Swasth jivan ka adhar khel
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हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में आहार और योग दोनों की समान और अहम भूमिका होती है। सात्विक आहार और नियम वाला जीवन हमारे शरीर का सम्पूर्ण विकास करते हैं। तो क्यों न इनमें संतुतल बिठाएं
योग का आहार के साथ गहरा संबंध है। एक पुरानी कहावत है कि ‘जैसा खाए अन्न वैसा बने मन’। यानी हम जिस प्रकार का आहार लेंगे हमारा मन वैसा ही बनेगा। योग का वास्तविक अर्थ मन का नियमन या नियंत्रण है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मन पर नियंत्रण करने के लिए आहार और योग दोनों को साधना जरूरी है।
गीता में आहार के मुख्यतया तीन प्रकार बताये गये हैं। इनका मन के साथ अन्तर्सबंध बताया गया है-
Explanation:
1. तामसिक आहार- अधपका, रसरहित, दुर्गध युक्त, बासी तथा उच्छिष्ट भोजन तामसिक आहार की श्रेणी में आता है। मूढ़ चित्तवृत्ति के लोगों का यह प्रिय भोजन है।
2. राजसिक आहार- कड़वा, खट्टा, लवणयुक्त, बहुत गरम, तीखा आहार राजसिक आहार की श्रेणी में आता है। मन की अति चंचल वृत्ति के लोगों का यह प्रिय आहार है।
3. सात्विक आहार- जो आहार रसयुक्त, चिकना और स्थिर रहने वाला है, सात्विक आहार की श्रेणी में आता है। मन की एकाग्रता रखने वालों का यह प्रिय आहार है।
मन और आहार के उपयरुक्त संबंधों को देखने से यह स्पष्ट है कि जिन्हें मन की एकाग्रता, शांति और स्वास्थ्य प्रिय है, उन्हें अपने आहार को सात्विक, संतुलित तथा प्राकृतिक बनाना ही पड़ेगा। सात्विक आहार के संबंध में निम्न सावधानियां ध्यान देने योग्य है।
अपने आहार का एक निश्चित समय तय करें।
अतिभोजन कदापि न करें। अति आहारी अपने दांतों से अपनी कब्र खोदता है।
भोजन चबा-चबा कर ही खायें।
मौसमी फल, हरी सब्जियां एवं साबुत अनाज का अपने भोजन में अधिक प्रयोग करें। तले भुने और मिर्च मसाले युक्त भोजन का सेवन हफ्ते में एक बार ही करें।
भोजन करने के तुरन्त बाद न तो नींद लें और न ही कठोर परिश्रम ही करें।
भोजन के संबंध में मध्यम मार्ग अपनायें- न तो बिल्कुल उबले हुए और कच्चे पदार्थ खाएं और न ही बिल्कुल मिर्च मसाले युक्त।
भोजन करते समय मन:स्थिति शांत और स्थिर रखिए। क्रोध, उत्तेजना, भय-विषाद की स्थिति में भोजन न करें।
इनका पालन करें
अधिकतर यौगिक क्रियाओं का अभ्यास खाली पेट ही करना चाहिए। वज्रासन का अभ्यास भोजन करने के बाद करने से पाचन तंत्र सशक्त होता है। वज्रासन में वज्र नाड़ी सक्रिय होती है। वज्र नाड़ी हमारे पूरे पाचन तंत्र को प्रभावित करती है।
योगाभ्यास का सबसे उपयुक्त समय प्रात:काल इसलिए माना गया है क्योंकि उस समय हम सबका पेट प्राय: खाली रहता है। किन्तु यदि हम कुछ खाने के बाद योगाभ्यास करना चाहते हैं तो भरपेट भोजन करने के साढ़े तीन घंटे बाद ही योगाभ्यास करना चाहिए।
हल्का नाश्ता जैसे चाय, एक रोटी या 2 ब्रेड या दलिया खाने के दो घंटे बाद ही यौगिक क्रियाओं का अभ्यास किया जा सकता है। एक कप चाय पीने के आधे घंटे बाद, एक गिलास दूध पीने के एक घंटे बाद, एक-दो गिलास पानी पीने के आधे घंटे बाद यौगिक क्रियाओं का अभ्यास किया जा सकता है। हाइपर एसिडिटी से ग्रस्त व्यक्तियों को आधा कप ठंडा दूध पीकर यौगिक अभ्यास करने की सलाह दी जाती है।
हठयोग में ‘बाघी’ ही एक मात्र ऐसी यौगिक क्रिया है जिसे पूर्ण भोजन करने के बाद करना चाहिए। इसी प्रकार हठयोग की शंख प्रक्षालन क्रिया में पानी पीकर अभ्यास किया जाता है।
योगाभ्यास के आधे घंटे पश्चात ही कुछ खाना या पीना चाहिए। गहन ध्यान के एक घंटे पश्चात ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। कठिन प्राणायाम के अभ्यास के पौने घंटे बाद भोजन लेना चाहिए। इसी प्रकार, शंख प्रक्षालन क्रिया के अभ्यास के एक घंटे बाद भोजन लेना चाहिए तथा कुंजल क्रिया करने के आधे घंटे बाद कुछ खाना-पीना चाहिए।
योगाभ्यास के पहले स्नान करना बेहतर होता है किन्तु योगाभ्यास करने के आधा घंटा बाद ही स्नान किया जा सकता है।