तुगलक वंश और खिलजी वंश के शासकों के नाम लिखिए अलादीन और मोहम्मद तुगलक की प्रशासनिक व्यवस्था के मध्य अंतर स्पष्ट करें
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मुहम्मद बिन तुग़लक़
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मुहम्मद तुगलक अपने पीतल के सिक्कों को चांदी के लिए पारित करने का आदेश देता हुआ ई⁰ 1330
मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र 'जूना ख़ाँ', मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-1351 ई.) के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसका मूल नाम 'उलूग ख़ाँ' था। राजामुंदरी के एक अभिलेख में मुहम्मद तुग़लक़ (जौना या जूना ख़ाँ) को दुनिया का ख़ान कहा गया है। सम्भवतः मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुग़लक़ सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था। अपनी सनक भरी योजनाओं, क्रूर-कृत्यों एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा का भाव रखने के कारण इसे 'स्वप्नशील', 'पागल' एवं 'रक्त-पिपासु' कहा गया है। बरनी, सरहिन्दी, निज़ामुद्दीन, बदायूंनी एवं फ़रिश्ता जैसे इतिहासकारों ने सुल्तान को अधर्मी घोषित किया गया है।
अनुक्रम
1 पद व्यवस्था
2 गुणवान व्यक्ति
3 दिल्ली सल्तनत
4 दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि
5 राजधानी परिवर्तन
6 सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
7 खुरासान एवं कराचिल अभियान
8 महत्त्वपूर्ण विद्रोह
9 मृत्यु
पद व्यवस्था
सिंहासन पर बैठने के बाद तुग़लक़ ने अमीरों एवं सरदारों को विभिन्न उपाधियाँ एवं पद प्रदान किया। उसने तातार ख़ाँ को 'बहराम ख़ाँ' की उपाधि, मलिक क़बूल को 'इमाद-उल-मुल्क' की उपाधि एवं 'वज़ीर-ए-मुमालिक' का पद दिया था, पर कालान्तर में उसे 'ख़ानेजहाँ' की उपाधि के साथ गुजरात का हाक़िम बनाया गया। उसने मलिक अरूयाज को ख्वाजा जहान की उपाधि के साथ ‘शहना-ए-इमारत’ का पद, मौलाना ग़यासुद्दीन को (सुल्तान का अध्यापक) 'कुतुलुग ख़ाँ' की उपाधि के साथ 'वकील-ए-दर' की पदवी, अपने चचेरे भाई फ़िरोज शाह तुग़लक़ को 'नायब बारबक' का पद प्रदान किया था।
गुणवान व्यक्ति
मुहम्मद बिन तुग़लक़ कला-प्रेमी एवं अनुभवी सेनापति था। वह अरबी भाषा एवं फ़ारसी भाषा का विद्धान तथा खगोलशास्त्र, दर्शन, गणित, चिकित्सा, विज्ञान, तर्कशास्त्र आदि में पारंगत था। अलाउद्दीन ख़िलजी की भाँति अपने शासन काल के प्रारम्भ में उसने, न तो ख़लीफ़ा से अपने पद की स्वीकृति ली और न उलेमा वर्ग का सहयोग लिया, यद्यपि बाद में ऐसा करना पड़ा। उसने न्याय विभाग पर उलेमा वर्ग का एकाधिपत्य समाप्त किया। क़ाज़ी के जिस फैसले से वह संतुष्ट नहीं होता था, उसे बदल देता था। सर्वप्रथम मुहम्मद तुग़लक़ ने ही बिना किसी भेदभाव के योग्यता के आधार पर पदों का आवंटन किया। नस्ल और वर्ग-विभेद को समाप्त करके योग्यता के आधार पर अधिकारियों को नियुक्त करने की नीति अपनायी। वस्तुत: यह उस शासक का दुर्भाग्य था कि, उसकी योजनाएं सफलतापूर्वक क्रियान्वित नहीं हुई। जिसके कारण यह इतिहासकारों की आलोचना का पात्र बना।
दिल्ली सल्तनत
मुहम्मद तुग़लक़ के सिंहासन पर बैठते समय दिल्ली सल्तनत कुल 23 प्रांतों में बँटा थी, जिनमें मुख्य थे - दिल्ली, देवगिरि, लाहौर, मुल्तान, सरमुती, गुजरात, अवध, कन्नौज, लखनौती, बिहार, मालवा, जाजनगर (उड़ीसा), द्वारसमुद्र आदि। कश्मीर एवं बलूचिस्तान भी दिल्ली सल्तनत में शामिल थे। दिल्ली सल्तनत की सीमा का सर्वाधिक विस्तार इसी के शासनकाल में हुआ था। परन्तु इसकी क्रूर नीति के कारण राज्य में विद्रोह आरम्भ हो गया। जिसके फलस्वरूप दक्षिण में नए स्वतंत्र राज्य की स्थापना हुई और ये क्षेत्र दिल्ली सल्तनत से अलग हो गए। बंगाल भी स्वतंत्र हो गया। राज्यारोहण के बाद मुहम्मद तुग़लक़ ने कुछ नवीन योजनाओं का निर्माण कर उन्हें क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया। जैसे -
दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि (१३२६-२७ ई॰)
राजधानी परिवर्तन (१३२६-२७ ई॰)
सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (१३२९-३० ई॰)
खुरासन एवं काराचिल का अभियान आदि।
कराचिल (कुमायु की पहाड़ियों) का अभियान
दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि
अपनी प्रथम योजना के द्वारा मुहम्मद तुग़लक़ ने दोआब के ऊपजाऊ प्रदेश में कर की वृद्धि कर दी (संभवतः 50 प्रतिशत), परन्तु उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ गया, जिससे पैदावार प्रभावित हुई। तुग़लक़ के अधिकारियों द्वारा ज़बरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया, जिससे तुग़लक़ की यह योजना असफल रही। मुहम्मद तुग़लक़ ने कृषि के विकास के लिए ‘दिवाण-ए- अमीर कोही’ नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की। सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता, भूमि का अच्छा न होना इत्यादि कारणों से कृषि उन्नति सम्बन्धी अपनी योजना को तीन वर्ष पश्चात् समाप्त कर दिया। मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने किसानों को बहुत कम ब्याज पर ऋण (सोनथर) उपलब्ध कराया।