Summary of the poem aa dharti kitna deti hai
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प्रकृति का नियम है कि वह सबको सबकी नीति के अनुसार सब कुछ देती है। हर मनुष्य का कर्म बहुत बड़ा खेल खेलता है।कर्म अच्छे हो तो धरती उसका अंबर उसका क्योंकि वह इनको पाने के लिए मैं,मेरा नहीं करता।
विधाता सबको देखता है ।धरती हमारा बोझ को उठाती है। हम उसे बिगाड़ते है। धरती प्रकोप भी करती है। इसलिए भूकंप,भूस्खलन होता है।
अर्थात --इस प्रकोप को कोई रोक नहीं सकता।
विधाता सबको देखता है ।धरती हमारा बोझ को उठाती है। हम उसे बिगाड़ते है। धरती प्रकोप भी करती है। इसलिए भूकंप,भूस्खलन होता है।
अर्थात --इस प्रकोप को कोई रोक नहीं सकता।
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