तिब्बत की वेशभूषा पर निबंध
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तिब्बतियों के वस्त्र व आभूषण के बारे में
2011-06-08 16:28:18
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश छिंगहाई तिब्बत पठार पर स्थित है। बर्फीले पठार पर रहने वाले लोग साल भर में अनेक त्योहारों की खुशियां मनाते हैं। साल के शुरू से अंत तक करीब तीस उत्सव मनाए जाते हैं | तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का छांगतु प्रिफैक्चर भौगोलिक स्थिति के मुताबित खांगछ्यु क्षेत्र का एक भाग है, इस तरह यहां के तिब्बती लोग खांगबा के नाम से कहे जाते हैं। इस तरह जेवर आभूषण के लिए खांगबा लोगों की पसंद भी उन के स्वभाव के अनुरूप सोना चांदी, सुलेमानी और हरे फ़िरोज़ा पत्थर आदि पर होती है। खांगबा पुरूष अपने सिर से पांव तक को विविध आभूषण से सजाते हैं। सिर पर ऊनी टोपी या चमड़े की टोपी, गले पर मूंगे व फिरोजा के पत्थर, कंधे पर बुद्ध मूर्ति व बौद्ध धर्म के पवित्र सजावट, कमर पर बंधे तिब्बती तलवार खांगबा लोगों की मर्दानगी अधिक दिखा देते हैं। खांगबा पुरूषों के बाल आम तौर पर लाल व काले रेशमी धागों से शिरोभूषण के रूप में बांधे जाते हैं, उन के कानों पर रत्नों की बालियां लटकती हैं, इन के अलावा अग्नि पाषाण नाम का एक आभूषण भी खांगबा पुरूष के लिए अनिवार्य है। खांगबा पुरूष के पांवों में पहनने वाले तिब्बती बूट विशिष्ठ आकर्षक है, जिस के तलवे बैल के चमड़े से बनाये जाते हैं और ऊपरी भाग रंगीन ऊनी धागों से धारीदार बुन कर बनाये गए है। वहां के लोगों के जीवन धनी बनने के चलते अब तिब्बती बूट पहले से कहीं अधिक रंगीली हो गई है।
खांगबा महिला का आभूषण बेहद आकर्षक और चमकीला है, जो अलग-अलग तौर पर सिर, गले और कमर पर सजा जाता है। खांगबा महिलाओं के आभूषण का रंग ज्यादातर लाल, पीला और हरा है। शिरोखर में दो मूंगाओं के बीच एक हरा फ़िरोज़ा पत्थर रखा जाता है और सिर से कमर तक फूलनुमा अंबर व लाल मूंगे के जेवर पहने जाते हैं, जो खांगबा महिलाओं की प्रमुख विशेषता है। इस के अलावा महिलाओं के सीने पर मूंगे, अंबर और हरे फिरोजा से पिरोए मालाएं पहनी हुई है। खांगबा महिलाओं को तिब्बती जूते पहनना और कमर पर छोटे आकार वाला तिब्बती खंजर लटकाना पसंद है।
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तिब्बती संस्कृति का विश्वकोश---थांगका चित्र कला का विकास
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थांगका तिब्बती संस्कृति में विशेषता प्राप्त कलात्मक रचना है जिसमें धर्म, कला और इतिहास सभी तत्व शामिल हैं। सछ्वान प्रांत स्थित गैनत्सी तिब्बती स्वायत्त स्टेट की लूहो काउंटी के नामाखाचे संप्रदाय को थांगका कला के विकास में विशेष स्थान प्राप्त है।
लूहो काउंटी के थांगका कलाकारों ने वर्ष 2012 में जातीय हस्तशिल्प कला प्रशिक्षण आधार स्थापित किया जहां नामाखाचे संप्रदाय के थांगका कलाकारों का प्रशिक्षण किया जाता है। थांगका कला का विकास करते समय स्थानीय लोगों के जीवन स्तर को भी बहुत उन्नत किया गया है। स्थानीय सरकार ने थांगका कला केन्द्रों को ज़ोरदार समर्थन दिया है और इनकी कलात्मक रचनाएं अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी बेची गयी हैं। साथ ही थांगका कला प्रशिक्षण केंद्रों में बहुत से युवकों ने अपना स्वप्न साकार किया है। क्योंकि प्रशिक्षण केंद्र में कलाकारों को जीवन के प्रति चिन्ता करने की जरूरत नहीं है और वे शांत होकर जीजान से कलात्मक काम कर सकते हैं।
गैनत्सी तिब्बती स्वायत्त स्टेट की लूहो काउंटी के मशहूर थांगका कलाकार यूंगजू ने कहा,“थांगका चित्र को तिब्बती जातीय संस्कृति में सबसे शानदार खजाने में से एक माना जाता है। इसमें तिब्बती संस्कृति का स्रोत और इतिहास का प्रतीक होता है।”
