Summary of silver wedding of 2 hindi
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"नहीं, नहीं, आप सब लोग खाइए," यशोधर बाबू ने बच्चों के दोस्तों से कहा, “प्लीज़ गो अहेड। नो फ़ारमैल्टी।"
यशोधर बाबू ने आज पूजा में कुछ ज्यादा ही देर लगाई। इतनी देर कि ज्यादातर मेहमान उठ कर चले जाएँ।
उनकी पत्नी, उनके बच्चे, बारी-बारी से आकर झाँकते रहे और कहते रहे, जल्दी कीजिए मेहमान लोग जा रहे हैं।
शाम की पंद्रह मिनट की पूजा को लगभग पच्चीस मिनट तक खींच लेने के बाद भी जब बैठक से मेहमानों की आवाजें आती सुनाई दी तब यशोधर बाबू पद्मासन साधकर ध्यान लगाने बैठ गए, वह चाहते थे कि उन्हें प्रकाश का एक नीला बिंदु दिखाई दे, मगर उन्हें किशनदा दिखाई दे रहे थे। | यशोधर बाबू किशनदा से पूछ रहे थे कि 'जो हुआ होगा' से आप कैसे मर गए? किशनदा कह रहे थे कि भाऊ सभी जन इसी 'जो हुआ होगा' से मरते हैं, गृहस्थ हों, ब्रह्मचारी हों, अमीर हों, गरीब हों, मरते 'जो हुआ होगा' से ही हैं। हाँ-हाँ, शुरू में और आखिर में, सब अकेले ही होते हैं। अपना कोई नहीं ठहरा दुनिया में, बस अपना नियम अपना हुआ। | यशोधर बाबू ने पाजामा-कुर्ते पर ऊनी ड्रेसिंग गाउन पहने, सिर पर गोल विलायती टोपी, पाँवों में देशी खड़ाऊँ और हाथ में डंडा धारण किए इस किशनदा से अकेलेपन के विषय में बहस करनी चाही। उनका विरोध करने के लिए नहीं बल्कि बात कुछ और अच्छी तरह समझने के लिए।
हर रविवार किशनदा शाम को ठीक चार बजे यशोधर बाबू के घर आया करते थे। उनके लिए गरमा-गरम चाय बनवाई जाती थी। उनका कहना था कि जिसे फेंक मारकर न पीना पड़े वह चाय कैसी। चाय सुड़कते हुए किशनदा प्रवचन करते थे और यशोधर बाबू बीच-बीच में शंकाएँ उठाते थे।
यशोधर बाबू को लगता है कि किशनदा आज भी मेरा मार्गदर्शन कर सकेंगे और बता सकेंगे कि मेरे बीवी-बच्चे जो कुछ भी कर रहे हैं उसके विषय में मेरा रवैया क्या होना चाहिए?
लेकिन किशनदा तो वही अकेलेपन का खटराग अलापने पर आमादा से मालूम होते हैं। कैसी बीवी, कहाँ के बच्चे, यह सब माया ठहरी और यह जो भूषण आज इतना उछल रहा है वह भी किसी दिन इतना ही अकेला और असहाय अनुभव करेगा, जितना कि आज तू कर रहा है। | यशोधर बाबू बात आगे बढ़ाते लेकिन उनकी घरवाली उन्हें झिड़कते हुए आ पहुँची कि क्या आज पूजा में ही बैठे रहोगे। यशोधर बाबू आसन से उठे और उन्होंने दबे स्वर में पूछा, * मेहमान गए?" पत्नी ने बताया, "कुछ गए हैं, कुछ हैं। उन्होंने जानना चाहा कि कौन-कौन हैं? आश्वस्त होने पर कि सभी रिश्तेदार ही हैं वह उसी लाल गमछे में बैठक में चले गए जिसे पहनकर वह संध्या करने बैठे थे। यह गमछा पहनने की आदत भी उन्हें किशनदा से विरासत में मिली है और उनके बच्चे इसके सख्त खिलाफ़ हैं।
| "एवरीबडी गॉन, पार्टी ओवर?" यशोधर बाबू ने मुसकुराकर अपनी बेटी से पूछा, " अब गोया गमछा पहने रखा जा सकता है?"
उनकी बेटी झल्लाई, 4 लोग चले गए, इसका मतलब यह थोड़ी है कि आप गमछा पहनकर बैठक में आ जाएँ। बब्बा, यू आर द लिमिट।"
"बेटी, हमें जिसमें सज आएगी वही करेंगे ना, तुम्हारी तरह जीन पहनकर हमें तो सज आती नहीं।" यशोधर बाबू की दृष्टि मेज़ पर रखे कुछ पैकेटों पर पड़ी। बोले, “ये कौन भूले जा रहा है?" भूषण बोला, “ आपके लिए प्रेजेंट हैं, खोलिए ना।"
* अह, इस उम्र में क्या हो रहा है प्रेजेंट-वरजैंट! तुम खोलो, तुम्हीं इस्तेमाल करो।" कहकर शर्मीली हँसी हँसे।
भूषण सबसे बड़ा पैकेट उठाकर उसे खोलते हुए बोला, “इसे तो ले लीजिए। यह मैं आपके लिए लाया हूँ। ऊनी ड्रेसिंग गाउन है। आप सवेरे जब दूध लेने जाते हैं बब्बा, फटा पुलोवर पहन के चले जाते हैं जो बहुत ही बुरा लगता है। आप इसे पहन के जाया कीजिए।"
बेटी पिता का पाजामा-कुर्ता उठा लाई कि इसे पहनकर गाउन पहनें। थोड़ा-सा ना-नुच करने के बाद यशोधर जी ने इस आग्रह की रक्षा की। गाउन का सैश कसते हुए उन्होंने कहा, "अच्छा तो यह ठहरा ड्रेसिंग गाउन।"
उन्होंने कहा और उनकी आँखों की कोर में जरा-सी नमी चमक गई।
यह कहना मुश्किल है कि इस घड़ी उन्हें यह बात चुभ गई कि उनका जो बेटा यह कह रहा है कि आप सवेरे ड्रेसिंग गाउन पहनकर
सिल्वर वैडिंग के पाठ का सारांश।
Explanation:
सिल्वर वैडिंग के पाठ में हम लोग को आज के सामाजिक मौलिकता के बारे में पता चलता हैं। कैसे आज के आधुनिक युग में हम धीरे-धीरे मानविकता के मूल भावों को भूलते जा रहें हैं, उसी के विषय में ही यहाँ काफी चर्चा की गई हैं। इस कहानी के मुख्य नायक के जीवनी में इसको देखा जा सकता हैं।
इसलिए आधुनिकता के चलते हमें, कभी भी अपने संस्कृति और मर्यादा को नहीं भूलना चाहिए। आधुनिकता के नाम पर हो रहे भद्दे काम इस बात को दर्शाते हैं की, हम लोग इन पाश्चात भावों के प्रति कितना आकृष्ट हो गए हैं।