suraj, phool, koyal, baadal, nadi, aasmaan, baarish aadi ka prayog karke kavita banao
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jess ban ate h........
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बागों में जब बहार आने लगे,
कोयल अपना गीत सुनाने लगे,
कलियों में निखार छाने लगे,
भँवरे जब उन पर मंडराने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया!!
खेतों में फसल पकने लगे,
खेत खलिहान लहलाने लगे,
डाली पे फूल मुस्काने लगे,
चारों ओर खुशबू फैलाने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया!!
आमों पे बौर जब आने लगे,
पुष्प मधु से भर जाने लगे,
भीनी-भीनी सुगंध आने लगे,
तितलियाँ उनपे मंडराने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया!!
सरसों पर पीले पुष्प दिखने लगे,
वृक्षों में नई कोंपले खिलने लगे,
प्रकृति सौंदर्य छटा बिखेरने लगे,
वायु भी सुहानी जब बहने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया!!
धूप जब मीठी लगने लगे,
सर्दी कुछ कम लगने लगे,
मौसम में बहार आने लगे,
ऋतू दिल को लुभाने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया!!
चाँद भी जब खिड़की से झाँकने लगे,
चुनरी सितारों की झिलमिलाने लगे,
योवन जब फाग गीत गुनगुनाने लगे,
चेहरों पर रंग अबीर गुलाल छाने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया!!
2. वृक्ष प्रकृति का है श्रंगार,
इनको क्यों काट रहा है इंसान,
नष्ट इसे करके अपने ही पांव पर,
कुल्हाड़ी क्यों मार रहा है इंसान।
3. हरी ही हरी खेतों,
में बरस रहे हैं बूंदे,
खुशी-खुशी से आया सावन,
भर गया मेरा आँगन।
ऐसा लग रहा है जैसे,
मन की कलियाँ खिल गई वैसे,
ऐसा कि आया बसंत,
लेके फूलों का जश्न।
धूप से प्यासी मेरे तन को,
बूंदों ने दी ऐसे अंगडाई,
कूद पड़ा मेरा तन-मन,
लगता है मैं हूँ एक दामन।
यह संसार है कितना सुंदर,
लेकिन लोग नहीं उतने अकलमंद,
यही है एक निवेदन,
न करो प्रकृति का शोषण।