Hindi, asked by hlkashyap72, 1 year ago

Swatch bharat mission debate on favour in hindi

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Answered by waleedsyedmubarak63
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संदर्भ


स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा एक स्वच्छता अभियान है, जिसकी शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की 145वीं जन्मशती के अवसर पर राजघाट, नई दिल्ली से की गई। विदित हो कि इस अभियान के तहत 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को ‘स्वच्छ भारत’ बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

आज स्वच्छ भारत अभियान के आरंभ हुए लगभग तीन वर्ष होने को आए हैं। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि हम थोड़ा रुककर अब तक हुई प्रगति का आकलन करें, कमियों को पहचानें और फिर उन्हें दुरुस्त करते हुए आगे बढ़ें।

आज वाद-प्रतिवाद-संवाद के ज़रिये हम इस पर चर्चा तो करेंगे ही साथ ही यह भी देखेंगे कि स्वच्छ भारत अभियान की सफलता किन कारकों पर निर्भर करती है।

वाद


मोटे तौर पर देखें तो स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य यही नज़र आएगा कि हमें पूरे देश को साफ और स्वच्छ रखना है, लेकिन अभी तक हम एक महत्त्वपूर्ण पक्ष को नज़रंदाज़ करते आए हैं और वो यह कि ‘देश को साफ करने के लिये हमें उन लोगों की समस्याओं का समाधान करना होगा, जिन्होंने जीवन भर पूरे देश की सफाई की है।

लोग एक दिन झाडू लेकर बाहर निकलते हैं, ज़्यादातर के लिये यह एक फोटो खिंचवाने का अवसर मात्र है, जबकि शेष 364 दिनों में गंदगी साफ करने वाला आज उपेक्षा का शिकार है।

दरअसल, भारत में व्यवसाय और जाति के बीच एक गहरा संबंध है। हाथ से मैला ढोने की प्रथा एक विशेष जाति से संबंधित है। स्वच्छ भारत अभियान इस महत्त्वपूर्ण विषय का संज्ञान नहीं लेता है।

ऐसा क्यों है कि पिछले 4 हज़ार सालों से एक ही समुदाय के लोग मल-मूत्र उठा रहे हैं? यदि स्वच्छ भारत अभियान को कामयाब बनाना है तो इस प्रथा को बंद करना होगा और इस समुदाय के लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करना होगा।

संविधान के अनुच्छेद 17 में छुआछूत के उन्मूलन की बात की गई है, लेकिन आज भी एक विशेष समुदाय द्वारा सर पर मैला ढोया जाना इस बात का सूचक है कि देश में एक बड़ा तबका अपने मूल अधिकारों की प्राप्ति से भी वंचित है।

लोग शौचालयों का उपयोग नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वे शौचालय बनाने में सक्षम नहीं हैं। खुले में शौच कर रहे लोगों को शर्मिंदा करने के लिये अभियान चलाए जा रहे हैं, कुछ लोगों को लेकर बनाया गया एक दस्ता, खुले शौच कर रहे लोगों को देखते ही सीटियाँ बजाता और उन्हें ऐसा करने से रोकता है।

खुले में शौच से देश के लोगों को मुक्ति मिलनी ही चाहिये, लेकिन भारत का संविधान कहता है कि राज्य लोगों के जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए जा रहे शौचालयों के गड्ढे इतने छोटे हैं कि यह ज़ल्दी ही भर जाते हैं। ऐसे में इन गड्ढों को बहुत थोड़े समयांतराल पर साफ करना होगा।

वैसे तो भारत में मैला ढोने को कानूनी तौर पर तो प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन समस्या यह है कि भारत में लोग स्वयं के अपशिष्ट को भी साफ करने को धार्मिक आधार पर एक प्रतिबंधित कृत्य मानते हैं। अतः शौचालयों के गड्ढे भर जाने के डर से वे खुले में शौच करने को ही बेहतर समझते हैं।

हाल ही में सीवर की सफाई के दौरान कई मज़दूरों की मौत हो गई, जिन्हें न तो उचित उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं और न ही उनकी सामाजिक सुरक्षा का प्रबंन्ध किया जाता है। इन परिस्थितियों में तो यही लगता है कि स्वच्छ भारत अभियान शायद ही अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर सके।

प्रतिवाद


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत की स्वतंत्रता से पहले एक बार कहा था कि "स्वच्छता आज़ादी से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है"। उन्होंने भारत के लोगों को साफ-सफाई और स्वच्छता का महत्त्व

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