Swadesh prem kavita tarang pathmala class 7 prashn uttar
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please prashn return explain kar
त्रिपाठी जी कहते हैं कि तुम अपने उन पूर्वजों का स्मरण करो, जिनके अतुलनीय प्रताप की साक्षी सूर्य आज भी दे रहा है। ये ही तो हमारे पूर्वपुरुष थे, जिनकी धवल और स्वच्छ कीर्ति को चन्द्रमा भी यत्र-तत्र-सर्वत्र धूम-घूमकर देख चुका है। वे हमारे पूर्वज ऐसे थे, जिनके ऐश्वर्य को तारों का अनन्त समूह बहुत पहले देख चुका था। हमारे पूर्वजों की विजय-घोषों और युद्ध-गर्जनाओं को भी आकाश अनगिनत बार सुन चुका है। तात्पर्य यह है कि हमारे पूर्वजों के पवित्र चरित्र, प्रताप, यश, वैभव, युद्ध-कौशल आदि सभी कुछ अद्भुत और अभूतपूर्व था।कवि त्रिपाठी जी आगे कहते हैं कि यह ‘भारत’ हमारे चिरस्मरणीय पूर्वजों का देश है। इसका मस्तक हिमालयरूपी सर्वोच्च मुकुट से सुशोभित हो रहा है। हमारे पूर्वजों के विजय-गीतों से आज . तक भी सम्पूर्ण दिशाएँ पूँज रही हैं। ये ही तो वे पूर्वज थे, जिनकी महिमा की गवाही आज भी सत्य स्वरूप वाला श्रेष्ठ हिमालय दे रहा है अथवा जिनकी महिमा की गवाही आज भी हिमालय के रूप में प्रत्यक्ष है। इस भारत-भूमि के अति विस्तृत अथवा विशाल वक्षस्थल पर विभिन्न देशों के विमान समूह बना-बनाकर उतरा करते थे।हमारे पूर्वज ऐसे थे कि स्वयं समुद्र भी उनकी सेवा में तत्पर रहता था। वह अपनी छाती पर उनके असंख्य जहाजों को उठाकर प्रसन्नता के साथ पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने पर स्थित समस्त बन्दरगाहों पर पहुँचाया करता था। इस देश में रात-दिन बहती हुई नदियों की धारा मानो हमारे उन पूर्वजों का यशोगान गाती जाती है। धन्य थे वे हमारे ऐसे पूर्वज! जिनका समर्पण, उत्साह और शौर्य अद्भुत था। कवि को विश्वास है कि उनके चंरण-चिह्न आज भी हमारी नदियों और समुद्रों के तटों पर मिल जाएँगे। तात्पर्य यह है कि यदि आप अपने पूर्वजों का अनुसरण करेंगे तो आपको उनका मार्गदर्शन अवश्य मिलता रहेगा।कवि कहता है कि सच्चा प्रेम वही है, जिसमें आत्म-त्याग की भावना होती है; अर्थात् आत्म-त्याग पर ही सच्चा प्रेम निर्भर होता है। सच्चे प्रेम के लिए यदि हमें अपने प्राणों को भी न्योछावर करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। बिना त्याग के प्रेम प्राणहीन या मृत है। त्याग से ही प्रेम में प्राणों का संचार होता है; अत: सच्चे प्रेम के लिए प्राणों का बलिदान करने को भी सदैव प्रस्तुत रहना चाहिए। देशप्रेम वह पवित्र भावना है, जो निर्मल और सीमारहित त्याग से सुशोभित होती है। देशप्रेम की भावना से ही मनुष्य की आत्मा विकसित होती है। आत्मा के विकास से मनुष्य का विकास होता है; अत: देशप्रेम से आत्मा का विकास और आत्मा के विकास से मनुष्यता का विकास करना चाहिए।
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