Hindi, asked by cakash8191, 10 months ago

Summary of सहर्ष स्वीकारा है

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Answered by divya14321
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Answer:

कविता में जीवन के सुख– दुख‚ संघर्ष– अवसाद‚ उठा– पटक को समान रूप से स्वीकार करने की बात कही गई है।

स्नेह की प्रगाढ़ता अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर वियोग की कल्पना मात्र से त्रस्त हो उठती है।

प्रेमालंबन अर्थात प्रियजन पर यह भावपूर्ण निर्भरता‚ कवि के मन में विस्मृति की चाह उत्पन्न करती है।वह अपने प्रिय को पूर्णतया भूल जाना चाहता है |

वस्तुतः विस्मृति की चाह भी स्मृति का ही रूप है। यह विस्मृति भी स्मृतियों के धुंधलके से अछूती नहीं है।प्रिय की याद किसी न किसी रूप में बनी ही रहती है|

परंतु कवि दोनों ही परिस्थितियों को उस परम् सत्ता की परछाईं मानता है।इस परिस्थिति को खुशी –खुशी स्वीकार करता है |दुःख-सुख ,संघर्ष –अवसाद,उठा –पटक, मिलन-बिछोह को समान भाव से स्वीकार करता है|प्रिय के सामने न होने पर भी उसके आस-पास होने का अहसास बना रहता है|

भावना की स्मृति विचार बनकर विश्व की गुत्थियां सुलझाने में मदद करती है| स्नेह में थोड़ी निस्संगता भी जरूरी है |अति किसी चीज की अच्छी नहीं |’वह’ यहाँ कोई भी हो सकता है दिवंगत माँ प्रिय या अन्य |कबीर के राम की तरह ,वर्ड्सवर्थ की मातृमना प्रकृति की तरह यह प्रेम सर्वव्यापी होना चाहता है |

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