Hindi, asked by samznair6599, 1 year ago

Summary of the tale of melon city in hindi

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Answered by himanimehta562
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किसी नगर के राजा ने एक दिन यह निश्चय किया कि वह एक भव्य तोरण द्वार का निर्माण करवाएगा और उसके नीचे से अपनी सवारी निकालकर प्रजा के सम्मुख गर्व से अपने वैभव का प्रदर्शन करेगा. जब वह गौरवदायी क्षण आया तो सब यह देखकर भौंचक्के रह गए कि राजा का मुकुट द्वार की मेहराब से टकरा कर गिर गया. दरअसल द्वार बहुत नीचा बना था.

राजा को क्रोध आना तो लाजिमी था! उसने आदेश दिया कि निर्माण कार्य करवाने वाले ठेकेदार को सजा-ए-मौत दे दी जाये. जब ठेकेदार को फांसी के लिए ले जाने लगे तो उसने सबको बताया कि असली गलती निर्माण में लगे कारीगरों की थी जिन्होंने द्वार बनाने का सारा काम किया था.

राजा को न्याय करने की उतावली थी और उसने कारीगरों को तलब किया. कारीगरों ने सारा दोष ईंटें बनानेवाले पर डाल दिया कि उसने गलत आकार की ईंटें बनाईं. ईंटसाज़ ने कहा कि उसने तो बस द्वार का नक्शा बनानेवाले के निर्देशों के अनुसार काम किया था. नक्शा बनानेवाले ने यह कह दिया कि उसने निर्माण के अंतिम दौर में राजा द्वारा दिए गए कुछ सुझावों को कार्यान्वित किया जिनके परिणामस्वरूप द्वार नीचा बन गया.

“राज्य के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाओ!” – राजा ने कहा – “यह निस्संदेह बड़ी जटिल समस्या है और हमें इसपर ज्ञानियों से परामर्श करना है!”

सैनिक राज्य के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को पकड़ कर ले आये. वह इतना बूढ़ा था कि अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा था. बूढ़ा होने के नाते ही वह सबसे अधिक बुद्धिमान भी था. अपनी कांपती आवाज़ में उसने कहा – “इस समय की सबसे बड़ी मांग यह है कि दोषी को शीघ्र दंड दिया जाए और इस प्रकरण में मेरे अनुसार सबसे बड़ा दोषी और कोई नहीं बल्कि यह द्वार ही है.”

बूढ़े के निर्णय की सराहना करते हुए राजा ने घोषणा की कि कसूरवार द्वार को ढहा कर नेस्तनाबूद कर दिया जाए. जब द्वार को गिराने की सारी तैयारियां पूरी हो गईं तो राजा के एक सलाहकार ने अपनी राय ज़ाहिर करी कि द्वार को इस प्रकार अपमानपूर्वक नहीं गिराया जा सकता क्योंकि उसने राजा के पवित्र मस्तक को एक बार स्पर्श कर लिया है.

इस बीच द्वार को गिराने-न-गिराने की आपाधापी में बुद्धिमान बूढ़े ने अपनी आखिरी साँसें भर लीं. राजा के सलाहकार द्वारा दिए गए मत पर विमर्श करने के लिए राज्य में और कोई बुद्धिमान व्यक्ति नहीं बचा था. ऐसे में प्रमुख न्यायाधीश ने यह सुझाव दिया कि द्वार के निचले सिरे को सूली पर चढ़ा दिया जाए क्योंकि द्वार के केवल इसी हिस्से ने राजा के मस्तक को नहीं छुआ था. इस तरह द्वार का बाकी हिस्सा बच जाएगा.

लेकिन जब जल्लादों ने द्वार के निचले हिस्से को फांसी के फंदे में लपेटने की कोशिश की तो यह पाया कि रस्सी छोटी पड़ गयी है. रस्सी बनानेवाले को बुलाया गया जिसने यह राय ज़ाहिर करी कि फांसी का मचान ऊंचा बन गया था और सारी गलती बढ़ई की थी.

“लोग अपना सब्र खो रहे हैं!” – राजा ने कहा – “हमें जल्द-से-जल्द किसी को ढूंढकर फांसी पर चढ़ाना होगा. अपराध और न्याय के मुद्दों की बारीकियों पर हम उचित समय आने पर विचार-विमर्श कर लेंगे.”

