Hindi, asked by surensingh1969, 8 months ago

Surdaas ji ke 4 arth sahit dohe hindi mei short length

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Answered by tapatidolai
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Answer:

दोहा 1. मुखहिं बजावत बेनु धनि यह बृंदावन की रेनु। ...

दोहा 3. बूझत स्याम कौन तू गोरी। ...

दोहा 4. अबिगत गति कछु कहति न आवै। ...

दोहा 5. मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ। ...

दोहा 6. चोरि माखन खात चली ब्रज घर घरनि यह बात। ...

Answered by hasan619866
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रहीम , रहीम के दोहे , रहीमदास,रहीम दास के दोहे , रहीम के दोहे हिंदी में , रहीम के लोकप्रिय दोहे , हिंदी कवि , हिंदी के लोकप्रिय कवि , दोहे , हिंदी के दोहे , हिंदी दोहे rahim , rahim das, rahim ke dohe, rahim ke dohe hindi me , rahim ke hindi me dohe, rahim ke dohe, abdul rahim khankhana, rahimdas, hindi ke kavi, hindi kavi, hindi poet,

रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम (अब्दुर्रहीम) ख़ानख़ाना था। आपका जन्म 17 दिसम्बर 1556 को लाहौर में हुआ। रहीम के पिता का नाम बैरम खान तथा माता का नाम सुल्ताना बेगम था। बैरम ख़ाँ मुगल बादशाह अकबर के संरक्षक थे। रहीम जब पैदा हुए तो बैरम ख़ाँ की आयु 60 वर्ष हो चुकी थी। कहा जाता है कि रहीम का नामकरण अकबर ने ही किया था।

रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे। रहीम का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न था। वे एक ही साथ सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, कवि एवं विद्वान थे। रहीम सांप्रदायिक सदभाव तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक थे। रहीम कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे।

Rahime Das के Dohe चाय में शक्कर जैसे है, जैसे चाय में शक्कर थोड़ी ही होती है लेकिन मिठास बहुत ज्यादा । ठीक वैसे ही रहीम के दोहे में शब्दों की मात्रा बहुत ही कम है लेकिन इसका मर्म, महत्व और जीवन का सार अनंत है ।

रहीम दास के १५ लोकप्रिय दोहे हिंदी अर्थ सहित

1. दोहा – “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय | टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय”

अर्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नही होता| यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है, तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है|

2. दोहा – तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान |

अर्थ: रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।

3. दोहा – “रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत | काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत |”

अर्थ : गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न तो दुश्मनी. जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता |

4.दोहा – “एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय | रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय |”

अर्थ: एक को साधने से सब सधते हैं. सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है – वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है |

5. दोहा – “रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय | हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय |”

अर्थ : यदि संकट कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही हैं, क्योकी संकट में ही सबके बारेमें जाना जा सकता हैं की दुनिया में कौन हमारा अपना हैं और कौन नहीं |

6. दोहा – “रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत | काटे चाटे स्वान के, दोउ भांति विपरीत |”

अर्थ : कम दिमाग वाले व्यक्तियों से ना दोस्ती और ना ही दुश्मनी अच्छी होती हैं | जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों को विपरीत नहीं माना जाता है |

7. दोहा – “रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि | जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवार |”

अर्थ: बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती।

8. दोहा – “रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय | सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय |”

अर्थ : रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता |

9. दोहा – “रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार | रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार |”

अर्थ : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए |

10. दोहा – “बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय | रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय |”

अर्थ : मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा

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