summary of the poem jaan bhar rhe jungle mein by nagarjun
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नागार्जुन की कविता – “जान भर रहे जंगल में” – का सारांश
‘नागार्जुन’ हिंदी के प्रसिद्ध कवि रहे हैं उनकी कविताएं ज्यादातर प्रकृति पर आधारित रही हैं। नागार्जुन प्रकृति प्रेमी रहे हैं। अपनी कविता “जान भर रहे जंगल में” उन्होंने प्रकृति की लय का वर्णन किया है।
नागार्जुन कहते हैं कि गीली, सुहानी भादो की काली अमावस रात है। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है, स्वयं प्रकाशित होने वाले नन्हें जीव जुगनू उस अंधेरे को अपने प्रकाश की आभा से आलोकित कर भंग कर रहे हैं। नागार्जुन कहते हैं कि वर्षा ऋतु की इस मंगल में बेला में जुगनू का अद्भुत योगदान बहुत लुभावना प्रतीत हो रहा है।
कवि नागार्जुन प्रकृति में मनुष्य की आभा के दर्शन करते हैं। वे यहां जुगनू को अंधकार के विरुद्ध योद्धाओं की तरह लड़ते हुए देखते हैं। वे कहते हैं कि जुगनू सर्वहारा शक्ति के प्रतीक बन रहे हैं। हमें यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वे छोटे से जीव मात्र हैं और पल भर में जलकर नष्ट हो जाएंगे। वे स्वयं प्रकाशित हैं यानी वह अपनी आंतरिक शक्ति से ही प्रकाशित होते हैं। वह हर समय प्रकाशित होते हैं और हर क्षण नष्ट होते हैं। यह प्रक्रिया उनके द्रव्य के ऊर्जा में और ऊर्जा के द्रव्य में बदलने की प्रक्रिया है। यह उनका प्रकृति प्रदत स्वभाव है।
कवि कहते हैं कि प्रकृति हो या जीवन सब कुछ एकदम से नष्ट नहीं होता। वह नष्ट होकर पुनः बनता है फिर नष्ट हो जाता है। यह प्रकृति का नियम है रूप बदलता है उसके साथ वस्तु का गुणधर्म और उसका सौंदर्य बदलता रहता है। जुगनू भी अंधकार से लड़ाई कर रहे हैं और अंधकार से हुए चलने वाले उनके दंगल में जुगनू की जीत सुनिश्चित है।
इस प्रकार कवि नागार्जुन ने यहां पर योद्धा शक्ति का बखान करते हुये उसका प्रतीक जुगनू को बनाया है जो अंधकार से युद्ध करते हैं, एक योद्धा का तरह। इसलिये उन्हें बेचारा जीव कह देना ठीक नही होगा।