Summary of poem Dharti ka Angan Meheykey
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कवि कहता है कि धरती का आंगन कर्मरूपी ज्ञान और विज्ञान की सुगंध से महक उठे। चारों तरफ ज्ञान की ऐसी सरिता प्रवाहित हो कि खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, नगर-गाँव सब खिल उठें। लोगों के मन में नित नई-नई अभिलाषायें उत्पन्न हों और उनकी वो सारी अभिलाषायें पूर्ण हों। उनके विश्वास दृढ़ हों।
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