसी मस्ती के ऐसे पैगाम लेकर निकला हूं, जिसे सुनकर संसार झूमने लगेगा।