तालाबों और वृक्षों की क्या विच विशेषता होती है।
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तालाब जल में ‘जैव विविधता’ का शाब्दिक अर्थ पारिस्थतिक के अंतर्गत उपयोग किये जाने वाले शब्द बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी का नवीन संक्षिप्त रूप है। बायोडाइवर्सिटी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम बाल्टर जी. रोसेन ने सन 1986 में जंतुओं, पौधों और सूक्ष्म जीवों के विविध प्रकारों और इनमें विविधताओं के लिये किया था।
जैव-विविधता से तात्पर्य समस्त जीवों जैसे-जंतुओं, पादपों और सूक्ष्म जीवों की जातियों की विपुलता है, जोकि किसी निश्चित आवास में पारस्परिक अंतःक्रियात्मक तंत्र की भांति उत्पन्न होती है, वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए विभिन्न अध्ययनों के आधार पर अनुमान लगाया गया कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर जीव-जंतुओं एवं पेड़-पौधों की लगभग पाँच से दस लाख प्रजातियाँ व्यवस्थित हैं, परंतु इनमें से लगभग दो लाख प्रजातियों की ही पहचान की जा सकी है तथा इनका अध्ययन किया गया है।
तालाब जल में विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं का निर्धारण विभिन्न जीवों के अभिलक्षणों का परीक्षण एवं उनका तालाब-जल पर प्रभाव की समीक्षा करना है। सर्वेक्षित जिले में विकासखंडानुसार चयनित ग्रामीण क्षेत्रों के चयनित तालाबों में जैव-विविधता पाया गया। पहले की अपेक्षा तालाब जल में जैव-विविधता में ह्रास होने लगा है, क्योंकि तालाब में जल स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। इसी वजह से कई प्रकार के जलीय जीव की संख्या घटती जा रही है।
जीव जन्तुओं का निवास: तालाब जल में अनेक प्रकार के जीव-जंतुओं का निवास होता है। इन जीव-जंतुओं की उपयोगिता सिर्फ मानव के लिये न होकर एक पारिस्थितिक तंत्र के संदर्भ में होती है। तालाब जल में निवास करने वाले जीव-मछली, मेंढक, जोंक, केकड़ा, सर्प, कछुआ, घोंघा प्रमुख हैं। इनके अलावा, अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़े भी होते हैं। ये सभी जीव जलीय जीव होने के कारण जल में ही निवास करते हैं।
तालाब जल में उपस्थित जीव-जंतुओं का निवास स्थान भी अलग-अलग जगहों में होता है। कई ऐसे जीव होते हैं, जो पूर्णतः जल में निवास करते हैं एवं कुछ ऐसे भी जीव होते हैं जो तालाब-जल के अंदर सील्ट मिट्टी या कीचड़ में अपना बिल या खोल बनाकर निवास करते हैं। इन जीवों में मेंढक, सर्प, केकड़ा एवं मछलियाँ होते हैं। कुछ ऐसे भी जीव होते हैं, जो तालाब जल में उपस्थित प्राकृतिक वनस्पतियों पर अपना जीवन-यापन करते हैं, इनमें मुख्य रूप से कीड़े-मकोड़े होते हैं।
