Hindi, asked by Anonymous, 5 months ago

'ताज' कविता का सार -टिप्पणियाँ लिखिए​

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Answered by shishir303
6

‘ताज’ कविता का सार...

‘ताज’ कविता ‘सुमित्रानंदन पंत’ द्वारा लिखी गई कविता है, जिसमें उन्होंने अपना आक्रोश तो व्यक्त किया ही है, लेकिन अपने आक्रोश को व्यक्त करने के लिए ताज को आधार बनाया है। कवि का कहना है कि जब समाज में गरीबों और सहायों का शोषण करने वाले लोग उत्पन्न हो जाते हैं तो मानवता त्राहि-त्राहि करने कल उठती है। ताजमहल को आधार बनाकर कवि ने शोषक वर्ग की आलोचना की है तथा उन्हें गरीबों और असहायों के प्रति संवेदनशील रहने की सलाह देती है। कवि का कहना है कि समाज में बहुत लोग ऐसे है, जिन्हें एक वक्त का खाना तक ढंग से नही मिल पाता, उनके पास पहनने को ढंग के कपड़े तक नही हैं, रहने को घर नही है। वहीं पर कुछ लोग ऐसे है, जो अपनी मृतक पत्नी की याद में करोड़ो रुपयों का भवन अर्थात ताजमहल बनवा देते हैं। ये शरीर तो नश्वर है, उसके नष्ट हो जाने उस शरीर की याद में पत्थर के भवन बनवाने से क्या फायदा। जबकि जिंदा शरीर भूख-प्यास से तड़प रहे हों, और मृतक शरीरों के नाम पर करोड़ो रुपये बहाये जा रहे हों, ये कहाँ का न्याय है। ये मानवता नही है, ये शोषण है।

टिप्पणी ▬ कवि नें इस कविता में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा और विरोधाभास अलंकारों का सुंदरता से प्रयोग किया है।

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Answered by shailajavyas
4

Answer:

                                पन्तजी की काव्य यात्रा का दूसरा चरण प्रगतिवादी विचारधारा से युक्त कविताओं का माना जाता है |जहाँ उनकी छायावादी रचनाओं में कल्पनाओं की प्रधानता थी वही प्रगतिवादी रचनाओं में वे कल्पनाओं के इन्द्रधनुषी गगन से यथार्थ के कठोर धरातल पर उतर आये हैं |

                                                      इसी क्रम में उन्होंने 'ताज' नामक कविता रची |जिसका सार है कि जब संसार में भूखे नंगे और आवासविहीन लोग हों,तब ताजमहल जैसे स्मारक बनाने की आवश्यकता नहीं है |जहाँ हजारों लोग मूलभूत जरूरतों के लिए तरस रहें है वहाँ पर मृत लोग के लिए संगमरमर हो, ये हास्यास्पद है | कवि के अनुसार मोहान्ध होकर मृतकों के लिए हम श्रमिक और सर्वहारा वर्ग जैसे जीवितों में बसे ईश्वर को अनदेखा करें तो ये सर्वथा अन्याय और कुत्सित मानसिकता का द्योतक है |    

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