तोिो चान यासुकी चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद िह तुरंत चौकीदार के छप्पर की ओर भागी, जैसे उसने रात को ही तय कर वलया था | िहााँ से िह एक सीढ़ी घसीटती हुई लाई | उसे तने के सहारे ऐसे लगाया, वजससे िह वििाखा तक पहुाँच जाए | िह कु सी से चपर चढ़ी और सीढ़ी के वकनारे को पकड़ वलया | तब उसने पुकारा,” िीक है, अब चपर चढ़ने की कोविि करो|”
यासुकीचानके हाथपैरइतनेकमज़ोरथेवकिहपहलीसीढ़ीपरभीवबनासहारेके चढ़नहींपाया|इसपरतोिोचान नीचे उतर आई और यासुकी चान को पीछे से धवकयाने लगी| पर तोिो चान थी छोटी और नाज़ुक सी, इससे अवधक क्या सहायता करती ! यासुकी चान ने अपना पैर सीढ़ी पर से हटा वलया और हतािा से वसर झुका के खड़ा हो गया | तोिो चान को पहली बार लगा वक काम उतना आसान नहींहै वजतना िह सोचे बैिी थी | अब क्या करे
प्र.1 तोिो चान चौकीदार के छप्पर से क्या लाई ?
प्र.2 यासुकी चान वबना सहारे सीढ़ी पर क्यों नही ं चढ़ पाया ?
प्र.3 तोिो चान को ऐसा क्यों लगा वक िह काम इतना आसान नहीं था ?
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Explanation:
यासुकी चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद िह तुरंत चौकीदार के छप्पर की ओर भागी, जैसे उसने रात को ही तय कर वलया था | िहााँ से िह एक सीढ़ी घसीटती हुई लाई | उसे तने के सहारे ऐसे लगाया, वजससे िह वििाखा तक पहुाँच जाए | िह कु सी से चपर चढ़ी और सीढ़ी के वकनारे को पकड़ वलया | तब उसने पुकारा,” िीक है, अब चपर चढ़ने की कोविि करो|”
इस समय देश में धर्म की धूम है, धर्म और ईमान के नाम उत्पाद किए जाते हैं, रमुआ पासी और बुधू मियाँ धर्म
और ईमान को जानें या न जाने, परंतु उसके नाम पर उबल पड़ते हैं, और जान लेने और जान देने के लिए तैयार
हो जाते हैं। देश के सभी शहरों का यही हाल है। बल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष
है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं उधर जुत जाता है। यथार्थ दोष है,
कुछ चलते-पुर्जे, पढ़े-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं
कि इस तरह उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें
सुगम जान पड़ता है। सुगम है भी। साधारण-से-साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी
हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजिब है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को
क्या जाने? उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत बेजा फायदा उठा रहे हैं। धर्म और ईमान के नाम
पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग होना चाहिए। धर्म
और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने
का साधन हो! वह किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने ।
व्यक्ति अपनी इच्छानुसार धर्म का पालन कर सके। यदि किसी धर्म को मानने वाले कहीं जबरदस्ती टाँग अड़ाते
हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए। देश की स्वाधीनता के लिए जो
उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन नि:संदेह अत्यंत बुरा था, जिस दिन, स्वाधीनता के क्षेत्र में, खिलाफत,
मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने
स्वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था।