summary of soor ke pad ???
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'पद' सूरदास द्वारा लिखित पद हैं। ये पद भ्रमरगीत से लिए गए हैं। ये पद उद्धव और गोपियों के बीच हुई वार्तालाप को दर्शाते हैं। उद्धव अति ज्ञानी व्यक्ति हैं। उनके अनुसार ज्ञान से ही मनुष्य का कल्याण हो सकता है। उसके लिए मनुष्य को योग का सहारा लेना चाहिए। कृष्ण, गोपियों को समझाने के लिए उद्धव को वृंदावन भेजते हैं। गोपियाँ उद्धव की ज्ञान भरी बातें सुनकर चिड़ जाती हैं। पहले पद में वे उद्धव पर व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि उद्धव कृष्ण के साथ रहते हुए भी कृष्ण प्रेम से विरक्त हैं। अत: उद्धव उनके प्रेम को समझने में असमर्थ हैं। कृष्ण के प्रेम में उन्हें दुख भी मिले, तो भी वे प्रसन्न हैं। दूसरे पद में वे सब यह स्वीकार करती हैं कि कृष्ण के जाने से उनके ह्दय में व्याप्त सारी अभिलाषाएँ दब गई हैं। उनके विरह में वे जल रही हैं और उद्धव का योग संदेश उन्हें और जला रहा है। कृष्ण ने अपने स्थान पर समझाने के लिए उद्धव को उनके पास भेज दिया है। तीसरे पद में गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि तुम्हारे द्वारा दिया जाने वाला योग का संदेश हमें कड़वी ककड़ी के समान अप्रिय है। कृष्ण के अतिरिक्त अब और कोई हमें सुहाता नहीं है। चौथे पद में गोपियाँ कृष्ण के प्रति अपना रोष प्रकट करती हैं और उद्धव से कहती हैं कि कृष्ण ने बहुत राजनीति पढ़ ली है। वह अब राजा हैं। राजा का कर्तव्य होता है कि अपनी प्रजा के हितों का ध्यान रखे। प्रजा को सताए नहीं लेकिन कृष्ण हमें सता रहें हैं जो राजधर्म नहीं हो सकता। इन सब पदों में गोपियों का कृष्ण के प्रति असीम और निस्वार्थ प्रेम प्रकट होता है।
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