swami vivekananda mission bhartiya nari essay in gujarati
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नारायण के एकनिष्ठ सेवक स्वामी विवेकानन्दजी के निर्मल चित्त में अतीत, वर्तमान तथा भावी समाज का जो चित्र प्रतिफलित हुआ था, उसका एक ऐसा सनातन रूप है, जो काल के विपर्यय में म्लान नहीं होता। नारी समाज के सम्बन्ध में उनकी उक्तियाँ आज भी प्रायः पचास साल के बाद भी इसीलिये सम्भव से उज्ज्वल तथा समाज जीवन के लिए उपयुक्त है, कि वे थे ‘आमूल संस्कारक’। सदा परिवर्तनशील समाज की क्षणिक तृप्ति के लिये उन्होंने संस्कार के कृतिम प्रस्रवण की रचना कर प्रशंसा अर्जन नहीं की; वे चाहते थे समाज की जीवनीशक्ति को प्रबुद्ध करना, जिससे उसके हृदय के आनन्द की शतधारा स्वतः ही उच्छवासित हो सके।
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