Swami Vivekananda's ke anusar bhodha dharma ki visheshtaya
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मैं बौद्ध धर्मावलम्बी नहीं हूँ, जैसा कि आप लोगों ने सुना है, पर फिर भी मै बौद्ध हूँ। यदि चीन, जापान अथवा सीलोन (श्रीलंका), उस महान तथागत के उपदेशों का अनुसरण करते हैं तो भारत वर्ष उन्हें पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार मानकर उनकी पूजा करता है। आपने अभी-अभी सुना कि मैं बौद्ध धर्म की आलोचना करने वाला हूँ, परन्तु उससे आपको केवल इतना ही समझना चाहिए। जिनको मैं इस पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार मानता हूँ, उनकी आलोचना! मुझसे यह सम्भव नहीं। परन्तु बुद्ध के विषय में हमारी धारणा यह है कि उनके शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को ठीक-ठीक नहीं समझा। हिन्दू धर्म (हिन्दू धर्म से मेरा तात्पर्य वैदिक धर्म है) और जो आजकल बौद्ध धर्म कहलाता है, उनमें आपस में वैसा ही सम्बन्ध है, जैसा यहूदी तथा ईसाई धर्मो में। ईसा मसीह यहूदी थे और शाक्य मुनि हिन्दू। यहूदियों ने ईसा को केवल अस्वीकार ही नहीं किया, उन्हें सूली पर भी चढ़ा दिया। हिन्दूओं ने शाक्य मुनि को ईश्वर के रूप में ग्रहण किया है और उनकी पूजा करते हैं। किन्तु प्रचलित बौद्ध धर्म तथा बुद्धदेव की शिक्षाओं में वास्तविक भेद हम हिन्दू लोग दिखलाना चाहते हैं, वह विशेषतः यह है कि शाक्य मुनि कोई नयी शिक्षा देने के लिए अवतीर्ण नहीं हुए थे। वे भी ईसा के समान धर्म की सम्पूर्ति के लिए आए थे, उसका विनाश करने नहीं। अन्तर इतना है कि ईसा को प्राचीन यहूदी नहीं समझ पाये। जिस प्रकार यहूदी प्राचीन व्यवस्थान की निष्पत्ति नहीं समझ सके, उसी प्रकार बौद्ध भी हिन्दू के सत्यों की निष्पत्ति को नहीं समझ पाये। मैं यह बात फिर दुहराना चाहता हूँ कि शाक्य मुनि ध्वंस करने नहीं आये थे वरन् वे हिन्दू धर्म की निष्पत्ति थे। उसकी तार्किक परिणति और उसके सुक्तिसंगत विकास थे
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बौद्ध मानते हैं कि कुछ भी निश्चित या स्थायी नहीं है और यह परिवर्तन हमेशा संभव है। आत्मज्ञान, ध्यान और ज्ञान के अभ्यास और विकास के माध्यम से ज्ञानोदय का मार्ग है। बौद्धों का मानना है कि जीवन अनंत और दुख, अनिश्चितता के अधीन है।