Hindi, asked by anjali874, 5 months ago

Summary of the lesson rid ki haddi​

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Answered by krishanagupta2007
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maybe it will help u

good evening

byee

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Answered by Anonymous
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Summary

उमा को देखने के लिए गोपाल प्रसाद और उनका लड़का शंकर आने वाले हैं। रामस्वरूप और उनका नौकर (रतन) कमरे को सजाने में लगे हुए हैं। तख़्त पर दरी और चादर बिछाकर, उस पर हारमोनियम रखा गया है। नाश्ता आदि भी तैयार किया जा रहा है। इतने में ही वहाँ प्रेमा आती है और कहती है कि तुम्हारी बेटी तो मुँह फुलाए पड़ी हुई है, तभी रामस्वरूप् कहते हैं कि उसकी माँ किस मर्ज की दवा है। जैसे–तैसे वे लोग मान गए हैं। अब तुम्हारी बेवकूफी से सारी मेहनत बेकार चली जाए तो मुझे दोष मत देना। तब प्रेमा कहती है, तुमने ही उसको पढ़ा–लिखाकर सिर चढ़ा लिया है। मैंने तो पौडर–वौडर उसके सामने लाकर रखा दिया है, पर वह इन सब चीज़ो से नफरत करती है। रामस्वरूप कहते हैं, न जाने इसका दिमाग कैसा है।

उमा बी॰ए॰ तक पढ़ी हुई है, परंतु रामस्वरूप लड़के वालों को दसवीं पास तक ही पढ़ी बताते हैं क्योंकि लड़के वालों को कम पढ़ी–लिखी लड़की ही चाहिए। नाश्ते में टोस्ट रखने के लिए मक्खन नहीं है। रामस्वरूप ने नौकर रतन को मक्खन लाने के लिए भेज दिया है। बाहर जाते हुए रतन देखता है कि कोई घर की ओर आ रहा है। वह मालिक को बताता ही है कि थोड़ी देर में दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है और दरवाजा खुलने पर गोपाल प्रसाद और उनका लड़का शंकर अंदर आते हैं। रामस्वरूप उन दोनों लोगों का स्वागत करते हैं। दोनों बैठकर अपने ज़माने की तुलना नए ज़माने से करते हैं। अपनी आवाज़ और तरीके को बदलते हुए गोपाल प्रसाद कहते हैं, अच्छा तो साहब ‘बिजनेस‘ की बातचीत की जाए। वे शादी–विवाह को एक ‘बिजनेस‘ मानते हैं।

रामस्वरूप उमा को बुलाने के लिए अंदर जाते हैं तभी पीछे से गोपाल प्रसाद अपने बेटे शंकर से कहते हैं कि आदमी तो भला है। मकान–वकान से तो इन लोगों की हैसियत बुरी नहीं लगती है, पर यह तो पता चले कि लड़की कैसी है? गोपाल प्रसाद अपने बेटे को झुककर बैठने पर डाँटते हैं। रामस्वरूप दोनों को नाश्ता कराते हैं और इधर-उधर की बातें भी करते हैं। गोपाल प्रसाद लड़की की सुंदरता के बारे में पूछते हैं तो रामस्वरूप कहते हैं कि वह तो आप खुद ही देख लीजिएगा। फिर जन्मपत्रियों के मिलाने की बात चलती है तो रामस्वरूप कहते हैं कि मैंने उन्हें भगवान के चरणों में रख दिया है, आप उन्हें मिला हुआ ही समझ लीजिए। बातचीत के साथ ही गोपाल प्रसाद लड़की की पढ़ाई–लिखाई के बारे में भी पूछना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हमें तो मैट्रिक पास बहू चाहिए। मुझे उससे नौकरी तो करानी नहीं है।

उमा को बुलाने पर वह सिर झुकाकर तथा हाथ में पान की तश्तरी लेकर आती है। उमा के पहने चश्मे को देखकर गोपाल प्रसाद और शंकर दोनों ही एक साथ बोलते हैं–चश्मा! रामस्वरूप उमा के चश्मा लगाने की वजह को स्पष्ट कर देते हैं। दोनों ही संतुष्ट हो जाते हैं। गोपाल प्रसाद उमा की चाल और चेहरे की छवि देखते हुए गाने–बजाने के बारे में भी पूछते हैं। तब उमा सितार उठाकर गीत सुनाती है और उमा की नज़र उस लड़के पर पड़ती है तो वह उसे पहचान कर गाना बदं कर देती है। फिर उमा से गोपाल प्रसाद उसकी पेंटिंग–सिलाई के बारे में पूछते है तो इसका उत्तर रामस्वरूप दे देते हैं। तब गोपाल प्रसाद उमा से कुछ इनाम–विनाम जीतने के संबंध में पूछते हुए उमा को ही उत्तर देने के लिए कहते हैं। रामस्वरूप भी उमा को ही जवाब देने के लिए कहते हैं।

और मज़बूत आवाज में मैं क्या जवाब दूं, बाबूजी। जब कुर्सी–मेज़ बेची जाती है, तब दुकानदार मेज़–कुर्सी से कुछ नहीं पूछता है , केवल खरीददार को दिखा देता है। पसंद आ जाता है तो अच्छा, वरना……। रामस्वरूप क्रोधित होकर उमा को डाँटते हैं।

उमा बोलती है अब मुझे कहने दीजिए, बाबूजी। …… ये जो महाशय मुझे खरीदने के लिए आए हैं, ज़रा इनसे भी तो पूछिए कि क्या लड़कियों के दिल नहीं होता? क्या उनको चोट नहीं लगती है?

गोपाल प्रसाद गुस्से में आकर रामस्वरूप बाबू से कहते है कि, क्या आपने मुझे मेरी इज्ज़त उतारने के लिए यहाँ बुलाया था? तभी उमा गोपाल प्रसाद से कहती है कि आप इतनी देर से मेरी नाप–तोल कर रहे हैं, इसमें हमारी बेइज्जती नहीं हुई? और ज़रा अपने साहबजादे से पूछिए कि अभी पिछली फरवरी में ये लड़कियों के होस्टल के आस–पास क्यों चक्कर काट रहे थे? और ये वहाँ से केसे भगाए गए थे?

गोपाल प्रसाद उमा से कहते है कि तो क्या तुम कॉलेज में पढ़ी हो? उमा बोलती है-हाँ, मैं पढ़ी हूँ। मैंने बी ए पास किया है। मैंने न तो कोई चोरी की और न ही आपके पुत्र की तरह इधर–उधर ताक–झाँक कर कायरता का प्रदर्शन किया है। गोपाल प्रसाद खड़े हो जाते हैं और रामस्वरूप को बुरा–भला कहते हुए, अपने बेटे के साथ दरवाजे की ओर बढ़ते हैं।

उमा पीछे से कहती है कि जाइए, जरूर जाइए। घर जाकर जरा यह पता लगाइए कि आपके लाडले बेटे की रीढ़ की हड्डी है भी या नहीं। गोपाल प्रसाद और उनका लड़का दरवाज़े से बाहर चले जाते हैं और प्रेमा आती है। उमा रो रही है। यह सुनकर रामस्वरूप खड़े हो जाते हैं।

रतन आते हुए बोलता है बाबू जी, मक्खन! सभी उसकी तरफ देखने लगते हैं और एकांकी समाप्त हो जाता है।

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