तौ इति पदस्य समासठिगष्ट कृत्वा लिखत-
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समास की परिभाषा एवं प्रकार – समास का अर्थ होता है ‘संक्षेप’, कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ प्रकट करना समास का प्रमुख प्रयोजन है। समास कम से कम दो शब्दों के योग से बनता है। समास में पदों के प्रत्यय समाप्त कर दिए जाते हैं।
संधि और समास में अंतर :-
जहाँ संधि में दो वर्णों का मेल होता है, वहीं समास में दो पदों का मेल होता है।
संधि को तोड़ने को ‘विच्छेद’ कहते हैं जबकि समास को तोड़ने को ‘विग्रह’ कहा जाता है।
हिंदी में संधि केवल तत्सम पदों में ही होती है, लेकिन समास संस्कृत तत्सम, हिंदी व उर्दू हर प्रकार के पदों में होता है।समास के भेद :-
हिंदी में समास का अनुशीलन संस्कृत व्याकरण से किया गया है। इस सन्दर्भ में हिंदी की प्रकृति संस्कृत से अनुकूलता रखती है। समास के भेद कुछ इस प्रकार हैं।
1- अव्ययीभाव –
इस समास में पूर्व पद की प्रधानता होती है और सामासिक या समास पद अव्यय हो जाता है। इस समास का समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है।अव्ययीभाव समास के उदाहरण –
प्रतिदिन, दिनानुदिन, यथाशक्ति, यथार्थ, यथासम्भव, यथाशक्ति, निर्भय, मनमाना, प्रत्येक, आपादमस्तक, आजन्म, आमरण, बेकाम, भरसक, व्यर्थ, प्रत्यंग, बेरहम, बेखटके, बेफायदा, बखूबी, समक्ष, परोक्ष, प्रत्यक्ष, भरपेट, प्रत्यंग, प्रत्युपकार…
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