बहुत थोड़े से ही समय में राज्य के सभी लोगों का कद सावधानीपूर्वक माप लिया गया लेकिन केवल एक ही आदमी फांसी के फंदे पर इतना सटीक बैठा कि उसे फांसी पर चढ़ाया जा सके. वह आदमी और कोई नहीं खुद राजा ही था. फंदे के आकार में सटीक बैठनेवाले आदमी के मिल जाने का जनता में ऐसा उत्साह था कि राजा को जनता की उपेक्षा करने का साहस नहीं हुआ और वह फांसी चढ़ गया.

“भगवान का शुक्र है कि हमें फांसी चढ़ाने के लिए कोई मिल गया” – प्रधानमंत्री ने राहत की सांस लेते हुए कहा – “यदि हम इस मसले पर जनता की भावनाओं की परवाह नहीं करते तो राज्य में चहुँओर द्रोह की स्थिति निर्मित हो जाती.”

अब प्रधानमंत्री के सामने दूसरा संकट मुंह बाए खड़ा था. सभी को यह लगने लगा कि अब उनका देश राजाहीन हो गया है और अतिशीघ्र नए राजा का चुनाव करना बहुत ज़रूरी है. राजपुरोहित ने कहा कि परंपरा के अनुसार राज्य के सीमा द्वार से प्रवेश करने वाले पहले व्यक्ति को ही नगर का राजा बनाया जायेगा.
राज्य के भीतर दाखिल होने वाला पहला व्यक्ति वज्रमूर्ख था. वह ऐसा आदमी नहीं था जिससे हम अक्सर राह-बेराह मिलते रहते हैं. जब उससे लोगों ने पूछा कि किसे राजा बनाया जाये तो उसने कहा ‘तरबूज’. उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह हर सवाल का ज़वाब ‘तरबूज’ ही देता था. उसे तरबूज इतने पसंद थे कि उनके सिवाय उसके दिमाग में और कोई बात नहीं आती थी.

इस प्रकार एक तरबूज को भव्य समारोह में राजमुकुट पहनाकर सिंहासन पर बिठा दिया गया.

यह सब तो बहुत-बहुत पहले हुआ था. आज जब उस देश के नागरिकों से लोग यह सवाल करते हैं कि उनका राजा तरबूज क्यों है तो वे कहते हैं – “यह हमारी मान्यता है कि महाराजाधिराज स्वयं तरबूज ही होना चाहते हैं. हम नागरिक भी तब तक उनकी इस इच्छा का सम्मान करेंगे जब तक वह कुछ और होने का आनंद नहीं उठाना चाहें. हमारे देश में राजा को वह होने का अधिकार है जो वह होना चाहते हैं. जब तक वे हमारे जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करते तब तक हम उनके तरबूज होने से खुश हैं”
Answered by Anonymous
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एक समय एक न्यायी तथा नम्र राजा था जो एक देश पर राज्य करता था। राजा ने सार्वजनिक घोषणा की कि मुख्य राजमार्ग के आरपार विजय की घोषणा सहित एक वृत्तखण्ड (मेहराब) बनाई जाए जो दर्शकों को अध्यात्मिक रूप से सुधार सके।

राजा के आदेशों को मानते हुए श्रमिक वहाँ गए तथा उन्होंने मेहराब बना दी। लोगों को सुधारने के लिए राजा घोड़े पर सवार होकर वहाँ पहुँचा। क्योंकि यह मेहराब बहुत नीची बनाई गई थी, राजा अपना मुकुट मेहराब के नीचे गैंवा बैठा। राजा की भृकुटियाँ क्रोध में तन गईं। उसने इसे अपमानजनक कहा तथा घोषणा की कि मुख्य श्रमिक को सूली पर लटका दिया जाए।

रस्सी तथा सूली का प्रबन्ध किया गया तथा श्रमिकों के मुखिया को वहाँ ले जाया गया। राजा के समीप से गुज़रते हुए वह चिल्लाया “राजन! यह तो श्रमिकों का दोष था।” राजा ने कार्रवाही रोक दी तथा आदेश दिया कि उसकी बजाय सभी श्रमिकों को फासी दी जाए। श्रमिक आश्चर्यचकित दिखाई दिए तथा उन्होंने राजा से कहा कि उसने यह महसूस नहीं किया था कि ईंटें गलत आकार की बनी हुई थीं।

