summary of the poem vaih todti
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वह तोड़ती पत्थर ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित एक मर्मस्पर्शी कविता है। इस कविता में कवि ‘निराला’ जी ने एक पत्थर तोड़ने वाली मजदूरी के माध्यम से शोषित समाज के जीवन की विषमता का वर्णन किया है। कवि निराला जी कहते हैं कि मजदूर प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना काम पूरी लगन एवं निष्ठा से करते हैं फिर भी उनके मालिक जो संपन्न वर्ग के होते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं और उन्हें अनेक तरह से प्रताड़ना प्रताड़ित करते हैं, उनका शोषण करते हैं। इसके उपरान्त भी यह निर्बल श्रमिक लोग स्वाभिमान से से जीना जानते हैं और स्वाभिमान से जीने की क्षमता रखते हैं। वे ये क्षमता भी रखते हैं कि अपने हथौड़े से इस पत्थर दिल सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दें।
कविता का भाव सौंदर्य की दृष्टि से बहुत ही अद्भुत है। सड़क पर पत्थर तोड़ती एक मजदूर महिला का वर्णन कवि ने अत्यंत सरल शब्दों में किया है। वो तपती दोपहरी में बैठी हुई पत्थर तोड़ रही है। वो एक साधारण परिवार की महिला है लेकिन उसका आचरण एकदम सरल और शुद्ध है। इस कविता के माध्यम से कवि ने श्रमिक वर्ग और संपन्न वर्ग दो विरोधी वर्गों के चित्र खींचे हैं और यह बताया है एक तरफ कठिन परिस्थितियों में काम करने वाला श्रमिक वर्ग है तो दूसरी तरफ सुख सुविधा संपन्न भवनों में रहने वाले लोग।
कवि निराजी जी अपनी सहानुभूति श्रमिक वर्ग के साथ रखते हैं और शोषण करने वाली पाषाण हृदय सामाजिक व्यवस्था को धिक्कारते हुये उसके खंड-खंड होने की कामना करते हैं।
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