Swadesh Prem dwara desh ki Unnati
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प्रेम के अनेक रूप हैं-परिवारजनों से प्रेम, मित्रजनों से प्रेम, जातिगत-प्रेम एवं स्वदेश-प्रेम। इनमें । स्वदेश-प्रेम ही सर्वोपरि है। देश की पावन पुण्य-धरा की रक्षा एवं उसके उन्नयन के लिए अपने प्राणों तक को बलिदान कर देने की भावना ही देश-प्रेम है। यह वह पवित्र भावना है, जो मनुष्य को नि:स्वार्थ त्याग और निश्छल प्रेम का पाठ पढ़ाती है और प्रत्येक देशवासी अपने देश के लिए तन-मन-धन समर्पित करने के लिए तत्पर हो जाता है। साहित्यकार सुंदर ग्रंथों की रचना करके, वैज्ञानिक नए.नए आविष्कार करके, गुरु देश की भावी पीढ़ी को देश का भार वहन करने योग्य बनाकर, वास्तुकार अपनी कला से सुंदर भवनों का निर्माण करके, व्यापारी एवं उद्योगपति देश को समृद्ध एवं खुशहाल बनाकर तथा किसान देश की जनता के लिए अन्न उपजाकर देश के विकास में हाथ बंटाते हैं तथा अपने देश-प्रेम को प्रकट करते हैं। हम देश के लिए जो कुछ भी करें उससे हमारे देश की मर्यादा को ठेस न पहुँचे बल्कि उससे ।।हमारे देश के सम्मान में वृधि हो। संकटकाल में अपने देश के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने से भी पीछे न हटें। “जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।”
वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
हम जिस धरती का अन्न-जल ग्रहण करके बड़े हुए हैं, उस पर हमें गर्व होना स्वाभाविक है। वह भमि हमारी माँ है और हम उसकी संतानें । अतः हमारा कर्तव्य है कि प्राणार्पण करके भी उसकी रक्षा करें। आज देश-प्रेम की अति आवश्यकता है क्योंकि देश प्रेम राष्ट्र की उन्नति की आधारशिला है। इस भावना से ही विश्व-स्तर पर एकता एवं आवश्यकता है विश्व बधुत्व की भावना को बल मिलता है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को पोषित किया था।
वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
हम जिस धरती का अन्न-जल ग्रहण करके बड़े हुए हैं, उस पर हमें गर्व होना स्वाभाविक है। वह भमि हमारी माँ है और हम उसकी संतानें । अतः हमारा कर्तव्य है कि प्राणार्पण करके भी उसकी रक्षा करें। आज देश-प्रेम की अति आवश्यकता है क्योंकि देश प्रेम राष्ट्र की उन्नति की आधारशिला है। इस भावना से ही विश्व-स्तर पर एकता एवं आवश्यकता है विश्व बधुत्व की भावना को बल मिलता है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को पोषित किया था।
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