summary of the poem Kaha kavirai in Hindi kundali
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गिरिधर कविराय के जीवन के संबंध में मतभेद हैं कई महानुभाव के अनुसार इनका जन्म 1717 माना जाता हैं | कहा जाता हैं यह अवध के किसी छोटे स्थान में जन्मे थे | यह अत्यंत दयालु व्यक्ति थे जिन्हें अपने परिवेश से बहुत प्रेम था | इनकी रचनाओं में जीवन के ज्ञान का अंश मिलता हैं जो मनुष्य को सही गलत का ज्ञान देता हैं | अच्छे बुरे में अंतर सिखाता हैं | इनकी जाति दाचित भाट कही जाती हैं परन्तु इनके जीवन जीवन से संबंधी कोई भी तथ्य पुर्णतः प्रमाणित नहीं हैं | इनके व्यवहार एवम आचारण का पता इनकी रचनाओं से लगाया जा सकता हैं |
Explanation:
कहते हैं इनका किसी बढ़ई से विवाद हो जाता हैं क्यूंकि इन्हें वृक्षों का दुरपयोग कतई मंजूर नहीं था उनके आँगन में एक बैर का वृक्ष था जिससे वे अत्यंत प्रेम करते थे बढ़ई ने उनके इसी प्रेम का फायदा उठाकर अपना बदला लेने की ठानी | एक दिन बढ़ई ने एक विशेष चारपाई बनाकर राजा को भेंट दी | उसकी विशेषता यह थी कि उसमे पंख लगाये गए थे उस पर बैठ कर व्यक्ति उड़ सकता था | यह देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने बढ़ई को ऐसी कई चारपाई बनाने का हुक्म दिया | तब बढ़ई ने कहा इसे बनाने के लिए जो लकड़ी लगती हैं वो गाँव के गिरिधर के आँगन में खड़े बैर के पेड़ से ही मिलती हैं और वे अपने पेड़ से बहुत प्रेम करते हैं | तब राजा ने सैनिको के जरिये जबरजस्ती गिरिधर के बैर के पेड़ को कटवाकर बढ़ई को दे दिया जिसे देख गिरिधर इतने दुखी हो गये कि सदा के लिये अपने गाँव को अलविदा कह कर चले गये |