India Languages, asked by diddivarunteja3351, 6 months ago

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Answered by msjayasuriya4
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This blog is for Study of Madhyasth Darshan (Jeevan Vidya) propounded by Shree A. Nagraj, Amarkantak. (श्री ए. नागराज द्वारा प्रतिपादित मध्यस्थ-दर्शन सह-अस्तित्व-वाद के अध्ययन के लिए)

Monday, December 24, 2018

प्रकृति की इकाइयों में परस्पर पहचान का स्वरूप

कुछ दिन पहले मेरी साधन भाई से दर्शन के कुछ मुद्दों पर स्पष्टता पाने के लिए बात हुई थी। उसी के continuation में। आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी होगी।

प्रश्न: इकाइयों का उनकी परस्परता में निर्वाह उनका सम्बन्ध की पहचान पूर्वक है या एक का दूसरे पर प्रभाव वश उनकी बाध्यता है? इसको कैसे देखें?

उत्तर: पहली इकाई के प्रभाव वश दूसरी इकाई का निर्वाह के लिए बाध्य होना और दूसरी इकाई में निर्वाह करने की पात्रता-क्षमता होना ये दोनों ही हैं. पहली इकाई का प्रभाव है, उसको दूसरी इकाई स्वीकार कर पा रहा है - इसके लिए दूसरी इकाई में पात्रता-क्षमता भी है.

प्रकटन क्रम के हर स्तर पर निर्वाह है. परमाणु अंश भी निर्वाह कर रहा है, उससे अग्रिम सभी स्थितियां भी निर्वाह कर रही हैं. यह निर्वाह करना केवल दूसरे के प्रभाव वश बाध्यता ही नहीं है, सहअस्तित्व विधि से जिस स्थिति में वह है उसके अनुसार उसकी क्षमता भी है. परस्परता या वातावरण बाध्यता है. निर्वाह करना इकाई की क्षमता है, जो उसकी श्रम पूर्वक अर्जित है. जैसे -पदार्थावस्था + श्रम = प्राणावस्था. प्राणावस्था + श्रम = जीवावस्था. इस तरह श्रम पूर्वक पहचानने की क्षमता अर्जित हो रही है.

प्रश्न: भौतिक-रासायनिक वस्तुएं भी "पहचान" रही हैं - इस भाषा से ऐसा लगता है जैसे उनमे भी जान हो! इसको कैसे देखें?

उत्तर: बाबा जी ने सारा मानव भाषा में लिखा है. भौतिक-रासायनिक वस्तुओं के क्रियाकलाप को भी. सामान्यतः जड़ उसको कहते हैं जो गति रहित हो. जबकि हर परमाणु गतिशील है. यहाँ जड़ की परिभाषा है - पहचानने-निर्वाह करने वाली वस्तु. सत्ता में संपृक्त होने से हर वस्तु एक तरह से कहें तो "जिन्दा" है!

पहचानना-निर्वाह करना सम्पूर्ण प्रकृति में है. मानव में जानना-मानना अतिरिक्त है. जानने-मानने के बाद भी पहचानना-निर्वाह करना ही होता है. मानव के पहचानने-निर्वाह

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