swami aatmanand ka jivan parichay batao Hindi me
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संपादकीय: स्वामी आत्मानंद की जयंती पर विशेष लेख- ललित चतुर्वेदी
Monday, 26 Aug, 4.10 am
रायपुर। स्वामी आत्मानंद का जन्म रायपुर जिले के बरबंदा गांव में 6 अक्टूबर 1929 को हुआ. सन् 1957 में रामकृष्ण मिशन के महाध्यक्ष स्वामी शंकरानंद ने तुलेन्द्र की प्रतिभा, विलक्षणता, सेवा और समर्पण से प्रभावित होकर ब्रम्हचर्य में दीक्षित किया और उन्हें नया नाम दिया, स्वामी तेज चैतन्य. स्वामी तेज चैतन्य ने अपने नाम के ही अनुरूप अपनी प्रतिभा और ज्ञान के तेज से मिशन को आलोकित किया. अपने आप में निरंतर विकास और साधना सिद्धि के लिए वे हिमालय स्थित स्वर्गाश्रम में एक वर्ष तक कठिन साधना कर वापस रायपुर आए. स्वामी भास्करेश्वरानंद के सानिध्य में उन्होंने संस्कार की शिक्षा ग्रहण की, यहीं पर उन्हें स्वामी आत्मानंद का नाम मिला.
स्वामी आत्मानंद के पिता धनीराम वर्मा बरबंदा गांव के पास के स्कूल में शिक्षक थे। उनकी माता भाग्यवती देवी गृहणी थी. पिता धनीराम वर्मा ने शिक्षा क्षेत्र में उच्च प्रशिक्षण के लिए बुनियादी प्रशिक्षण केन्द्र वर्धा में प्रवेश ले लिया और परिवार सहित वर्धा आ गए. वर्धा आकर धनीराम महात्मा गांधी के सेवा ग्राम आश्रम में अक्सर आने लगे. बालक तुलेन्द्र भी पिता के साथ सेवा ग्राम जाने लगा.बचपन से तुलेन्द्र गीत और भजन कर्णप्रिय स्वर में गाते थे. जिसके कारण महात्मा गांधी उनसे स्नेह करते थे. गांधी जी उन्हें अपने साथ बैठाकर उनसे गीत सुनते थे. धीरे-धीरे तुलेन्द्र को महात्मा गांधी का विशेष स्नेह प्राप्त हुआ. गांधी जी जब तुलेन्द्र के साथ आश्रम में घूमते थे तब वे उनकी लाठी उठाकर आगे-आगे दौड़ते थे और गांधी जी पीछे-पीछे लम्बे-लम्बे डग भरते अपने चिर-परिचित अंदाज में चलते थे.
गांधी जी की लाठी लेकर आगे चलते हुए एक बच्चे की तस्वीर को कई अवसरों पर आपने देखी होगी. हमारे स्मृति पटल में वह चित्र गहरे से अंकित है, यह चित्र हम सभी को याद होगा. इस चित्र में गांधी जी की लाठी को लेकर आगे-आगे चलता बच्चा तब का रामेश्वर उर्फ तुलेन्द्र वर्मा और आज के स्वामी आत्मानंद है. स्वामी आत्मानंद ने छत्तीसगढ़ में मानव सेवा एवं शिक्षा संस्कार का अलख जगायी. शहरी और आदिवासी क्षेत्र में बच्चों में तेजस्विता का संस्कार, युवकों में सेवाभाव तथा बुजुर्गों में आत्मिक संतोष का संचार किया.