Hindi, asked by makhaneshkwd, 10 months ago

तिब्बत की संस्कृति पर एक निबंध​

Answers

Answered by shubhamkr5923
1

Answer:

हम पास के ही चुंपाथुन गाँव में गए। यहाँ एक घर 'दावा' नाम के व्यक्ति का है जो 'तागा' नाम की महिला का पिता है। 'तागा' का पति 'सीरेन' शादी के बाद इसी घर में रहता है। यहाँ पर समाज का ऐसा रिवाज है कि शादी के बाद यदि लड़की का परिवार खुशहाल है और वह इकलौती है तो अमूमन दूल्हा वहीं बस जाता है। कहीं दुल्हन भी दूल्हे के घर चली जाती है। दोनों ही रिवाज पूरी तरह सम्मानित माने जाते हैं।

मछुवारों के इस गाँव में 'दावा' का घर बहुत ही नक्काशीदार, रंगीन और अमीर है। वह ठाठ से अपने चुरुट से धुआँ उड़ा रहा है। घर के भीतर जिसे लिविंग रूम कहा जा सकता है, सोफे, शीशे की कई अल्मारियाँ और दो सेंटर टेबल सजी हैं। शयन कक्ष में भी खूब सजी-सजाई चीजें हैं। एक कमरे में माओ का पुराना कलेंडर भी टंगा है और स्टोर रूम में अनाज की ढेर सारी बोरियाँ पड़ी हैं। यहाँ हर घर के आँगन में एक-एक 'सोलर' (सूरज से बनी बिजली) चूल्हा रखा है। जिस पर एक बड़ी टिन की केतली रखी है।

'दावा' का दामाद यानी 'तागा' का पति सीरेन इसी आँगन में दूसरी ओर अपना हस्तकला का वर्कशॉप चलाता है। उसमें कई लोग काम करते हैं। इसमें चमड़े के गोल-गोल थैले बनाए जा रहे हैं किसी-किसी में याक फर भी लगे हैं। यह जंबा नाम का खास भोजन रखने के काम आता है। एक थैले को 'चाकु' बोलते हैं जिसमें वे चाय रखते हैं। हर घर में मिट्टी का बना अपना शौचालय है ।

सरसों के खेत के पास से गुजरते हुए हमें एक हरे-भरे मैदान में ले जाया गया। वहाँ लकड़ी की थोड़ी नीची टेबल को प्लास्टिक के सुंदर फूलदार टेबल क्लॉथ से ढंककर सजाया गया था और साथ में बैठने के लिए नीची बेंच लगी थी। वहाँ रंग-बिरंगी नक्काशीदार प्यालों में चाय पेश की गई।

याक मक्खन से बनी यह चाय यूँ तो हमारे यहाँ की दूध वाली चाय की तरह ही थी पर थोड़ी नमकीन थी। पिकनिक सा माहौल था। कहीं पेड़ के नीचे पुरुष समूहों में बैठे बीयर पीते हुए ताश खेलने में मग्न थे तो कहीं औरतें अपनी बेहतरीन पारंपरिक पोशाक में गप्पें करने और गीत गाने में मशगूल थीं।

ND

फिर हमारे सामने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया गया। दोनों ओर तीन-तीन पुरुष बोट को उल्टा सिर पर रखे अपने घुटने को आगे पीछे जुंबिश देकर धुन की ताल से ताल मिला रहे थे वहीं दो पुरुष कलाकार अपने हाथ में रंगीन कपड़ों से सजी छड़ी लेकर पूरे पांव को घुमा-घुमाकर नाच रहे थे।

लाल जूता, घुटने तक काले चमड़े के बूट, काली जैकेट पहने ये कलाकार अधिकतर समय दर्शकों को अपनी पीठ देखने को मजबूर करते थे। दोनों ओर नाचते हुए कलाकार कभी एक-दूसरे को आर-पार क्रॉस भी कर जाते थे। घासांग, एक 73 वर्षीय वृद्ध कलाकार ने अपनी जवानी में इसकी संरचना की थी।

उनके अनुसार 80 किलोग्राम की नाव उठाकर नाचना आसान काम नहीं है पर आज भी कई नौजवान अपनी परंपरा जीवित रखने के लिए यह नृत्य सीखने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। घासांग मछवारे ने लंबा जीवन देखा है। वह कहते हैं, 'पहले हम छुप-छुपकर मछली मारा करते थे।

मछली मारना गैरकानूनी था। तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र परिषद के गठन के बाद हम निर्भय होकर अधिकारपूर्वक मछली मारते और बेचते हैं। पहले बाँस की मदद से मछलियां पकड़ा करते थे पर अब हमें आधुनिक तकनीक की सहायता मिल रही है जिससे हमारा जीवन स्तर बढ़ गया है।'

नाच-गाने के बाद बुफे स्टाइल के खाने में सभी जुट गए। जौ और चावल से बनी बीयर और वाइन हमें पेश की गई। खाने में कम से कम पांच प्रकार की मछली, यहाँ तक कि मोमो में भी मछली भरी हुई थी।

समर पैलेस पार्क में नृत्य नाटिका पेश करते कलाकारसमर पैलेस (ल्युओब्लिंका) पार्क में उत्सव मनाते लोगसीरेन का अपने आँगन में चलाया जा रहा हस्तशिल्प का वर्कशॉपनाम तक नहीं पूछ सकते। टोमा और जओमा दोनों पति-पत्नी हैं। पत्नी खेती का काम देखती है तो पति मछवारे का काम करता है। दोनों साल में 10000 युआन कमा लेते हैं लेकिन फिर भी खुश हैं।

Similar questions
Math, 5 months ago