swatantrata pukarti kavita ka bhavarth anvm uddeshya
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आज के इस पुरे दुनिया में जातिवाद, प्रान्तीयतावाद तथा अनके तथ्य और समस्याएँ उत्पन्नं होती हैं. ऐसे भी चन्द्रगुप्त द्वारा लिखित “‘मेरा देश मालव ही नहीं, गांधार भी है” टिप्पड़ी से भी नए सन्देश की प्राप्ति होती है.
स्वतंत्रता पुकारती कविता का उद्देश में जय शंकर प्रसाद जी ने परतंत्र भारत के नागरिकों में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने का एक सुंदर प्रयास किया हैं.
साथ ही साथ देश के प्रति प्रेम के भावना को व्यख्यान करते हुए कवि ने भारतीय वीर सपूतों को उत्साहित करते हुए ललकारा है और जगरूक किआ कि हे देश के वीरों हिमालय की चोटी से भारत माता स्वतंत्रता की रक्षा हेतु पुकार रही हैं. और कवि सैनिको को अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के प्रोत्साहित करते हैं. और रक्षा के लिए निरंतर कदम बढ़ाते रहने का संदेश देते हैं.
साथ ही असंग यश और कीर्ति की किरणें ज्वाला के समानता में कर्तव्य रास्ते पर बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रहे हैं. दुश्मनों के सैन्य समुद्र में बड़वानी और ज्वालामुखी बनकर उनपर टूट पड़ने की प्रेरणा देते हैं. और उन्हें जित की प्राप्ति करो राष्ट्रीय गीत के रूप में सम्मानित इस गीत में कवि ने अपने अतीत के गौरव का करते हुए सैनिको को अपने दुश्मनों को धुल चटाने और उनपर विजय प्राप्त करने का सन्देश देते हैं. और इससे परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर फेंकने में काफी मदद मिलता है.