Hindi, asked by Suryavardhan1, 1 year ago

surdas ke 5 dohe arth ke Sath (I WILL MAKE YOU AS BRAINLIEST)

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दोहा :- “जसोदा हरि पालनै झुलावै | हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै || मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै | तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै || कबहुं पलक हरि मुंदी लेत हैं कबहुं अधर फरकावै | सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै | इहि अंतर अकुलाइ उठे हरी जसुमति मधुरै गावै | जो सुख सुर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनी पावै ||”

अर्थ :- राग घनाक्षरी में बध्द इस पद में सूरदास जी ने भगवान् बालकृष्ण की  शयनावस्था का सुंदर चित्रण किया हैं | वह कहते हैं की मैया यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झुला रही है | कभी तो वह पालने को हल्कासा हिला देती हैं, कभी कन्हैया को प्यार करने लगती हैं और कभी चूमने लगती हैं | ऐसा करते हुए वह जो मन में आटा हैं वही गुनगुनाने भी लगती हैं | लेकिन कन्हैया को तब भी नींद नहीं आती हैं | इसीलिए यशोदा नींद को उलाहना देती हैं की आरी निंदिया तू आकर मेरे लाल को सुलाती क्यों नहीं ? तू शीघ्रता से क्यों नहीं आती ? देख, तुझे कान्हा बुलाता हैं | जब यशोदा निंदिया को उलाहना देती हैं तब श्रीकृष्ण कभी पलकें मूंद लेते हैं और कभी होठों को फडकाते हैं | जब कन्हैया ने नयन मूंदे तब यशोदा ने समझा की अब तो कान्हा सो ही गया हैं | तभी कुछ गोपियां वहां आई | गोपियों को देखकर यशोदा उन्हें संकेत से शांत रहने को कहती हैं | इसी अंतराल में श्रीकृष्ण पुन: कुनमुनाकर जाग गए | तब उन्हें सुलाने के उद्देश से पुन: मधुर मधर लोरियां गाने लगीं | अंत में सूरदास नंद पत्नी यशोदा के भाग्य की सराहना करते हुए कहते है की सचमुच ही यशोदा बडभागिनी हैं क्योकी ऐसा सुख तो देवताओं व ऋषि-मुनियों को भी दुर्लभ है |



दोहा :-“हरष आनंद बढ़ावत हरि अपनैं आंगन कछु गावत | तनक तनक चरनन सों नाच मन हीं मनहिं रिझावत || बांह उठाई कारी धौरी गैयनि टेरी बुलावत | कबहुंक बाबा नंद पुकारत कबहुंक घर आवत || माखन तनक आपनैं कर लै तनक बदन में नावत | कबहुं चितै प्रतिबिंब खंभ मैं लोनी लिए खवावत || दूरि देखति जसुमति यह लीला हरष आनंद बढ़ावत | सुर स्याम के बाल चरित नित नितही देखत भावत ||”

अर्थ :- राग रामकली में आबध्द इस पद में सूरदासजी जी ने भगवान् कृष्ण की बालसुलभ चेष्टा का वर्णन किया हैं | श्रीकृष्ण अपनेही घर के आंगन में जो मन में आटा हैं वो गाते हैं | वह छोटे छोटे पैरो से थिरकते हैं तथा मन ही मन स्वयं को रिझाते भी हैं | कभी वह भुजाओं को उठाकर कली श्वेत गायों को बुलाते है, तो कभी नंद बाबा को पुकारते हैं और घर में आ जाते हैं | अपने हाथों में थोडासा माखन लेकर कभी अपने ही शरीर पर लगाने लगते हैं, तो कभी खंभे में अपना प्रतिबिंब देखकर उसे माखन खिलाने लगते हैं | श्रीकृष्ण की इन सभी लीलाओं को माता यशोदा छुप-छुपकर देखती हैं और मन ही मन में प्रसन्न होती हैं |सूरदासजी कहते हैं की इस प्रकार यशोदा श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं को देखकर नित्य हर्षाती हैं |

दोहा :- “जो तुम सुनहु जसोदा गोरी | नंदनंदन मेरे मंदीर में आजू करन गए चोरी || हों भइ जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी | रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी || मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी | जब गहि बांह कुलाहल किनी तब गहि चरन निहोरी || लागे लें नैन जल भरि भरि तब मैं कानि न तोरी | सूरदास प्रभु देत दिनहिं दिन ऐसियै लरिक सलोरी ||”

अर्थ :- सूरदास जी का यह पद राग गौरी पर आधारित हैं | भगवान् की बाल लीला का रोचक वर्णन हैं | एक ग्वालिन यशोदा के पास कन्हैया की शिकायत लेकर आयी | वो बोली की हे नंदभामिनी यशोदा ! सुनो तो, नंदनंदन कन्हैया आज मेरे घर में चोरी करने गए | पीछे से मैं भी अपने भवन के निकट ही छुपकर खड़ी हो गई | मैंने अपने शरीर को सिकोड़ लिया और भोलेपन से उन्हें देखति रही | जब मैंने देखा की माखन भरी वह मटकी बिल्कुल ही खाली हो गई हैं तो मुझे बहोत पछतावा हुआ | जब मैंने आगे बढ़कर कन्हैया की बांह पकड़ ली और शोर मचाने लगी, तब कन्हैया मेरे चरणों को पकड़कर मेरी मनुहार करने लगे |इतना ही नहीं उनके नयनोँ में अश्रु भी भर आए |ऐसे में मुझे दया आ गई और मैंने उन्हें छोड़ दिया | सूरदास कहते हैं की इस प्रकार नित्य ही विभिन्न लीलाएं कर कन्हैया ने ग्वालिनों को सुख पहुँचाया |

दोहा :- “अरु हलधर सों भैया कहन लागे मोहन मैया मैया | नंद महर सों बाबा अरु हलधर सों भैया || ऊंचा चढी चढी कहती जशोदा लै लै नाम कन्हैया | दुरी खेलन जनि जाहू लाला रे ! मारैगी काहू की गैया || गोपी ग्वाल करत कौतुहल घर घर बजति बधैया | सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया ||”

अर्थ :- सूरदास जी का यह पद राग देव गंधार में आबध्द हैं | भगवान् बालकृष्ण मैया, बाबा और भैया कहने लगे हैं | सूरदास कहते हैं की अब श्रीकृष्ण मुख से यशोदा को मैया मैया नंदबाबा को बाबा – बाबा व बलराम को भैया कहकर पुकारने लगे हैं | इना ही नहीं अब वह नटखट भी हो गए हैं, तभी तो यशोदा ऊंची होकर अर्थात कन्हैया जब दूर चले जाते हैं तब उचक उचककर कन्हैया को नाम लेकर पुकारती हैं और कहती हैं की लल्ला गाय तुझे मारेंगी | सूरदास कहते हैं की गोपियों व ग्वालों को श्रीकृष्ण की लीलाएं देखकर अचरज होता हैं | श्रीकृष्ण अभी छोटे ही हैं और लीलाएं भी अनोखी हैं | इन लीलाओं को देखकर ही सब लोग बधाइयाँ दे रहे हैं | सूरदासजी कहते हैं की हे प्रभु ! आपके इस रूप के चरणों की मैं बलिहारी जाता हूँ |

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