swayam Suraksha ke vishay par nibandh likhiye
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वर्त्तमान समय में सुरक्षित रहना हर वर्ग एवं जाति के लिए एक चुनौती सा बन गया है, यदि हमारे साथ कोई भी ऐसी घटना हो जाती है जिसका संबंध हमारी सुरक्षा से होता है तो इसके लिए हम कभी समाज को- तो कभी सरकार को ज़िम्मेवार ठहराते हैं, और ये सिलसिला यूँ ही चलता रहता है, अब प्रश्न यह उठता है की हमारी स्वयं की सुरक्षा का दायित्व किसका है? समाज, सरकार या स्वयं हमारा, इसकी विवेचना करने की आवश्यकता है।
यदि हम आदि काल की बात करे जब मनुष्य पृथ्वी पे आया तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती उसकी स्वयं की सुरक्षा थी हिंसक पशुओंसे, इस परिस्थिति का सामना उसे स्वयं को ही करना पड़ा क्यूंकि उस समय न तो सरकार थी और नहीं ही समाज परन्तु जैसे-जैसे मानव सभ्यता विकसित हुई समाज का प्रादुर्भाव हुआ जहाँ लोग एक दूसरे की अवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साथ-साथ रहने लगे और तब उनकी सुरक्षा की पूर्णतया जिम्मेवारी समाज पे आ गयी। वर्त्तमान में परिस्थितियां कुछ ख़ास परिवर्तित नहीं हुई हैं, पहले लोगो को अपनी सुरक्षा जंगली जीव-जंतुओं से करना पड़ता था परन्तु अब समाज में रहने वाला मनुष्य ही पशु प्रवृत्ति का हो गया है अब मनुष्य को मनुष्य से सुरक्षित रहने की आवश्यकता पड़ रही है क्यों? यह कथन विचारणीय है।
वर्त्तमान में बढ़ती जनसँख्या एवं बेरोजगारी ने लोगो के अंदर संवेदनाओ को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया है, आज लोग बहुत से ऐसे अमानवीय कार्य में लिप्त है जिसके कारण न केवल उनकी अपितु उस समाज में रह रहे और लोगो की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है।
स्वयं की सुरक्षा करना मनुष्य के लिए हमेशा से कठिन कार्य रहा है चाहे हम आज की बात करे या बीते कल की, परन्तु आज के मनुष्य ने इस कठिन कार्य को आसान बना दिया है, वर्तमान समय में महिलाओं की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है लोक सभा से लेकर राज्य सभा हर जगहं इसके लिए बहस होती है लेकिन दूसरी तरफ आजकल के माता-पिता अपने बच्चो को खास कर बेटियों को ऐसे बहुत से स्वरक्षण तकनीकियों का प्रशिक्षण करवा रहे हैं जिससे वो अपनी रक्षा स्वयं कर सके क्यूंकि यदि कभी भी वे किसी मुसीबत में फस जाएँ तो अपनी रक्षा स्वयं कर सके।
कुछ ऐसी भी आदतें है जिनको सुधार के भी हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकते हैं, अक्सर हमे मार्ग में बोर्ड पे जगह-जगह यह सन्देश लिखा मिलता है कि जल्दी से देर भली, सावधानी हटी दुर्घटना घटी आदि इनका मूल सिर्फ इतना होता है की अपनी सुरक्षा आपके अपने हाथ होती है, अमुमन ये देखा गया है की जितनी भी सड़क दुर्घटनाये होती हैं, उसके लिए ज्यादातर चालक ही जिम्मेवार होता है, या तो उसने यातायात के नियमो का पालन नहीं किया या फिर वाहन चलाते वक़्त सावधानी नहीं बरती, ऐसा कर के वो ना केवल अपना ही अपितु दूसरों का जीवन भी मुश्किल में डाल देता है।
एक पुरानी कहावत है कि” तुम्हारी स्वतंत्रता वही समाप्त हो जाती है जहाँ से मेरी नाक शुरू होती है”, अभिप्राय किसी भी मनुष्य द्वारा किया गया कोई भी कृत्य तब तक सही है जब तक वह दूसरों की स्वतंत्रता अथवा सुरक्षा में बाधक न हो।
एक उदहारण के माध्यम से मैं अपनी सुरक्षा अपना दायित्व को समझाने का प्रयास कर रही हूँ, हर वर्ष डेंगू जो एक मच्छर के काटने से उत्पन्न होने वाला रोग है हज़ारो लोगो कि जान ले लेता है इस महामारी की रोक थाम के लिए हम एक हद तक ही सरकार को दोषी ठहरा सकते हैं परन्तु कहीं न कहीं हम स्वयं भी इस बीमारी के महामारी बनने में उत्तरदायी हैं, यह तो हम सब को पता है की ये बीमारी कैसे फैलती है और इसकी रोकथाम कैसे की जा सकती है, घर को साफ़ सुथरा रखके, सोने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग कर के, घर में पानीके जमाव को रोक के काफी हद तक अपनी ही नहीं अपितु इस बीमारी से औरों की भी सुरक्षा कर सकते हैं।
अंततः मैं यही कहना चाहूंगी कि यदि हर नागरिक यह बात मानले कि उसकी स्वयं की सुरक्षा उसकी स्वयं की जिम्मेवारी है तो ऐसा कर के ना केवल वह स्वयं को बहुत सी दुर्घटनाओं से बचा सकता है अपितु सरकार एवं समाज के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल सकता है, जिसके निर्माण का मुख्य उद्देश्य मानव समाज की सुरक्षा है।
जागृति अस्थाना-लेखक
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