Swami ramkrishna paramhans history in hindi
Answers
Answered by
1
भारतीय भूमि सच्चे साधु-महात्माओं की गौरवभूमि भी रही है, जिन्होंने धर्म-साधना एवं अपनी योग और साधना से न केतन आत्मसिद्धि प्राप्त की, बल्कि धार्मिक नवचेतना से समाज को नयी दिशा दी ।
मानवतावादी धर्म का शंखनाद करने वाले धर्मगुरुओं में स्वामी रामकृष्ण परमहंस ऐसे ही योगी एवं साधक रहे हैं, जिन्होंने स्वामी विवेकानन्द जैसे आदर्श शिष्य की आध्यात्मिक ज्ञान-पिपासा को शान्त किया । उसी आत्मज्ञान से प्रेरित होकर विवेकानन्द ने विश्वधर्म सम्मेलन में भारतीय धर्म की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या की ।स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 1836 को फागुन सुदी दूज को बंगाल के हुगली जिले में कामारपुकुर ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनके बचपन का नाम गदाधर था । रामकृष्ण नाम तो उनके गुरु का दिया हुआ था । उनके पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय तथा माता चन्द्रमणी दोनों ही बड़े धार्मिक थे । उनके पिता दक्षिणेश्वर काली मन्दिर में रामकृष्ण को बचपन से ही ले जाया करते थे ।
वे काली मां के परमभक्त थे । कुछ बड़े होने पर गांव की पाठशाला में उन्हें भरती करा दिया गया, लेकिन पाठशाला में उनका मन नहीं लगा । पेट भरने की विद्या पढ़कर क्या होगा? ऐसा कहकर वे प्रभु के भक्ति के गीत गाया करते थे । कलकत्ता के दक्षिण में रानी रासमणि द्वारा बनाया गया बहुत बड़ा मन्दिर था, जहां उनके बड़े भाई रामकुमार पुजारी थे ।
कहा जाता है कि उनके विरोधियों ने मछुआ बाजार की 10-15 वेश्याओं के अश्लील हाव-भावों के साथ रामकृष्ण को एक कमरे में बन्द कर दिया । रामकृष्ण उन सभी को मां आनन्दमयी की जय कहकर समाधि लगाकर बैठ गये । चमत्कार ऐसा हुआ कि वे सभी भक्ति भाव से प्रेरित होकर अपने इस दुष्कृत्य पर शर्मसार हुई और उन्होंने रामकृष्ण से माफी मांगी ।रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों और सन्देशों का प्रचार करने के साथ-साथ उनके शिष्यों ने मानव सेवा हेतु रामकृष्ण मिशन की स्थापना देश के कोने-कोने में की है । उनके नाम पर अस्पताल, स्कूल, धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन होता रहा है । वे किसी भी धर्म के आलोचक नहीं थे । वे मां काली के अनन्य भक्त थे । सत्यानुरागी व लोकोपकारी थे ।
मानवतावादी धर्म का शंखनाद करने वाले धर्मगुरुओं में स्वामी रामकृष्ण परमहंस ऐसे ही योगी एवं साधक रहे हैं, जिन्होंने स्वामी विवेकानन्द जैसे आदर्श शिष्य की आध्यात्मिक ज्ञान-पिपासा को शान्त किया । उसी आत्मज्ञान से प्रेरित होकर विवेकानन्द ने विश्वधर्म सम्मेलन में भारतीय धर्म की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या की ।स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 1836 को फागुन सुदी दूज को बंगाल के हुगली जिले में कामारपुकुर ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनके बचपन का नाम गदाधर था । रामकृष्ण नाम तो उनके गुरु का दिया हुआ था । उनके पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय तथा माता चन्द्रमणी दोनों ही बड़े धार्मिक थे । उनके पिता दक्षिणेश्वर काली मन्दिर में रामकृष्ण को बचपन से ही ले जाया करते थे ।
वे काली मां के परमभक्त थे । कुछ बड़े होने पर गांव की पाठशाला में उन्हें भरती करा दिया गया, लेकिन पाठशाला में उनका मन नहीं लगा । पेट भरने की विद्या पढ़कर क्या होगा? ऐसा कहकर वे प्रभु के भक्ति के गीत गाया करते थे । कलकत्ता के दक्षिण में रानी रासमणि द्वारा बनाया गया बहुत बड़ा मन्दिर था, जहां उनके बड़े भाई रामकुमार पुजारी थे ।
कहा जाता है कि उनके विरोधियों ने मछुआ बाजार की 10-15 वेश्याओं के अश्लील हाव-भावों के साथ रामकृष्ण को एक कमरे में बन्द कर दिया । रामकृष्ण उन सभी को मां आनन्दमयी की जय कहकर समाधि लगाकर बैठ गये । चमत्कार ऐसा हुआ कि वे सभी भक्ति भाव से प्रेरित होकर अपने इस दुष्कृत्य पर शर्मसार हुई और उन्होंने रामकृष्ण से माफी मांगी ।रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों और सन्देशों का प्रचार करने के साथ-साथ उनके शिष्यों ने मानव सेवा हेतु रामकृष्ण मिशन की स्थापना देश के कोने-कोने में की है । उनके नाम पर अस्पताल, स्कूल, धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन होता रहा है । वे किसी भी धर्म के आलोचक नहीं थे । वे मां काली के अनन्य भक्त थे । सत्यानुरागी व लोकोपकारी थे ।
Similar questions