तालाब-जल में प्रमुख जीव: तालाब जल में पाये जाने वाले जीव-जंतुओं की उपयोगिता सिर्फ मानव के लिये न होकर एक पारिस्थितिक तंत्र के संदर्भ में होती है। प्राथमिक उपभोक्ता के अंतर्गत समस्त शाकाहारी जन्तु आते हैं, जोकि अपने पोषण के लिये उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं। जल की सतह के नीचे उपस्थित जीवधारी नितलस्य कहलाते हैं। ये शाकाहारी जीवों के ऐसे समूह हैं, जोकि जीवित पौधों पर आश्रित होते हैं अथवा तालाब जल की तली में उपस्थित मृत पादप अवशेषों पर जीवन निर्वहन करते हैं तथा डेट्रीवोर्स कहलाते हैं। जन्तु-प्लवक ये तैरने वाले अथवा जल में बहने वाले जन्तुओं का समूह है। इसके अंतर्गत युग्लीना, सायक्लोप्स आदि आते हैं।
द्वितीयक उपभोक्ता के अंतर्गत तालाब जल में उपस्थित मांसाहारी ऐसे जीव आते हैं, जोकि अपने पोषण के लिये प्राथमिक उपभोक्ताओं (शाकाहारी जीव) पर निर्भर रहते हैं। जलीय कीट एवं मछलियाँ अधिकांश कीट, बीटलस है जो कि जन्तु प्लवकों पर आश्रित होते हैं।
तृतीयक उपभोक्ता के अंतर्गत तालाब-जल की बड़ी मछलियाँ आती हैं, जोकि छोटी मछलियों का भक्षण करती हैं। इस प्रकार तालाब के पारिस्थितिक तंत्र में बड़ी मछलियाँ ही तृतीयक उपभोक्ता या सर्वोच्च मांसाहारी होती हैं। अपघटक इन्हें सूक्ष्म उपभोक्ता भी कहते हैं, क्योंकि इसके अंतर्गत ऐसे सूक्ष्म जीव आते हैं, जो मृत जीवों के कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करके उससे अपना पोषण प्राप्त करते हैं। इसके अंतर्गत जीवाणु एवं कवक जैसे- राइजोपस, पायथियम, सिफैलोस्पोरियम, आदि सम्मिलित किए गये हैं।
अध्ययन क्षेत्र के तालाब जल में विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु हैं। इन जीवों में प्रमुख- मछली, मेंढक, केकड़ा, कछुआ, जोंक, सर्प, आदि का विवरण प्रस्तुत है। तालाब जल में उपलब्ध सभी जीवों में श्रेष्ठ माने जाने वाली मछली जो मानव जीवन के साथ ही साथ अन्य जीव धारियों के जीवन में उपयोगी पूर्ण मानी जाती है। ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार तालाबों में पायी जाने वाली मछलियों के स्थानी नाम इस प्रकार हैं- रोहू, कतला, भुण्डी, मोंगरी, बाम, बामी, एवं कटरंग। जिनका प्रजाति के अनुसार सारणी 6.1 द्वारा व्यक्त कर वर्णन किया गया है।
तालाब जल की मछलियाँ: रायपुर जिले के तालाबों में विभिन्न प्रजातियों की मछलियाँ पर्याप्त संख्या में उपलब्ध थी। स्वच्छ जल में मत्स्योद्योग के परिणामस्वरूप स्थानीय प्रजातियों की संख्या में पर्याप्त कमी हो गयी है। स्थानीय मछली की प्रजातियों का विवरण निम्नलिखित है:-
शफरी (Curps) :-रोहू, (Laliorohita) करायन्त (L. Callasu), कुर्सा (L. gonius), पौटिष (L. Fimlriatus), कतला (Catla), मिरगल (Cerrhina Mrigala), महासीर (Barlustor) तथा अशल्फ मीन (Catlisher)।
प्रहान (Wallagoattu), पैसूडाट्रापिम गायू (Pseudotropis Garue) , सिंघी (Nutropneustes), मंगूरी (Caria mangen) सिंगहान (Mystavs), मिरटर आवर (Maor), मिस्टस टेंगरा (M. Tengra) , मिस्टस केवेसियस (M. cavacius) , मिस्टस विटारस (M. Vittarus), ओमपैक बिमाकुलेटस (Ompak Limaculatus), बोड (Bagurius, Bagarius) सिलोद (Silonia) तथा यूट्रोपिचिम (Eutropichthis)
, कोतरी
तालाब कभी भी अपने जल का प्रयोग स्वयं के लिए नहीं करता और वृक्ष भी अपने फल स्वयं नहीं खाते | वह दोनों ही परोपकारी स्वभाव के हैं |