थांगका तिब्बत की विशेष चित्र कला मानी जाती है । इसे तिब्बती संस्कृति का विश्वकोश और पारंपरिक संस्कृति व कला का मूल्यवान गैर-भौतिक विरासत बताया जाता है । सरकार ने थांगका, तिब्बती ओपेरा और गेसार महाकाव्य आदि पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण में भारी निवेश लगाया है । थांगका चित्र कला में तिब्बती समाज के सभी पहलुओं का वर्णन किया जाता है । थांगका अधिकाधिक तौर पर लोकप्रिय होने के साथ-साथ बहुत से पर्यटक अपनी यात्रा के दौरान कुछ थांगका खरीदकर वापस लौटने लगे हैं ।
लूहो काउंटी में थांगका चित्र कला का चार सौ वर्ष पुराना इतिहास है। यूंगजू ने वर्ष 2012 में लूहो काउंटी में तिब्बती हस्तशिल्प स्किल प्रशिक्षण स्कूल स्थापित किया जहां मुख्य रूप से थांगका चित्र कला के कलाकार प्रशिक्षित किया जाता है। उन्हों ने कहा,“हमारे स्कूल अब कुल सत्तर से अधिक छात्र पढ़ते हैं। उन्हें स्कूल में छह साल तक अध्ययन करना पड़ेगा। स्कूल में पढ़ने का सभी खर्च हम देते हैं, छात्रों का अध्ययन बिल्कुल निशुल्क है।”
पर्यटकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ कलाकारों ने थांगका का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया है । लेकिन गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से ऐसा करने से थांगका चित्र की गुणवत्ता को कम किया जाएगा और इस कला के भावी विकास पर प्रभाव पड़ेगा। यूंगजू ने बताया कि थांगका चित्र कलाकार बनने के लिए छात्रों को बहुत मेहनती से अध्ययन करना पड़ता है। पर सफल होने के बाद थांगका चित्र कलाकारों को भारी आर्थिक लाभ मिलेगा। यूंगजू ने कहा,“हमारे यहां से स्किल सीखने से गरीबी उन्मूलन के लिए मददगार है। क्योंकि तीन साल पढ़ने वाले छात्रों को भी एक वर्ष में कम से कम तीस हजार युवान का तनख्वाह मिल पाएगा।”
सरकार की मदद से जूंगजू के स्कूल ने गैनत्सी स्टेट के एक सांस्कृतिक कंपनी के साथ उत्पादन और बिक्री सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये। स्कूल के छात्रों की थांगका चित्रें अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विदेशी बाजारों में बेची गयी हैं।
थांगका चित्र बेचने के माध्यम से गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य जरूर ही साकार किया जा सकता है। लेकिन स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों का ध्यान आर्थिक लाभ पर नहीं रहता है। उनमें बहुत से छात्रों का विचार है कि एक सचमुच कलाकार बनकर अद्भुत काम करेगा। 16 वर्षीय सानलांग ने कहा,“मुझे चित्र कला पसंद है। मेरा स्वप्न है कि मैं एक चित्र कलाकार बनूंगा और थांगका कला का विरासत करूंगा। मैं ने थांगका बेचने से अधिक आय प्राप्त करने की जैसी बातों पर कभी नहीं सोचा।”
प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना से इन तिब्बती छात्रों के लिए अपना स्वप्न साकार करने की शर्तें तैयार हो गयी है। इस के साथ कुछ मशहूर अध्यापकों को स्वतंत्रता से काम करने का आधार भी उपलब्ध है। स्कूल में अध्यापक का काम करने वाले यूंगतून ने तीस सालों के लिए थांगका चित्र बनाये हैं। पर पहले उन्हें चित्र बेचने के लिए चिंतित रहना पड़ता था। स्कूल में काम करने से उन्हें अपने जीवन के प्रति चिन्ता नहीं है, अब वे अपना पूरा ध्यान थांगका चित्र बनाने पर केंद्रीत कर सकते हैं। उन्हों ने कहा,“मैं थांगका चित्रकला का विरासत करने के लिए यहां आया हूं। स्कूल में कलात्मक वातावरण तैयार है, थांगका चित्र बेचने के लिए स्कूल के जिम्मेदारे है, यहां मैं जी जान से चित्रकला का काम कर सकता हूं।”
यूंगजू ने यह भी बताया कि उन के स्कूल में 12 विशाल कमल थांगका चित्रें चित्रित की जा रही हैं। और वे ये 12 चित्रें ब्रिटिश संग्रहालय जैसे विश्व मशहूर संग्रहालयों को उपहार के रूप में प्रदान करेंगे। आशा है कि ऐसे स्वरूप से विश्व को चीन की थांगका कला का प्रदर्शन किया जाएगा। यूंगजू के स्कूल में अंग्रेजी भाषा का कोर्स भी खोला है। उन का लक्ष्य है कि थांगका चित्रकला को पूरे विश्व के सामने समर्पित किया जाएगा।