Hindi, asked by bhumika583, 1 month ago

surdas ke paas ke aadhar par pehle ke logo or ab ke logo mein kya antar kiya gaya h?​

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Answered by rohan3452
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Answer:

अपना जीवन कृष्ण को समर्पित करने वाले सूरदास एक संत होने के साथ—साथ महान कवि और संगीतकार थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है। सूरदास के जीवन और मृत्यु को लेकर कोई पुख्ता तथ्य न होने के कारण लोगों के अलग—अलग मत रहे हैं। गोस्वामी हरिराय के 'भाव प्रकाश' के अनुसार सूरदास का जन्म दिल्ली के पास सीही नाम के गांव में एक अत्यन्त निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वहीं 'चौरासी वैष्णव की वार्ता' के आधार पर वे 1478 ईस्वी में आगरा-मथुरा रोड पर स्थित रुनकता नामक गांव में पैदा हुए थे। बाद में वे गऊघाट आकर रहने लगे| इनके पिता रामदास एक गायक थे| सूरदास जब गऊघाट में रहते थे तो इसी पर इनकी मुलाकात बल्लभाचार्य से हुई और सूरदास उनके शिष्य बन गए|

Answered by mehrotra03031950
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Answer:

सूरदास के जीवन को लेकर कई भ्रांतियां हैं। जानें उनके जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं को।

अपना जीवन कृष्ण को समर्पित करने वाले सूरदास एक संत होने के साथ—साथ महान कवि और संगीतकार  थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है। सूरदास के जीवन और मृत्यु को लेकर कोई पुख्ता तथ्य न होने के कारण लोगों के अलग—अलग मत रहे हैं। गोस्वामी हरिराय के 'भाव प्रकाश' के अनुसार सूरदास का जन्म दिल्ली के पास सीही नाम के गांव में एक अत्यन्त निर्धन  ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वहीं 'चौरासी वैष्णव की वार्ता' के आधार पर  वे 1478 ईस्वी में आगरा-मथुरा रोड पर स्थित रुनकता नामक गांव में पैदा हुए थे। बाद में वे गऊघाट आकर रहने लगे| इनके पिता रामदास एक गायक थे| सूरदास जब गऊघाट में रहते थे तो इसी पर इनकी मुलाकात बल्लभाचार्य से हुई और सूरदास उनके शिष्य बन गए|

क्या सूरदास जन्म से अंधे थे?

इस बारे में श्याम सुंदर दास ने लिखा है कि "सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।' वहीं डॉ हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है- "सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर हर समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।" वहीं एक आम मत है कि सूरदास जन्म से ही अंधे थे, भगवान् की कृपा से दिव्य-दृष्टि पायी थी, जिसके आधार पर उन्होंने कृष्ण-लीला का आँखों देखा जैसा वर्णन किया। गोसाई हरिराय ने भी सूरदास को जन्मान्ध बताया है।

प्रमुख रचनाएं

सूरदास द्वारा लिखे गए पांच ग्रंथ बताए जाते हैं सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती और ब्याहलो।

लेकिन पहले तीन ग्रंथों के तो प्रमाण हैं लेकिन नल-दमयन्ती और ब्याहलो प्रमाण नहीं मिलता। नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है। इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। सूरसागर में करीब एक लाख पद होने की बात कही जाती है। लेकिन वर्तमान संस्करणों में करीब पांच हजार पद ही मिलते हैं। सूर सारावली में 1107 छन्द हैं। इसकी रचना संवत 1602 में होने का प्रमाण मिलता है। वहीं साहित्य लहरी 118 पदों की एक लघु रचना है। रस की दृष्टि से यह ग्रन्थ श्रृंगार की कोटि में आता है।

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