Hindi, asked by SripadAdhi, 1 day ago

त 'झम-झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के छम-छम-छम गिरती बूंदें तरुओं से छन के। चम-चम बिजली चमक रही रे उर में घन के, थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन के।। दादुर टर-टर करते झिल्ली बजती झन-झन, 'म्यव-म्यव' रे मोर, 'पीउ' 'पीउ' चातक के गण। उड़ते सोन बलाक, आर्द-सुख से कर क्रंदन, घुमड़-घुमड़ गिर मेघ गगन में भरते गर्जन।। रिमझिम-रिमझिम क्या कुछ कहते बूंदों के स्वर, रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर। धाराओं पर धाराएँ झरती धरती पर, के रज के कण-कण में तृण-तृण को पुलकावलि भर।। पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन, आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन। इंद्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन, फिर-फिर आए जीवन में सावन मनभावन।। सुमित्रानंदन पंत(कविता में कहा कहा चातक से)​

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Answered by vikrant228
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nice poem and mind blowing words

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