Summary of tatara vamiro story
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प्रस्तुत पाठ 'तताँरा वामीरो कथा' अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप पर केंद्रित है। उस द्वीप पर एक -दूसरे से शत्रुता का भाव अपनी अंतिम सीमा पर पहुँच चूका था। इस शत्रुता की भावना को जड़ से उखाड़ने के लिए एक जोड़े को आत्मबलिदान देना पड़ा था। उसी जोड़े के बलिदान का वर्णन लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।
अपने सामने एक सुंदर युवक को देख कर वह युवती आश्चर्यचकित हो गई।उसने नकली नाराजगी दिखाते हुए उत्तर दिया।
"पहले ये बताओ कि तुम कौन हो,मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो और इस तरह के अनुचित या बेकार के प्रश्न पूछने का क्या कारण है ?”
तताँरा बार- बार अपना प्रश्न दोहराता रहा। तताँरा के बार - बार एक ही प्रश्न को दोहराने के कारण युवती चिढ़ गई। युवती ने कहा -आखिर मैं गीत क्यों गाऊं अर्थात मैं तुम्हारी बात क्यों मानूं ?क्या उसे गाँव का नियम नहीं मालूम कि एक गाँव का व्यक्ति दूसरे गाँव के व्यक्ति से बात नहीं कर सकता ? इतना कह कर वह युवती जाने के लिए तेज़ी से मुड़ी। उसके मुड़ते ही मानो तताँरा को कुछ होश आया। अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था। तताँरा उस युवती के सामने चला गया और उसका रास्ता रोक कर लाचारी के साथ प्रार्थना करने लगा कि तुम बस अपना नाम बता दो मैं तुम्हें जाने दूंगा। तताँरा द्वारा नाम पूछे जाने पर युवती ने जवाब दिया " वामीरो " यह नाम सुनना तताँरा को ऐसा लगा जैसे उसके कानों में किसी ने रस घोल दिया हो। तताँरा ने वामीरो से कहा कि कल वह वही चट्टान पर उसकी प्रतीक्षा करेगा । वह वामीरो को जरूर आने के लिए कहता है।
वामीरो ने तताँरा के बारे में बहुत सी कहानियाँ सुनी थी। उसकी सोच में तताँरा एक बहुत ही शक्तिशाली युवक था। परन्तु वही तताँरा जब वामीरो के सामने आया तो बिलकुल अलग ही रूप में था। वह सुंदर और शक्तिशाली तो था ही साथ ही साथ वह बहुत शांत ,समझदार और सीधा साधा था। वह बिलकुल वैसा ही था जैसा वामीरो अपने जीवन साथी के बारे में सोचती थी। परन्तु दूसरे गाँव के युवक के साथ उसका सम्बन्ध रीति रिवाजों के विरुद्ध था। इसलिए वामीरो ने तताँरा को भूल जाना ही समझदारी समझा। परन्तु यह आसान नहीं लग रहा था क्योकि तताँरा बार -बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था जैसे वह बिना पलकों को झपकाए उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो।
तताँरा दिन ढलने से बहुत पहले ही लपाती गाँव की उस समुद्री चट्टान पर पहुँच गया था जहाँ उसने वामीरो को आने के लिए कहा था। वामीरो के इन्तजार में उसे हर एक पल बहुत अधिक लम्बा लग रहा था। उसके अंदर एक शक भी पैदा हो गया था कि अगर वामीरो आई ही नहीं तो।उसके पास प्रतीक्षा करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वामीरो तताँरा से मिलने आए गई।
तताँरा और वामीरो अब हर रोज उसी जगह मिलने लगे। लपाती के कुछ युवकों को इस प्रेम के बारे में पता चल गया और ये खबर हवा की तरह हर जगह फैल गई। वामीरो लपाती गाँव की रहने वाली थी और तताँरा पासा गाँव का। दोनों का सम्बन्ध किसी भी तरह संभव नहीं था। क्योंकि रीतिरिवाज़ के अनुसार दोनों के सम्बन्ध के लिए दोनों का एक ही गाँव का होना जरुरी था।
कुछ समय के बाद पासा गाँव में 'पशु पर्व 'का आयोजन किया गया। पशु पर्व में हटे -कटे पशुओं के दिखावे के अलावा पशुओं से युवकों की शक्ति परखने की प्रतियोगितायें भी होती थी। तताँरा का मन इन में से किसी भी कार्यक्रम में नहीं लग रहा था। उसकी परेशान आँखे तो वामीरों को ढूंढने में व्यस्त थी।जब तताँरा ने वामीरो को देखा तो उसकी आँखें नमी से भरी थी और उसके होंठ डर कर काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वामीरो फुट -फुटकर रोने लगी। तताँरा इस तरह वामीरो को रोता देखकर भावुक हो गया। वामीरो के रोने की आवाज सुनकर वामीरो की माँ वहाँ आ गई और दोनों को एक साथ देख कर गुस्सा हो गई। उसने तताँरा को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया। गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे। लोगो की बातों को सुनना अब तताँरा के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा था।अचानक उसका हाथ उसकी तलवार पर आकर टिक गया। गुस्से से उसने तलवार निकली। उसने अपने गुस्से को शांत करने के लिए अपनी पूरी शक्ति से तलवार को धरती में गाड़ दिया और अपनी पूरी ताकत से उसे खींचने लगा ।जो लकीर तताँरा ने खींची थी उस लकीर की सीध में धरती फटती जा रही थी।तताँरा द्वीप के एक ओर था और वामीरो दूसरी ओर। तताँरा को जैसे ही होश आया ,उसने देखा कि द्वीप के जिस ओर वह है वो टुकड़ा समुद्र में धँसने लगा है। अब वह तड़पने लगा, वह छलांग लगा कर दूसरी ओर जाना चाहता था परन्तु उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह निचे की ओर फिसलने लगा।वह उस कटे हुए द्वीप के उस आखरी भू -भाग पर बेहोश पड़ा हुआ था जो संयोगवश उस द्वीप से जुड़ा हुआ था। बहता हुआ तताँरा कहा गया ,उसके बाद उसका क्या हुआ ये कोई नहीं जान सका। इधर वामीरो तताँरा से अलग होने के कारण पागल हो गई। वह हर समय बस तताँरा को ही खोजती रहती और उसी जगह आकर घंटों बैठी रहती जहाँ वो तताँरा से मिलने आया करती थी। उसने खाना -पीना छोड़ दिया था। परिवार से वह कही अलग हो गई। लोगो ने उसे ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की परन्तु अब वामीरो का भी कोई सुराग नहीं मिला कि वह कहा गई।
आज ना तो तताँरा है और ना ही वामीरो है,परन्तु फिर भी आज उनकी प्रेमकथा हर घर में सुनाई जाती है। निकोबार के निवासियों का मानना है कि तताँरा की तलवार से कार -निकोबार के जो दो टुकड़े हुए, उसमे से दूसरा टुकड़ा आज लिटिल अंदमान के नाम से प्रसिद्ध है जो कार -निकोबार से 96 कि.मी. दूर स्थित है।निकोबार निवासीयों ने इस घटना के बाद अपनी परम्परा को बदला और दूसरे गाँव में भी विवाह सम्बन्ध बनने लगे। तताँरा - वामीरो की जो एक -दूसरे के लिए त्यागमयी मृत्यु थी वह शायद इसी सुखद बदलाव के लिए थी।