राजा ने आदेश दिया कि राज मिस्त्रियों को वहाँ बुलाया जाए। राज मिस्त्री वहाँ लाए गए। वे भय से काँपते हुए वहाँ खड़े रहे। अब उन्होंने शिल्पी पर दोष लगाया। शिल्पकार को बुलाया गया। राजा ने आदेश दिया कि शिल्पी को फैासी देनी थी। शिल्पकार ने राजा को याद दिलाया कि जब उसने योजना राजा को दिखाई थी तो उसने उन में कुछ सुधार किए थे। यह सुनकर राजा आग-बबूला हो गया तथा शान्तिपूर्वक काम करने में असमर्थ हो गया।

न्यायी एवं नम्र राजा होने के कारण उसने कहा कि यह एक कठिन कार्य था तथा उसे कुछ परामर्श की आवश्यकता थी। उसने आदेश दिया कि देश का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वहाँ लाया जाए। सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को ढूंढा गया तथा वहाँ लाया गया। वह इतना बूढ़ा था कि वह न तो चल सकता था और न ही देख सकता था। अतः उसे उठाकर वहाँ ले जाया गया। उसने काँपती आवाज़ में कहा कि दोषी को अवश्य दण्ड मिलना चाहिए। मेहराब ने राजा के मुकुट को गिराया था, अतः इसे फासी पर लटका देना चाहिए। मेहराब को फासी के चबूतरे पर ले जाया गया। फिर एक परामर्शदाता ने कहा कि वे ऐसी किसी वस्तु को कैसे फाँसी दे सकते थे जिसने राजा के सिर को स्पर्श किया हो।।

राजा ने सावधानीपूर्वक विचार किया तथा कहा कि यह सत्य था। किन्तु अब तक भीड़ उत्तेजित हो गई तथा ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ा रही थी। उसने वहाँ उपस्थित लोगों से अपराध जैसे सूक्ष्म बिन्दुओं पर विचार करने को स्थगित करने को कहा। क्योंकि राष्ट्र चाहता था कि फाँसी लगे, अतः किसी को फाँसी देनी थी और वह भी तत्काल। | फाँसी का फन्दा कुछ ऊँचा स्थापित किया गया। प्रत्येक व्यक्ति को बारी-बारी से मापा गया। केवल एक ही व्यक्ति इतना ऊँचा था कि वह इसमें सही समा सके। वह व्यक्ति राजा था। अतः राजसी आदेश के अनुसार उसे फाँसी लगा दी गई। मन्त्रिगण प्रसन्न थे कि उन्होंने फाँसी लगाने के लिए किसी व्यक्ति को ढूंढ लिया था वरना अनियन्त्रित नगरवासियों ने राजा के विरूद्ध विद्रोह कर दिया होता। वे चिल्लाए ‘राजा दीर्घजीवी हों।

क्योंकि राजा की मृत्यु हो गई थी, व्यावहारिक बुद्धिवाले मन्त्रियों ने पूर्ववर्ती राजा के नाम से घोषणा कराने को दूत भेजे कि नगर द्वार से गुजरनेवाला अगला व्यक्ति उनके देश के राजा को चुनेगा। यह उनकी प्रथा थी तथा इसका उचित सम्मान सहित पालन किया जायेगा। एक बुधू (मूर्ख) नगरे द्वार से गुज़रा। रक्षकों ने उसे यह निर्णय करने को कहा कि राजा कौन होगा। बुद्धू ने उत्तर दिया कि ‘खरबूजा’ क्योंकि सभी प्रश्नों का उसका यही एक मात्र नपा-तुला उत्तर था।

मन्त्रियों ने खरबूजे को राजा के रूप में मुकुट पहनाया। फिर वे खरबूजे को राजगद्दी तक ले गए तथा उचित आदर सहित इसे वहाँ विराजमान कर दिया। जब यह पूछा जाता कि उनका राजा खरबूजा कैसे बना, तो लोग उत्तर देते कि यह तो प्रथा के कारण था। यदि राजा को खरबूजा बनने में प्रसन्नता होती हो, तो उनके लिए यह सही (ठीक) था। वे उसके किसी भी आकार धारण करने से आपत्ति नहीं करेंगे जब कि वह उन्हें शान्ति तथा स्वतन्त्रता में रहने दे तथा उनके मुक्त व्यापार में राजकीय हस्तक्षेप न करे।

#KEEPLEARNING

HOPE I AM CLEAR.

WARM REGARDS.

(≧▽≦)

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