Hindi, asked by shubhambhosale53751, 1 year ago

Summary oof poem bhikshuk pleas i want it fast

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Answered by diksha3526
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Hope it will help you. please mark me as brainliest plzzzz☺️

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Answered by shubhrt2004
2

Answer: this is the correct answer

Explanationकवि जब फटेहाल भिखारी को रास्ते पर आता देखता है तो उसकी दीन-हीन अवस्था ही नहीं बलिक तार-तार मन: सिथति का भी चित्रा प्रस्तुत करता है। भिक्षा की याचना भिखारी खुशीपूर्वक नहीं करता बलिक ऐसा करते हुए उसका कलेजा चूर-चूर हो जाता है, उसके âदय के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। भीख माँगते हुए उसका मन पश्चाताप से भी भर उठता है। उसका शरीर अत्यन्त दुर्बल है और सिथति यह है कि उसके पेट और पीठ अलग-अलग दिखार्इ नहीं पड़ते बलिक दोनों मिलकर एक ही हो गये। वह लाठी लेकर चल रहा है। लाठी लेकर चलना जहाँ उसकी शारीरिक दुर्बलता की ओर संकेत करता है वहीं घुटनों की कमज़्ाोरी को भी दर्शाता है जो वृद्धावस्था का परिणाम भी हो सकती है। उसकी माँग मुटठी भर अन्न के दाने हैं जिनसे वह अपनी भूख मिटा सके। इसी आशा से वह अपनी फटी हुर्इ झोली को बार-बार फैला रहा है। परन्तु ऐसा करते हुए उसका जी टुकड़े-टुकड़े हो जाता है।

भिखारी के साथ में दो बच्चे भी हैं जो सदैव अपने हाथ फैलाये रखते हैं, बाँयें हाथ से वे अपने पेट पर हाथ फेरते रहते हैं मानों अपनी भूख का इज़हार कर रहे हों और दायाँ हाथ आगे की ओर फैला रहता है इस आशा में कि किसी की दया का पात्रा वे बन जाएँ और कोर्इ इन्हें पैसा-दो-पैसा या रोटी दे दें। किसी व्यकित की भी दया-दृषिट जब उन पर नहीं पड़ती तो उनके ओंठ भूख के कारण सूख जाते हैं और दान-दाता से वे कुछ भी नहीं पाते, तो वे आँसुओं के घूँट पीकर रह जाते हैं। अभिप्राय यह है कि ये भिखारी इस आशा में कि कोर्इ उनकी भूख को मिटाने का प्रयत्न करेगा, सड़क पर इधर से उधर घूमते रहते हैं परन्तु कोर्इ इन पर दया नहीं दिखलाता और भूख के कारण व्याकुल इनकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। जिनको वे अपना भाग्य-विधाता मान बैठे हैं उनसे उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता, निराशा ही हाथ लगती है। कभी उनकी नज़र सड़क पर पड़ी हुर्इ जूठी पत्तलों पर पड़ती है तो भूख के कारण वे उन्हें ही चाटने लगते हैं किन्तु यहाँ भी उनके प्रतिद्वन्दी के रूप में कुत्ते मौजूद हैं जिन्हें लगता है कि उनकी भूख का भाग (हिस्सा) उन भिखारियों के द्वारा खाया जा रहा है इसलिए वे भी उनके हाथों से उन जूठी पत्तलों को हथियाने के लिए अड़े हुए हैं। जीवन की कैसी विडम्बना है कि जो जानवरों के लिए भोग्य वस्तु है, वह भी उनके नसीब में नहीं है या उसके लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है। परन्तु कवि का âदय संवेदना से रिक्त नहीं है वह उन्हें आश्वासन देते हुए कहता है कि मेरे âदय में संवेदना का अमृत बह रहा है मैं उससे तुम्हें सींचकर तृप्त कर दूँगा, तुम्हारे सम्पूर्ण दुख-दर्द मैं स्वयं धारण करूँगा परन्तु उसके बदले में तुम्हें भी संघर्षशील होना होगा; तुम्हें अभिमन्यु जैसा जुझारू योद्धा होना होगा; जैसे अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए जूझता रहा, उसी प्रकार तुम्हें भी इस गरीबी के चक्र से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील होना होगा। कहने का आशय यह है कि व्यकित को स्वयं भी अपनी दुरवस्था से मुक्त होने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है दूसरे की सहायता ओर साथ भी तभी सार्थक हो सकते हैं।

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