Hindi, asked by Innu3873, 1 year ago

Summary of the poem ram lakshman parshuram samvad

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Answered by Mkambozz1322
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शिवधनुष टूटने के साथ सीता स्वयंवर की खबर मिलने पर परशुराम जनकपुरी में स्वयंवर स्थान पर आ जाते है। हाथ में फरसा लिए क्राेिधत हो धनुष तोड़ने वाले को सामने आने, सहस्त्रबाहु की तरह दडिंत होने और न आने पर वहाँ उपस्थित सभी राजाओं को मारे जाने की धमकी देते हैं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए राम आगे बढ़कर कहते हैं कि धनुष-भंग करने का बड़ा काम उनका कोई दास ही कर सकता है। परशुराम इस पर और क्रोधित होते हैं कि दास होकर भी उसने शिवधनुष को क्यों तोड़ा। यह तो दास के उपयुक्त काम नहीं है। लक्ष्मण परशुराम को यह कहकर और क्रोधित कर देते हैं कि बचपन में शिवधनुष जैसे छोटे कितने ही धनुषों को उन्होंने तोड़ा, तब वे मना करने क्यो नहीं आए आरै अब जब पुराना आरै कमजाोर धनुष् श्रीराम के हाथों में आते ही टूट गया तो क्यों क्रोधित हो रहे हैं। परशुराम जब अपनी ताकत से ध्रती को कई बार क्षत्रियों से हीन करके बा्र ह्मणों को दान देने और गर्भस्थ शिशुओं तक के नाश करने की बात बताते हैं तो लक्ष्मण उन पर शूरवीरों से पाला न पड़े जाने का व्यंग्य करते हैं। वे अपने कुल की परंपरा में स्त्राी, गाय और ब्राह्मण पर वार न करके अपकीर्ति से बचने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ स्वयं को पहाड़ और परशुराम को एक फूँक सिद्ध् करते हैं। ऋषि विश्वामित्रा परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए लक्ष्मण को बालक समझकर माफ करने का आगह्र करते है। वे समझाते है। कि राम आरै लक्ष्मण की शक्ति का परशुराम को अंदाजा नहीं है। अंत में लक्ष्मण के द्वारा कही गई गुरुऋण उतारने की बात सुनकर वे अत्यंत क्रुद्ध् होकर फरसा सँभाल लेते हैं। तब सारी सभा में हाहाकार मच जाता है आरै तब श्रीराम अपनी मधुर वाणी से परशुराम की क्रोध रूपी अग्नि को शांत करने का प्रयास करते हैं।

Answered by bhatiamona
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                    राम – लक्ष्मण – परशुराम संवाद का

परशुराम शिव के धनुष के टूटने के बाद परशुराम जी सुनकर परशुराम जी और क्रोधित हो जाते हैं| और कहते है उसने इस धनुष को तोड़कर मुझे युद्ध के लिए ललकारा है इसलिए वो मेरे सामने आये।

राम – लक्ष्मण- परशुराम जी यह बात सुन के लक्ष्मण उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहते है, हे मुनिवर हम बचपन में खेल खेल में ऐसे कई धनुष तोड़ दिए तब तो आप क्रोधित नहीं हुए।

परशुराम- हे राजा के बेटे तुम काल के वश में हो तुम में  अहंकार समाया हुआ है और इसी कारण वश तुम्हें यह नहीं पता चल पा रहा है की तुम क्या बोल रहे हो। क्या तुम्हें बच्चपन में तोड़े गए धनुष एवं शिवजी के इस धनुष में कोई अंतर नहीं दिख रहा जो तुम इनकी तुलना कर रहे हो।

राम – लक्ष्मण- परशुराम जी यह बात सुन के लक्ष्मण कहते है हमे तो सारे धनुष एक जैसे ही दिखाई देते हैं, किसी में कोई फर्क नजर नहीं आता। जो आप इतना क्रोधित हो रहे हो।  

परशुराम- परशुराम लक्ष्मण के इन बातों को सुन के और क्रोधित हो जाते है , और कहते है हे मुर्ख लक्ष्मण लगता है तुझे मेरे वयक्तित्व के बारे में नहीं जानते हो। मैं कोई साधारण मुनि नहीं हूं|

राम – लक्ष्मण- परशुराम जी यह बात सुन के लक्ष्मण कहते है मुस्कुराते हुए बड़े प्रेमपूर्वक स्वर से कहते है मैं आपकी बातों से डरने वाला नहीं हूँ|

परशुराम- यह सुनकर परशुराम जी विश्वामित्र से कहते हैं की तुम जानते हो की मैं कितना कठोर एवं निर्दयी हूँ।  

राम – लक्ष्मण- लक्ष्मण के ये कठोर वचन सुनकर परशुराम अपने क्रोध के आग में जलने लगते हैं| परशुराम जी को इस अग्नि में जलता देखकर श्री राम ने अपने सीतल वचनों से उनकी अग्नि को सांत किया।

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